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नायिकाओं के लिए राह खोलता हिन्दी सिनेमा

विवेक पाठक

नायिकाओं के लिए राह खोलता हिन्दी सिनेमा
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हिन्दी फिल्म जगत में हालिया रिलीज हुई पंगा और थप्पड़ खूब सफल हुई हैं। ये फिल्मों महिलाओं के मन की कहानियां पर्दे पर लेकर आयीं जिन्हें खूब देखा गया। नायिकाओं को केन्द्रीय भूमिका देतीं इन फिल्मों की संख्या निरंतर बढ़ी है और इसे हम हिन्दी सिनेमा का वो बदलाव कह सकते हैं जो समाज में महिलाओं के लिए बेहतर वातावरण बनाने वाला रहेगा।

जब फिल्में देखी जाती हैं तो आपस में सहज सवाल पूछा जाता रहा है कि नायक कौन था और नायिका कौन थी । अमूमन सभी भारतीय फिल्मों में नायक और नायिका तो होते ही हैं मगर उनके किरदारों और भूमिकाओं का फैलाव एक सा नहीं रहा। देवानंद , अशोक कुमार, मनोज कुमार, दिलीप कुमार, राजकुमार, धर्मेन्द्र, जितेन्द्र, अमिताभ और मिथुन तक के दौर में हमने अपनी पसंदीदा अभिनेत्रियों को देखा है मगर उनके किरदार का विस्तार कहां तक रहा है ये गौर करने लायक बात है। शायद फिल्म लिखने वालों ने तब नायक को ही केन्द्रीय पात्र माना और अधिकतर कहानियां नायक की कहानी बनकर फिल्मायी गयीं। वैजयंती माला, नूतन, शर्मिला टैगोर, आशा पारेख से लेकर हेमा मालिनी, परवीन बॉबी, ,रीना रॉय, जीनत अमान तक एक से एक अभिनेत्रियां हिन्दी सिनेमा में आयीं मगर पटकथा लेखकों ने ऐसी कहानियां विरले ही लिखीं जिन्में नायिका के किरदार से सहारे फिल्म आगे बढ़तीं । उनकी फिल्मों में नायक को तो सुदर्शन चरित्र में विभिन्न अवतारों में दिखाया जाता रहा वहीं नायिकाओं को सिर्फ प्रेमिका, मां, बहन और महिला मित्र का किरदार ही दिया जाता रहा। पेड़ों के इर्द गिर्द नायक के साथ गीत गाने अथवा खलनायक द्वारा उनका अपहरण करने के सीन ही नायिकाओं को दिए जाते रहे।

फिल्मों में अदाकारी के विविध रंग नायिकाओं को दिखाने कम ही मिले हैं हालांकि बीच बीच में कुछ फिल्में ऐसी भी आयीं हैं जिन्होंने इस एकरसता को तोड़ा है। याद कीजिए नरगिस की मदर इंडिया को जिसमें वे गलत रास्ते पर जाने वाले अपने बेटे बिरजू पर भी गोली चलाने से पीछे नहीं हटतीं। यह फिल्म हिन्दी सिनेमा की एक कालजयी फिल्म मानी जाती है। आगे श्रीदेवी की नगीना जैसी नायिका प्रधान फिल्म आयीं तो दामिनी को इस धारा की सर्वोत्तम फिल्म में शुमार कर सकते हैं। दामिनी में मीनाक्षी शेषाद्रि को निर्देशक राजकुमार संतोषी ने केन्द्रीय भूमिका में रखा। पूरी फिल्म दामिनी के दम पर चलती है। इसमें दिखाया गया है किस कदर अपने घर की कामकाजी महिला के साथ दुष्कर्म करने वाले देवर के खिलाफ वह न्याय की जंग छेड़ती है और इस लड़ाई में परिवार, समाज सबका सामना करते हुए जीत हांसिल करती है। दामिनी समाज को दिशा देने वाली फिल्म है। महिला सशक्तिकरण के लिए अलख जगाने वाली फिल्म है। यह सिलसिला पिछले दो दशकों में तेजी से चल निकला है।

