Home > एक्सक्लूसिव > भूल सुधार तो हो गई, क्या भरोसा टूटने से भी बच गया?

भूल सुधार तो हो गई, क्या भरोसा टूटने से भी बच गया?

गिरीश उपाध्याय

भूल सुधार तो हो गई, क्या भरोसा टूटने से भी बच गया?
X

गुरुवार को देश की बुजुर्ग आबादी जितनी चिंतित थी उसे उतना चिंतित बहुत कम देखा गया। यूं तो बुजुर्गों की स्थिति और उनके साथ होने वाले व्यवहार के मामले में वैसे भी हालात कोई बहुत ठीक नहीं है, लेकिन बुधवार को जब यह खबर आई कि सरकार ने तमाम अल्प बचत योजनाओं और मियादी जमा योजनाओं पर दिए जाने वाले याज की राशि में भारी कटौती कर दी है तो उम्र के आखिरी पड़ाव से गुजर रही पीढ़ी सकते में आ गई। दरअसल विा मंत्रालय ने एक अधिसूचना जारी की जिसमें बताया गया था कि तमाम अल्प बचत योजनाओं और अन्य जमा योजनाओं पर बैंकों की ओर से दिए जाने वाले याज में एक से डेढ़ प्रतिशत की कटौती कर दी गई है। जैसे ही यह खबर आई हडकंप मच गया। उन बुजुर्गों पर तो जैसे पहाड़ सा गिरा जो कमजोर शारीरिक स्थिति के चलते काम करने में असमर्थ हैं और जिन्होंने बुढ़ापे में जैसे तैसे अपना काम चलाने के लिए जीवन भर की पूंजी को इसी तरह की योजनाओं या फिर मियादी जमा योजनाओं में रखा हुआ है।

इन योजनाओं से मिलने वाले याज की राशि ही एक तरह से उनकी आजीविका का आधार है। इसमें कटौती किए जाने की खबर ने बैठे बिठाए उनसे वह बहुत बड़ा सहारा छीनने का काम किया जिसके बूते वे थोड़ी बहुत आश्वस्ति के साथ अपना जीवन गुजार सकने की उमीद लगाए हुए थे। दिन भर इस मामले में भारी हलचल रही। सोशल मीडिया पर तो जैसे इस निर्णय के खिलाफ प्रतिक्रियाओं की बाढ़ सी आ गई। इन प्रतिक्रियाओं में गुस्सा भी था और पीड़ा भी। लोग सवाल कर रहे थे कि कोरोना काल में जब जवानों तक के रोजगार छिन रहे हैं, ऐसे में बुजुर्गों को अव्वल तो कोई रोजगार मिलना मुश्किल है और जिस जमा पूंजी से वे अपना बाकी जीवन गुजार लेने की उमीद लगाए थे उस पर भी सरकार ने कुल्हाड़ी चला दी है। अब इसे भारी आलोचनाओं या प्रतिक्रियाओं का असर कहें या कुछ और लेकिन चंद घंटों बाद ही विा मंत्री निर्मला सीतारमण की ओर से एक स्पष्टीकरण आया जिसमें कहा गया था कि बचत योजनाओं में याज की कटौती संबंधी यह सूचना भूल से जारी हो गई थी जिसे वापस लिया जा रहा है। योजनाओं पर याज की स्थिति फिलहाल यथावत रहेगी। विा मंत्री के इस बयान ने उन सारे लोगों को बहुत बड़ी राहत दी जो सुबह आई सूचना के बाद भविष्य की चिंता में घिर गए थे। लेकिन सवाल उठता है कि आखिर यह अधिसूचना जारी कैसे हुई। या यह 1 अप्रैल को देश के तमाम बचतकर्ताओं या खासतौर से बुजुर्ग पीढ़ी से किया गया कोई मजाक था या फिर इसके पीछे कोई सोची समझी निर्णयों की श्रृंखला थी या कि जैसा विा मंत्री ने कहा, वास्तव में यह कोई भूल ही थी, जिसे ध्यान में आते ही सुधार लिया गया। वैसे यह बात गले उतारना मुश्किल है कि जो विा मंत्रालय छोटी से छोटी बात पर भी बारीक नजर रखता है और जिस पर देश की अर्थव्यवस्था की नज को संभाले रखने की जिमेदारी है वहां इस तरह की भूल हो जाए और वह भूल एक फैसले के रूप में अमल के लिए जारी भी कर दी जाए।

