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#Loksabha2019 : हार.. हार.. अब जीत की दरकार

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विदिशा-इंदौर, उज्जैन सहित अन्य सीटों पर कांग्रेस को नहीं मिली वर्षों से जीत

सुमित शर्मा। विधानसभा चुनाव में भले ही कांग्रेस ने विदिशा, इंदौर और उज्जैन में कुछ सीटों पर जीत दर्ज करा ली है, लेकिन अब लोकसभा में भी जीत की दरकार है। विदिशा और इंदौर जैसी सीटों पर भाजपा का पिछले कई लोकसभा चुनावों से कब्जा है, लेकिन अब इन सीटों पर जीतने के लिए कांग्रेस भी जोर लगा रही है। कांग्रेस इस बार जहां किसान कर्जमाफी सहित अन्य मुद्दों के साथ चुनावी मैदान में है तो भाजपा एयर स्ट्राईक एवं भ्रष्टाचार समाप्त करके इसका श्रेय ले रही है। मुकाबला रोचक है। हम पिछले दो दिनों से लोकसभा सीटों की श्रृंखला चला रहे हैं। इसी कड़ी में आज शेष लोकसभा सीटों की स्थिति बना रहे हैं। पेश है विस्तृत रिपोर्ट...

भोपाल


अब तक कांग्रेस के लिए 'कठिन' सीट रही भोपाल से इस बार दिग्विजय सिंह को मैदान में उतारा गया है। भोपाल लोकसभा सीट करीब तीन दशकों से भाजपा के पास है। यहां पर कांग्रेस जीतने के लिए कई तरह के जतन करने में जुटी हुई है। पूरा संगठन का भोपाल सीट पर फोकस है। वर्ष 1991 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के सुशीलचंद्र वर्मा ने कांग्रेस के मो. मंसूर अली पटौदी को 102208 मतों से पराजित किया था। इसके बाद वर्ष 1996 और 1998 के आम चुनाव में भी यहां से सुशीलचंद्र वर्मा ही सांसद चुने गए। वर्ष 1999 में भोपाल से उमाभारती को मैदान में उतारा। उन्होंने कांग्रेस के सुरेश पचौरी को बड़े अंतराल से हराया। वर्ष 2004 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने कैलाश जोशी को टिकट दिया। उन्होंने कांग्रेस के शाजिद अली को तीन लाख से अधिक मतों से पराजित किया। वर्ष 2009 के आम चुनाव में भी यहां से कैलाश जोशी सांसद चुने गए। वर्ष 2014 में भोपाल सीट से आलोक संजर को टिकट दिया गया। उन्होंने कांग्रेस के पीसी शर्मा को तीन लाख 70 हजार के बड़े अंतराल से हराया। हालांकि पीसी शर्मा ने विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज कराई और मंत्री बनाए गए।

विदिशा


राजधानी भोपाल से सटे लोकसभा क्षेत्र विदिशा की सीमा बुधनी विधानसभा क्षेत्र तक जाती है। इस सीट पर वर्ष 1991 के बाद से भाजपा ही जीतती आ रही है। यह सीट ऐतिहासिक सीट है। यहां से भाजपा के कई दिग्गज नेताओं ने लोकसभा का चुनाव लड़ा और जीते भी। वर्ष 1991 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने यहां से पूर्व प्रधानमंत्री स्व. अटलबिहारी वाजपेयी को मैदान में उतारा था। उनके सामने कांग्रेस ने अपने दिग्गज नेता प्रतापभानु शर्मा को टिकट दिया। अटलबिहारी वाजपेयी ने प्रतापभानु शर्मा को एक लाख 4 हजार से अधिक मतों से पराजित किया। अटलजी को यहां से 279232 मत मिले थे, जबकि प्रतापभानु शर्मा को 175098 मत मिले। इसके बाद वर्ष 1996 के लोकसभा चुनाव में यहां से शिवराज सिंह चौहान को भाजपा ने अपना उम्मीदवार बनाया। वे यहां से 1 लाख 75 हजार से अधिक मतों से जीते। शिवराज सिंह चौहान वर्ष 1998, वर्ष 1999 और वर्ष 2004 में भी सांसद चुने गए। 2005 में वे प्रदेश के मुख्यमंत्री बन गए। इसके बाद यहां पर उपचुनाव हुए। इस उपचुनाव में रामपाल सिंह को टिकट दिया गया। उन्होंने कांग्रेस के राजश्री को 85 हजार से अधिक मतों से हराया। वर्ष 2009 और 2014 के लोकसभा चुनाव में इस सीट से केंद्रीय मंत्री सुषमा स्वराज सांसद चुनी गईं। हालांकि इस बार उन्होंने लोकसभा चुनाव लडऩे से इनकार कर दिया है। फिलहाल भाजपा और कांग्रेस ने यहां से अपना उम्मीदवार अब तक घोषित नहीं किया है।

