तो सवा दो लाख आदिवासी जंगल की जमीन से हो जाएंगे बेदखल
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राजनीतिक संवाददाता ♦ भोपाल
सर्वोच्च न्यायालय के एक फैसले से मध्य प्रदेश के लाखों आदिवासियों को जंगल छोडऩे पर मजबूर होना पड़ रहा है। सर्वोच्च न्यायालय ने एक एनजीओ की याचिका पर सुनवाई करते हुए 16 राज्यों के करीब 11 लाख से अधिक आदिवासियों को जंगल से जमीन से बेदखल करने का आदेश दिया था। सर्वोच्च न्यायालय में याचिकाकर्ता ने यूपीए सरकार के समय पास किए वन संरक्षण अधिनियम (2006) को चुनौती दी थी। इस फैसले से मध्यप्रदेश के करीब 2 लाख 26 हजार आदिवासी जंगल की जमीन से बेदखल हो जाएंगे।
दरअसल, राज्य के 6,17,090 आदिवासी परिवारों ने मध्य प्रदेश में अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम (एफआरए), 2006 के तहत विभिन्न श्रेणियों के तहत दावे किए थे। राज्य ने 2,53,742 दावों को खारिज कर दिया, जो विभिन्न श्रेणियों के तहत 59 प्रतिशत के आसपास आता है।
वन निवासी अधिनियम के तहत दावों को तीन श्रेणियों में बांटा गया था। आदिवासी निवास, पारंपरिक निवासियों और भूमि की मांग की करने वाले आदिवासी। लेकिन 2,23,009 आदिवासी और 3159 पारंपरिक निवासियों का दावा खारिज कर दिया गया। जिससे कुल 2,26,168 परिवार प्रभावित होंगे। इन आदिवासियों को अब जंगल छोडऩा होगा।
सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीश अरुण मिश्रा, न्यायाधीश नवीन सिन्हा और न्यायाधीश इंदिरा बनर्जी की 3 सदस्यीय पीठ के समय सुनवाई पर अपने वकीलों को नहीं भेजा था। सर्वोच्च न्यायालय ने याचिका पर सुनवाई करते हुए 27 जुलाई तक उन सभी आदिवासियों जिनके दावे खारिज हो गए और उन सभी को बेदखल करने के आदेश दिए थे और इसकी रिपोर्ट भी पेश करने के निर्देश दिए हैं।
जयस करेगा आंदोलन
आदिवासियों के हक की लड़ाई लडऩे वाला और मध्यप्रदेश में खासा सक्रिय संगठन जयस (जय आदिवासी युवा शक्ति संगठन) अब आदिवासियों की जमीन बचाने के लिए मोदी सरकार के खिलाफ बड़ा आंदोलन करने की तैयारी में है। जयस के राष्ट्रीय संरक्षक हीरालाल अलावा ने सर्वोच्च न्यायालय के फैसले पर निराशा जताते हुए केंद्र की मोदी सरकार पर भी कई सवाल उठाए हैं। हीरालाल अलावा ने केंद्र सरकार से मांग की है, आदिवासियों की जमीन बचाने के लिए सरकार तुंरत एक अध्यादेश लेकर आए।
Naveen Savita
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