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डोभाल की जॉन बोल्टन से हुई द्विपक्षीय वार्ता

डोभाल की जॉन बोल्टन से हुई द्विपक्षीय वार्ता
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वॉशिंगटन/स्वदेश वेब डेस्क। भारत के सुरक्षा सलाहकार अजित दोभाल ने अमेरिकी के साथ द्विपक्षीय कूटनीतिक और रक्षा संबंधों पर यहां राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के सुरक्षा सलाहकार जॉन बोल्टन से खुशनुमा माहौल में बातचीत की। उनके साथ भारतीय राजदूत नवतेज सरना भी थे। एक उच्चाधिकारी की मानें तो बातचीत अच्छी और लाभप्रद रही। डोभाल ने विदेश मंत्री माइक पोंपियो और रक्षा मंत्री जेम्स मैटिस से भेंट के दौरान उन्हें भारतीय हितों के साथ-साथ क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दों पर अपनी चिंताओं से अवगत कराया।दोभाल की बोलटन से यह पहली मुलाकात थी।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रूस के साथ पिछले सत्तर वर्षों से चले आ रहे रक्षा और कूटनीतिक संबंधों के परिप्रेक्ष में अजित डोभाल ने अमेरिकी सुरक्षा सलाहाकार जॉन बोल्टन से कूटनीतिक संबंधों की भावी दिशा के बारे में बातचीत की। इनमें दिल्ली में दो+दो मंत्री स्तरीय वार्ता के सिलसिले में रक्षात्मक और कूटनीतिक द्विपक्षीय संबंधों की दिशा में अनेक वैश्विक मुद्दों पर भी बातचीत हुई। वैश्विक मुद्दों में अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान, चीन, उत्तरी कोरिया और ईरान के साथ संबंधों पर चर्चा हुई है। अफ़ग़ानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ़ गनी 19 सितम्बर को भारत आ रहे हैं, जबकि रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का अगले महीने दिल्ली आना तय है।

बताया जा रहा है कि प्रधानमंत्री मोदी ने दिल्ली में 05 और 06 सितम्बर को दिल्ली में हुई दो प्लस दो मंत्री स्तरीय वार्ता से पहले विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण से भारत-रूस तथा भारत-अमेरिका के बीच कूटनीतिक संबंधों के सिलसिले में खुलकर चर्चा की थी। भारत का यह दृढ़ मत रहा है कि उसके रूस के साथ सत्तर वर्षों से रक्षा और कूटनीतिक संबंध रहे हैं, जिसे वह नज़रंदाज नहीं करना चाहेगा। इन सात दशकों में भारत ने रूस के साथ रक्षा सौदों में सदेव पहल की है। अभी अमेरिका ने रूस से एस.--400 रक्षा मिसाइल सौदे के बारे में भारत को हरी झंडी नहीं दिखाई है। इसके अलावा अमेरिका की यह कोशिश तो है कि भारत ईरान के खिलाफ आर्थिक प्रतिबंधों के सिलसिले में तेल की आपूर्ति कतई शून्य स्तर पर ले आए, लेकिन ईरान के साथ प्राचीन संबंधों को देखते हुए भारत की यह भी कोशिश है कि अमेरिका सेंट्रल एशिया में भारतीय हितों को देखते हुए अपेक्षित छूट देगा। भारत के ईरान के साथ प्राचीन सांस्कृतिक संबंधों के साथ-साथ खाड़ी में स्ट्रेट आफ होर्मुज स्थित चाबहार बंदरगाह को सेंट्रल एशिया में अपने व्यापारिक हितों के लिए महत्वपूर्ण समझता आया है।

भारत की इन चिंताओं पर अमेरिका क्या रूख अपनाएगा, अभी कहना कठिन है। इसके बावजूद यह कहा जा रहा है कि मौजूदा क्षेत्रीय और वैश्विक चुनौतियों के मद्देनज़र अमेरिका के लिए भारत एक बेहतर सामरिक साझीदार है। अमेरिका एक ओर अफ़ग़ानिस्तान से सम्मान के साथ निकलना चाहता है, तो दूसरी ओर क्षेत्र में चीन की आक्रामक रवैए पर अंकुश भी लगाने के लिए उत्सुक है।

Updated : 16 Sep 2018 12:49 PM GMT
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स्वदेश वेब डेस्क www.swadeshnews.in


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