नवरात्रि का चतुर्थ दिवस : अप्रतिम व्यक्तित्व की धनी सुमित्रा
महिमा तारे
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सुमित्रा रामायण का सबसे उपेक्षित पात्र है। दो तीन प्रसंगों से ही हम उनके व्यक्तित्व को समझने का प्रयत्न करेंगे। राजा दशरथ की साढ़े तीन सौ रानियों में से हमें तीन रानियों के नाम मिलते हैं। ये तीन रानियां हैं कौशल्या, सुमित्रा और कैकेयी। जिन्हें देवताओं ने क्रमश ह्रीं, श्री और कीर्ति से संबोधित किया है। इनमें से दूसरे स्थान पर सुमित्रा है जिन्हें श्री से संबोधित किया गया है। श्री यानि धर्म और बुद्धि । सुमित्रा कहा की राजकुमारी थी इसका वर्णन वाल्मीकी जी ने नहीं किया है। जबकि कौशल्या कौशल प्रदेश की और कैकेयी, कैकेय प्रदेश से संबंध रखती है।
जब राजा दशरथ ने पुत्र कामेष्ठी यज्ञ किया और यज्ञ से प्रसन्न होकर जब अग्निदेवता खीर लेकर प्रकट हुए उस समय राजा दशरथ ने खीर का आधा भाग लेकर कौशल्या को दिया। आधे भाग का आधा सुमित्रा को दिया। फिर जो एक चौथाई भाग बचा था उसको भी दो भागों में बांटा गया और आधा हिस्सा कैकेयी को दिया, और शेष बचा हुआ भाग पुन: सुमित्रा को दिया। यहां पर राजा दशरथ का व्यवहार देखने वाला है। उन्होंने सोच समझकर ही दो बार सुमित्रा को खीर का प्रसाद दिया होगा। इसलिए उन्होंने दो पुत्रों को जन्म दिया लक्ष्मण और शत्रुघन।
राजा दशरथ द्वारा राम को 14 वर्ष का वनवास देने पर जब राम कौशल्या के पास जाते हैं तो कौशल्या के दु:ख का विशद वर्णन रामायण और राम चरित्र मानस में किया गया है। किस तरह कौशल्या राम के वनवास का समाचार सुनकर मूर्छित हो जाती है। वहीं लक्ष्मण जब सुमित्रा से राम के साथ वन जाने की बात बाताते हैं तो वे धर्म और बुद्धि का परिचय देती है। वे न सिर्फ लक्ष्मण को राम के साथ वन में जाने की अनुमति देती है। बल्कि लक्ष्मण को समझाते हुए कहती हैं कि श्रीराम का जहां निवास हो, वही अयोध्या है। यदि राम सीता वन को जाते हैं तो तुम्हारा अयोध्या में कोई काम नहीं है। आगे लक्ष्मण को समझाते हुए कहती है कि गुरू, पिता, माता भाई, देवता और स्वामी की सेवा प्राण के समान करना चाहिए। राग, द्वेष, मद और मोह अपने मन में भी मत आने देना और मन वचन कर्म से श्रीसीता राम की सेवा करना।
वही वे राम वनवास से दुखी कौशल्या को आश्वासन देते हुए कहती है तुम्हें शोक नहीं करना चाहिए क्योंकि तुम्हें रघुनंदन राम जैसा बेटा मिला है, श्रीराम से बढ़कर सतमार्ग पर स्थिर रहने वाला संसार में दूसरा कोई नहीं है। जो राज्य छोड़कर अपने महात्मा पिता को सत्यवादी बनाने के लिए वन में चले गए। आप जल्दी ही श्रीराम को अयोध्या में देखेंगी। तुम्हें तो अयोध्यावासियों को धैर्य बंधाना चाहिए। फिर स्वयं ही इस समय क्यों इतना दु:ख कर रही हो।
दोनों के पुत्र वन गए हैं पर दोनों की मन की क्षमता अलग-अलग है।
भले ही सम्पूर्ण रामायण में उनकी उपस्थिति मौन रही हो, उनका और राजा दशरथ का एक भी संवाद न दिखा हो पर लक्ष्मण और कौशल्या के साथ उनके विवेक बुद्धि पूर्ण संवाद ने उन्हें रामायण के श्रेष्ठतम पात्रों में लाकर खड़ा कर दिया है। वाल्मीकी उन्हें धर्मपरायण कहकर संबोधित करते हैं। इस पर तुलसी दास जी लिखते हैं-
पुत्रवती जुबती जग सोई। रघुपति भगतु जासु सुतु होई॥
नतरु बाँझ भलि बादि बिआनी। राम बिमुख सुत तें हित जानी॥
संसार में वही युवती स्त्री पुत्रवती है, जिसका पुत्र श्री रघुनाथजी का भक्त हो। नहीं तो जो राम से विमुख पुत्र से अपना हित जानती है, वह तो बांझ ही अच्छी। पशु के समान उसका मां बनना व्यर्थ है।
इस तरह सुमित्रा किसी के प्रति रोष या आरोप प्रकट नहीं करतीं। कहीं भी वे हर्ष के अतिरेक में बहती नहीं है न ही शोक और व्यथा के प्रसंग में अपना संयम खोती हैं।
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