ये हैं विधानसभा सीटें : भोजपुर, सांची, सिलवानी, विदिशा, बासौदा, बुधनी, इछावर और खातेगांव। आठ में से 6 सीट भाजपा और 2 कांग्रेस के पास है।

राजगढ़


दिग्विजय सिंह के प्रभाव वाली राजगढ़ सीट पर भाजपा-कांग्रेस दोनों ही जीतती रही हैं। वर्ष 1991 के आम चुनाव में यहां से दिग्विजय सिंह सांसद चुने गए। उन्होंने भाजपा के प्यारेलाल खंडेलवाल को 1470 मतों से पराजित किया। इसके बाद वर्ष 1996 के लोकसभा चुनाव में भी भाजपा के प्यारेलाल खंडेलवाल को दिग्विजय सिंह के भाई लक्ष्मण सिंह के हाथों 25 हजार से अधिक मतों से हार झेलनी पड़ी। इसके बाद वर्ष 1998 और वर्ष 1999 के चुनाव में भी लक्ष्मण सिंह यहां से सांसद चुने गए। वर्ष 2004 के लोकसभा चुनाव से पहले लक्ष्मण सिंह भाजपा में शामिल हो गए और भाजपा ने उन्हें अपना उम्मीदवार बनाकर मैदान में उतारा। इस बार भी लक्ष्मण सिंह ने जीत दर्ज कराई। उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी शंभूसिंह को 36 हजार से अधिक मतों से हराया। वर्ष 2009 के आम चुनाव में भी भाजपा ने लक्ष्मण सिंह को टिकट दिया, लेकिन इस बार उन्हें कांग्रेस के नारायण ङ्क्षसह ने पराजित कर दिया। 2014 के आम चुनाव में यहां से भाजपा ने रोडमल नागर को टिकट दिया। उन्होंने कांग्रेस के नारायण ङ्क्षसह अम्लाबे को 2 लाख 28 हजार से अधिक मतों से पराजित किया।

ये हैं विधानसभा सीटें : चाचौड़ा, राघवगढ़, नरसिंहगढ़, ब्यावरा, राजगढ़, खिलचीपुर, सारंगपुर और सुसनेर। वर्तमान में पांच सीटें कांग्रेस, दो सीटें भाजपा और एक पर निर्दलीय विधायक हैं।

खरगौन


खरगौन लोकसभा सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीट है। यहां पर भाजपा की जीत का पलड़ा ज्यादा भारी है। हालांकि कांंग्रेस ने भी यहां से लोकसभा चुनाव जीता है। वर्ष 1991 में यहां से भाजपा के रामेश्वर पाटीदार ने कांग्रेस के दिग्गज नेता सुभाष यादव को 13 हजार से ज्यादा मतों से पराजित किया। इसके बाद वर्ष 1996 एवं वर्ष 1998 के लोकसभा चुनाव में भी रामेश्वर पाटीदार ही सांसद चुने गए। वर्ष 1999 में भाजपा ने बालकृष्ण पाटीदार को टिकट दिया, लेकिन उन्हें कांंग्रेस के ताराचंद पटेल ने 38 हजार से अधिक मतों से पराजित किया। वर्ष 2004 में यहां से भाजपा के कृष्णमुरारी मोघे सांसद चुने गए। उन्होंने कांग्रेस के ताराचंद शिवाजी पटेल को हराया। 2004 के बाद यहां पर उपचुनाव हुए। इसमें कांग्रेस के अरूण यादव ने कृष्णमुरारी मोघे को हरा दिया। 2009 में मकन सिंह ने कांग्रेस के बाला बच्चन को हराया। 2014 में भाजपा ने सुभाष पटेल को चुनावी मैदान में उतारा। उन्होंने कांग्रेस के रमेश पटेल को ढाई लाख से अधिक मतों से हराया।