ऐसा कैसे हो सकता है कि, इस तरह का, इतना बड़ा फैसला वित मंत्री की जानकारी के बिना या उन्हें बताए बिना ले लिया गया हो। यदि ऐसा हुआ है तो यह और भी गंभीर मामला है। आखिर वे कौन लोग हैं जो विा मंत्री को भी बायपास करके इस तरह सरकार को मुश्किल में डालने वाले फैसले न सिर्फ कर रहे हैं बल्कि बालाबाला उनकी सूचनाएं भी जारी की जा रही हैं। और यदि यह सब कुछ वित्त मंत्री की प्रत्यक्ष या परोक्ष जानकारी में था, तो फिर उन्होंने इसे जारी करने से पहले ही यों नहीं रोक लिया। आखिर चंद घंटों के भीतर निर्णय वापस लेकर सरकार की फजीहत होने की नौबत ही यों आने दी गई? वैसे यह बात सही है कि सरकार के तमाम मंत्रालयों में से विा मंत्रालय एक ऐसा मंत्रालय है जो इन दिनों सबसे अधिक तनाव में है और जिस पर परफार्मेंस का दबाव तो है ही, बिगड़ते आर्थिक हालात सुधारने की जिमेदारी भी है। कोरोना काल ने जिस तरह देश की अर्थव्यवस्था को मटियामेट किया है उसके चलते विा मंत्रालय की स्थिति एक तरफ कुआं और दूसरी तरफ खाई जैसी है। बावजूद इतने विपरीत हालातों के देश के विाीय हालात धीरे धीरे सुधर रहे हैं। यह जीएसटी संग्रहण के आंकड़ों से स्पष्ट है। वहीं मोदी सरकार उज्जवला योजना प्रधानमंत्री आवास, आयुष्मान, जैसी कई योजनाओं के जरिए लाखों गरीब परिवारों के जीवन में रंग भर रहे हैं। पर यह भी सच है कि निम्न मध्यम वर्ग बेहद दबाव में है जिस पर गौर करने की आवश्यकता है। यदि वह राजस्व उगाही के उपाय नहीं करता तो बजट घाटा उसकी मुसीबत बढ़ाएगा और यदि करता है तो जनता हाहाकार करेगी। घाटा तो सरकार एक बार सहन कर भी ले लेकिन जनता का हाहाकार वह सामाजिक और आर्थिक ही नहीं राजनीतिक कारणों से भी सहन करने की स्थिति में नहीं ह

और यही वजह रही होगी कि विा मंत्री को आनन फानन में चंद घंटों के भीतर ही अपने मंत्रालय के ऐलान को वापस लेना पड़ा। सरकार ने तत्काल फैसला वापसी कर न सिर्फ अपनी और अधिक फजीहत होने से बचाई है, बल्कि बुजुर्गों और उन तमाम लोगों का भरोसा टूटने से भी बचाया है जो अपनी जिंदगी भर की जमा पूंजी बैंकों या सरकारी बचत योजनाओं में निश्चिंत भाव से निवेश किये बैठे हैं। वैसे भी बैंकों की कार्यप्रणाली की इन दिनों जो स्थिति है उसके चलते बैंकिंग व्य्वस्था पर से लोगों का विश्वास डिगा है। लेकिन फिर भी लोग यदि वहां अपना पैसा रखे हुए हैं तो उसके पीछे यह विश्वास ही है कि सरकार उनकी संरक्षणदाता बनकर कठिन समय में उनके साथ खड़ी होगी और उनके हितों की हत्या नहीं होने देगी। सरकार ने उचित समय पर हस्तक्षेप कर इस भरोसे को नष्ट होने से फौरी तौर पर बचा तो लिया है, लेकिन यह देखना भी जरूरी होगा कि यह निर्णय स्थायी रूप से वापस लिया गया है या फिर उसके पीछे चार राज्यों व एक केंद्र शासित प्रदेश में हो रहे चुनाव में, इस फैसले के चलते होने वाले नुकसान की आशंका की भी कोई भूमिका रही है। निश्चित रूप से इसके लिए प्रतीक्षा करनी होगी। केंद्र सरकार देश हित में और आमजन के भरोसे पर खरा उतरने का कोई ठीक रास्ता ढूंढेगी, ऐसा विश्वास करना चाहिए।

Updated : 4 April 2021 1:02 PM GMT
Tags:    
author-thhumb

Swadesh News

Swadesh Digital contributor help bring you the latest article around you


Next Story
Top