हमने माधुरी दीक्षित को मृत्युदण्ड में देखा तो सीमा विश्वास को बैडिंट क्वीन में देखा। बैंडिट क्वीन मल्लाह घर में पैदा हुई फूलन के दस्यु सुंदरी बनने की खौफनाक और वीभत्स कहानी समाज के सामने लाती है। यह फिल्म बताती है कि किस कदर सुदुर ग्रामीण भारतीय समाज में महिलाओं के साथ किस कदर अन्याय और अत्याचार होता रहा है और उसकी भयावहता कहां कहां तक पहुंच जाती है। चांदनी बार में हमने तब्बू को बार बालाओं की कहानी जीते हुए दिखाया तो मैरीकॉम में प्रियंका चोपड़ा का खिलाड़ी अवतार देखा। ऐसी फिल्में समाज के बीच नेतृत्व और संघर्ष कर सफल हुई महिलाओं की कहानियां हमारे सामने लाती हैं। श्रीदेवी की इंग्लिश विंग्लिश एक बेहतरीन और प्रेरक फिल्म रही। किस कदर बिना अंग्रेजी ज्ञान के घर परिवार में उपेक्षा एक आम भारतीय महिला झेलती है उसका साकार रुप श्रीदेवी इस फिल्म में जीते हुए देखी गयीं। यह बहुत खूबसूरत कहानी थी जिसे श्रीदेवी ने पर्दे पर बेहतर अदाकारी करते हुए जिया। श्रीदेवी ने मॉम फिल्म में भी अपने अभिनय का लोहा मनवाया। ये फिल्म बता गयी कि निर्देशक कहानी अच्छी लेकर आएं तो फिर खूंखार खलनायक से नायिका भी नायक से कहीं अच्छी तरह जूझकर और जीतकर दिखा सकती है। रानी मुखर्जी भी इसी धारा का नाम हैं उन्होंने मर्दानी में नायक के स्टंट नायिका के नाम कर दिए और गुण्डों को पीटतीं हुईं साहसिक मर्दानी बनकर नजर आयीं। रानी की इन दोनों फिल्मों को खूब पसंद किया गया। वे बता गयीं कि वर्दी में अक्षय और अजय देवगन ही नहीं रानी भी सिनेमा हॉल में तालियां पड़वा सकती हैं।

विद्या बालन की कहानी, सोनम कपूर की नीरजा, दीपिका पादुकोण की छपाक, आलिया भट्ट की राजी और तापसी पन्नू की पिंक वे फिल्में हैं जिन्होंने सिनेमा के मंच पर नायिकाओं का डंका बजवाया है। ये फिल्में महिलाओं के कई किरदारों की कहानियां सामने लेकर आयीं जिनसे सिनेमा के फलक का विस्तार ही हुआ। महिला प्रधान फिल्मों का झण्डा कंगना रनौत ने भी पकड़ रखा है। वे क्वीन में नजर आयीं तो मणिकर्णिका में उन्होंने रानी लक्ष्मीबाई के ऐतिहासिक किरदार को शौर्य के साथ जीकर दिखाया। मणिकर्णिका जैसी फिल्में भारतीय समाज को दिशा देने वाली महान महिलाओं की कहानियां समाज के सामने रखती हैं। वे इन दिनों तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता की बायोपिक थलायवी में काम कर रही हैं। इस फिल्म में कंगना की अदाकारी का चरम देखने का सिने दर्शक बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं। तापसी पन्नू ने थप्पड़ फिल्म से पुरुष अहंकार और घरेलू हिंसाकारक विचारों पर जोरदार थप्पड़ लगाया है। थप्पड़ जैसी फिल्में बनती रहेंगी तो अभिनेत्रियां हमेशा अहम किरदार में रहेंगी और वे समाज के बीच बहस का वातावरण निश्चित ही बनाएंगी।

Updated : 15 March 2020 10:04 AM GMT
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