ये हैं विधानसभा सीटें : महेश्वर, कसरावद, खरगौन, भगवानपुरा, सेंधवा, राजपुर, पानसेमल और बड़वानी। वर्तमान में 6 सीटों पर कांग्रेस, एक पर भाजपा और एक पर निर्दलीय विधायक हैं।

शाजापुर-देवास


2007 में हुए परिसीमन में शाजापुर लोकसभा सीट को समाप्त करके देवास को अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित लोकसभा सीट बनाया गया। देवास सीट 2009 के लोकसभा चुनाव से अस्सित्व में आई। 2009 में यहां से भाजपा ने थावरचंद्र गेहलोत को टिकट दिया, लेकिन उन्हें कांग्रेस के सज्जन सिंह वर्मा ने शिकस्त दे दी। वर्ष 2014 में कांग्रेस के सज्जन सिंह वर्मा को भाजपा प्रत्याशी मनोहर ऊंटवाल ने 2 लाख 60 हजार से अधिक मतों से हराया। इससे पहले यह सीट शाजापुर थी। वर्ष 1991 के लोकसभा चुनाव में यहां से भाजपा के फूलचंद वर्मा ने कांग्रेस के बापूलाल मालवीय को हराया। वर्ष 1996 के लोकसभा चुनाव में यहां से भाजपा ने फिर थावरचंद्र गेहलोत को चुनावी मैदान में उतारा। थावरचंद्र गेहलोत वर्ष 1998, वर्ष 1999 और वर्ष 2004 में भी यहां से सांसद चुने गए।

ये हैं विधानसभा सीटें : आष्टा, आगर-मालवा, शाजापुर, शुजालपुर, कालापीपल, सोनकच्छ, देवास और हाटपिपल्या। वर्तमान में चार-चार सीटों पर भाजपा और कांग्रेस दोनों के विधायक हैं।

उज्जैन


उज्जैन लोकसभा सीट पर भी वर्ष 1991 के बाद से ज्यादातर भाजपा की जीत होती रही है। 1991 के आम चुनाव में यहां से डॉ. सत्यनारायण जटिया ने कांग्रेस के सज्जन सिंह वर्मा को हराया था। इसके बाद वर्ष 1996, वर्ष 1998, वर्ष 1999 और वर्ष 2004 में भी डॉ. सत्यनारायण जटिया ही सांसद चुने गए। वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने भाजपा से यह सीट छीन ली। कांग्रेस के प्रेमचंद्र गुड्डू ने सत्यनारायण जटिया को हरा दिया। हालांकि 2014 में भाजपा के चिंतामणि मालवीय ने इस सीट से जीत दर्ज कराई।

ये हैं विधानसभा सीटें : नागदा खाचरौद, महिदपुर, तराना, घट्टिया, उज्जैन उत्तर, उज्जैन दक्षिण, बडऩगर और आलोट। वर्तमान में पांच सीटें कांग्रेस और तीन पर भाजपा के विधायक हैं।

मंदसौर


मंदसौर लोकसभा सीट भाजपा के लिए लकी रही है। यहां पर वर्ष 1991 में हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा के डॉ. लक्ष्मीनारायण पांडेय ने कांग्रेस के महेंद्र सिंह को शिकस्त दी। इसके बाद वर्ष 1996, वर्ष 1998, वर्ष 1999 और वर्ष 2004 के चुनाव में डॉ. लक्ष्मीनारायण पांडेय ही सांसद चुने गए। वर्ष 2009 के चुनाव में यहां से कांग्रेस की मीनाक्षी नटराजन सांसद बनीं। हालांकि 2014 में भाजपा के सुधीर गुप्ता ने यहां से जीत दर्ज कराई। भाजपा ने एक बार फिर यहां से सुधीर गुप्ता को मैदान में उतारा है।

