सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, धारा 497 खत्म, पवित्र समाज में व्यक्तिगत मर्यादा महत्वपूर्ण
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नई दिल्ली/स्वदेश वेब डेस्क। सुप्रीम कोर्ट भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 497 (व्यभिचार) की वैधता को लेकर अपना अहम फैसला सुनाया है। कोर्ट में मुख्य न्यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्रा ने फैसला पढ़ते हुए कहा कि जस्टिस मिश्रा ने कहा कि संविधान सभी के लिए है और समानता समय की जरूरत है। सुप्रीम कोर्ट ने धारा 497 खाजिर कर दिया है। बता दें कि यह कानून 150 साल पुराना है। सुप्रीम कोर्ट में चार जजों की बैंच में दो जज चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस खानविलकर ने अपना फैसला पढ़ते हुए कहा कि व्यभिचार अपराध नहीं हो सकता।
Supreme Court in its majority judgement says "adultery not a crime" pic.twitter.com/8PvDOMwVId
— ANI (@ANI) September 27, 2018
कोर्ट ने कहा कि चीन, जापान, ऑस्ट्रेलिया और यूरोप के कई देशों में व्यभिचार अब अपराध नहीं है। कोर्ट ने यह भी कहा कि धारा 497 मनमाने अधिकार देती है। फैसला पढ़ते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'पति पत्नी का मालिक नहीं है, महिला की गरिमा सबसे ऊपर है। महिला के सम्मान के खिलाफ आचरण गलत है। पत्नी 24 घंटे पति और बच्चों की ज़रूरत का ख्याल रखती है।' कोर्ट ने कहा कि यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमयन्ते तत्र देवता, यानी जहां नारी की पूजा होती है वहां देवता निवास करते हैं।
कोर्ट ने यह भी कहा, 'सेक्शन 497 पुरुष को मनमाना अधिकार देने वाला है। ये अनुच्छेद 21 (गरिमा से जीवन का अधिकार) के खिलाफ है। घरेलू हिंसा कानून से स्त्रियों को मदद मिली लेकिन धारा 497 भी क्रूरता है।' कोर्ट ने कहा, 'व्यभिचार को अपराध बनाए रखने से उन पर भी असर जो वैवाहिक जीवन से नाखुश हैं, जिन का रिश्ता टूटी हुई सी स्थिति में है। हम टाइम मशीन में बैठकर पूराने दौर में नहीं जी सकते।'
बेंच के सदस्य जस्टिस रोहिंटन नरीमन ने कहा, 'समानता का अधिकार सबसे अहम है। कानून महिला से भेदभाव नहीं कर सकता। ये ज़रूरी नहीं कि हमेशा पुरुष ऐसे रिश्तों की तरफ महिला को खींचे, समय बदल चुका है।' कोर्ट ने कहा, 'व्यभिचार अपने आप में अपराध नहीं है। अगर इसके चलते आत्महत्या जैसी स्थिति बने या कोई और जुर्म हो तो इसे संशोधन की तरह देखा जा सकता है।'
बता दें, 9 अगस्त को हुई सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली पांच जजों की संविधान पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही है जिसमें जस्टिस आर एफ नरीमन, जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस इंदू मल्होत्रा और जस्टिस ए एम खानविलकर शामिल हैं।
आठ अगस्त को अतिरिक्त सॉलीसीटर जनरल पिंकी आनंद के जिरह पूरी करने के बाद कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। केंद्र सरकार ने व्यभिचार पर आपराधिक कानून को बरकरार रखने की वकालत करते हुए कहा था यह एक गलत चीज है जिससे जीवनसाथी, बच्चों और परिवार पर असर पड़ता है। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि आईपीसी की धारा 497 को कमजोर करने से देश के उस मौलिक लोकाचार को नुकसान होगा, जिससे संस्था को परम महत्व प्रदान किया जाता है और विवाह की शुचिता बनी रहती है।
Swadesh Digital
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