ये हैं विधानसभा सीटें : जावरा, मंदसौर, मल्हारगढ़, सुवासरा, गरोठ, मनासा, नीमच और जावद। वर्तमान में 7 सीटों पर भाजपा और एक पर कांग्रेस विधायक हैं।

रतलाम


वर्ष 2007 में हुए परिसीमन में रतलाम सीट को नई लोकसभा सीट बनाया गया। इसे अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित रखा गया है। यहां पर अब तक दो लोकसभा चुनाव हुए हैं। वर्ष 2009 में हुए चुनाव में कांग्रेस के कांतिलाल भूरिया ने भाजपा के दिलीप सिंह भूरिया को शिकस्त दी। वर्ष 2014 के आम चुनाव में यहां से भाजपा के दिलीप सिंह भूरिया जीते। उन्होंने कांतिलाल भूरिया को हराया। बाद में भाजपा सांसद दिलीप सिंह भूरिया के निधन से इस सीट पर उपचुनाव हुए। इस उपचुनाव में कांग्रेस के कांतिलाल भूरिया पुन: सांसद चुने गए। कांग्रेस ने उनको फिर से इसी सीट से टिकट दिया है।

ये हैं विधानसभा सीटें : अलीराजपुर, जोबट, झाबुआ, थांदला, पेटलावद, रतलाम ग्रामीण, रतलाम शहर और सैलाना। वर्तमान में पांच सीटों पर कांग्रेस और तीन पर भाजपा के विधायक हैं।

धार


धार लोकसभा सीट पर भाजपा और कांग्रेस दोनों ही जीतते रहे हैं। वर्ष 1991 में यहां से कांग्रेस के सूरजभानु सोलंकी ने भाजपा के धीरेंद्र सिंह चौहान को हराया था। वर्ष 1996 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के छतरसिंह दरबार ने यहां से जीत दर्ज की। उन्होंने सुरजभानु सोलंकी को हराया। वर्ष 1998 एवं वर्ष 1999 के आम चुनाव में यहां से कांग्रेस के गजेंद्र सिंह राजूखेड़ी जीते। 2004 में भाजपा के छतरसिंह दरबार ने फिर यहां से जीत दर्ज कराई। 2009 में कांग्रेस के गजेंद्रसिहं राजखेड़ी ने भाजपा के मुकाम सिंह किराड़ को हराया, लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की सावित्री ठाकुर ने उमंग सिंघार को एक लाख 4 हजार से अधिक मतों से पराजित किया।

ये हैं विधानसभा सीटें : सरदारपुर, गंधवानी, कुक्षी, मनावर, धरमपुरी, धार, बदनावर और मऊ। वर्तमान में 6 सीटों पर कांग्रेस और 2 पर भाजपा के विधायक हैं।

इंदौर


इंदौर लोकसभा की सीट भाजपा के लिए अजेय है। यहां पर 8 बार से सुमित्रा महाजन सांसद हैं। उनके सामने कांग्रेस ने अपने सभी दिग्गजों को चुनावी मैदान में उतारा, लेकिन सुमित्रा महाजन को कोई भी नेता हराने में कामयाब नहीं हो सका। इस बार कांग्रेस इस सीट से उम्मीद कर रही है कि जीत उनकी झोली में ही जाएगी। हालांकि अब तक दोनों दलों ने यहां से अपने उम्मीदवारों के नामों का ऐलान नहीं किया है। वर्ष 1991 के आम चुनाव में सुमित्रा महाजन ने कांग्रेस के ललित जैन को 80 हजार से अधिक मतों से हराया। वर्ष 1996 के चुनाव में कांग्रेस के मधुकर वर्मा एक लाख से अधिक मतों से हारे। इसके बाद वर्ष 1998, वर्ष 1999, वर्ष 2004, वर्ष 2009 और 2014 के लोकसभा चुनाव में भी सुमित्रा महाजन बड़े अंतराल से जीतती रहीं।

ये हैं विधानसभा सीटें : देपालपुर, इंदौर 1, इंदौर 2, इंदौर 3, इंदौर 4, इंदौर 5, राऊ और सांवेर। वर्तमान में चार-चार विधानसभा सीटों पर भाजपा-कांग्रेस दोनों के विधायक हैं।

खंडवा


खंडवा लोकसभा सीट पर भाजपा-कांग्रेस दोनों ही विजयी होते रहे हैं। वर्ष 1991 में यहां से कांग्रेस के महेंद्र कुमार सिंह ने भाजपा के अमृतलाल तारवाला को हराया था। इसके बाद वर्ष 1996 के आम चुनाव में नंदकुमार चौहान ने कांग्रेस के शिवकुमार सिंह को हराया। वर्ष 1998, वर्ष 1999 और वर्ष 2004 में भी यहां से नंदकुमार सिंह चौहान ही सांसद चुने गए, लेकिन 2009 में कांग्रेस के अरूण यादव ने खंडवा सीट पर जीत दर्ज कराई। हालांकि 2014 में भाजपा के नंदकुमार सिंह चौहान ने इस सीट पर फिर से कब्जा जमाया। वर्तमान में भी यहां से नंदकुमार सिंह चौहान ही भाजपा के उम्मीदवार हैं।

ये हैं विधानसभा सीटें : बागली, मांधाता, खंडवा, पंधाना, नेपानगर, बुरहानपुर, भीकनगांव और बड़वाह। वर्तमान में चार सीटों पर कांग्रेस, तीन पर भाजपा और एक पर निर्दलीय विधायक हैं।

बैतूल


बैतूल संसदीय सीट पर भी ज्यादातर समय भाजपा का ही कब्जा रहा है। यह सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है। यहां से वर्ष 1991 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के असलमशेर खान ने भाजपा के आरिफ बेग को शिकस्त दी थी। इसके बाद वर्ष 1996 में यहां से भाजपा के विजय कुमार खंडेलवाल ने कांग्रेस के असलमशेर खान को हराया। वर्ष 1998, वर्ष 1999 और वर्ष 2004 में भी भाजपा के विजय कुमार खंडेलवार ही सांसद चुने गए। इसके बाद वर्ष 2009 और 2014 में भाजपा ने यहां से ज्योति धुर्वे को टिकट देकर चुनावी मैदान में उतारा और उन्होंने यहां से जीत भी दर्ज कराई। इस बार उनका टिकट काट दिया गया है।

ये हैं विधानसभा सीटें : मुलताई, आमला, बैतूल, घोड़ाडोंगरी, भैंसदेही, टिमरनी, हरदा और हरसूद। वर्तमान में चार-चार सीटों पर भाजपा और कांग्रेस दोनों के विधायक हैं।

झाबुआ लोकसभा सीट को समाप्त कर दिया

वर्ष 2007 के परिसीमन में झाबुआ लोकसभा सीट को समाप्त कर दिया गया, लेकिन वर्ष 1991 से लेकर वर्ष 2004 के लोकसभा चुनाव में यहां पर कांग्रेस का ही कब्जा रहा। वर्ष 1991 में दिलीप सिंह भूरिया ने भाजपा की रेलम चौहान को एक लाख 34 हजार से अधिक मतों से हराया। वर्ष 1996 में यहां से पुन: दिलीपसिंह भूरिया सांसद चुने गए। वर्ष 1998 में दिलीपसिंह भूरिया भाजपा में शामिल हो गए और भाजपा ने उन्हें अपना उम्मीदवार भी बनाया, लेकिन इस बार उन्हें कांग्रेस के कांतिलाल भूरिया से चुनाव हारना पड़ा। इसके बाद वर्ष 1999 और वर्ष 2004 में भी यहां से कांतिलाल भूरिया ही सांसद चुने गए।

Updated : 4 April 2019 11:40 AM GMT
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Swadesh Digital

स्वदेश वेब डेस्क www.swadeshnews.in


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