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दल-बदल मामला : जब संविधान ने स्पीकर को शक्ति दी है तो अदालत क्यों दखल दे - उच्चतम न्यायालय
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दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को आश्चर्य जताया कि दल-बदल के लिए विधायकों की अयोग्यता मामले में अदालत दखल क्यों दे जब संविधान ने विधानसभा अध्यक्ष को यह शक्ति प्रदान की है। न्यायमूर्ति एस. ए. बोबडे, न्यायमूर्ति आर. सुभाष रेड्डी और न्यायमूर्ति बी. आर. गवई की पीठ ने कहा, ''संविधान की दसवीं अनुसूची में जब विधायकों को अयोग्य ठहराने की शक्ति विधानसभा अध्यक्ष को दी गई है तो अदालत यह शक्ति क्यों छीने?"
पीठ ने यह टिप्पणी द्रमुक नेता आर. सक्करपानी की याचिका पर सुनवाई करते हुए की। याचिका में मद्रास उच्च न्यायालय के अप्रैल 2018 के फैसले को चुनौती दी गई है जिसने उपमुख्यमंत्री ओ. पनीरसेल्वम सहित 11 अन्नाद्रमुक विधायकों को अयोग्य ठहराने की उनकी याचिका खारिज कर दी थी। संविधान की दसवीं अनुसूची दल-बदल के आधार पर सदन के सदस्यों की अयोग्यता से संबंधित है।
याचिकाकर्ता की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि किसी विधायक की अयोग्यता पर अगर विधानसभा अध्यक्ष फैसला नहीं करते हैं तो अदालत को निर्णय करना चाहिए। सिब्बल ने पीठ से कहा, ''मान लीजिए विधानसभा अध्यक्ष पांच वर्षों तक अयोग्यता पर निर्णय नहीं करते हैं तो क्या अदालत शक्तिहीन हो जाएगी?"
विधानसभा अध्यक्ष की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने याचिका पर आपत्ति उठाई और कहा कि सक्करपानी ने उच्च न्यायालय में केवल यही आवेदन किया कि इन विधायकों की अयोग्यता पर निर्णय करने के लिए विधानसभा अध्यक्ष को निर्देश जारी किए जाएं। उन्होंने कहा कि यह आवेदन तभी ''वापस लिया गया जब उच्चतम न्यायालय ने उच्च न्यायालय से कहा कि वह मुद्दे पर निर्णय नहीं करे।"
सिब्बल ने कहा कि उच्चतम न्यायालय के आदेश के बाद याचिकाकर्ता ने याचिका में संशोधन के लिये आवेदन दिया। उन्होंने कहा कि संशोधित याचिका में उच्च न्यायालय से अयोग्य विधायकों से जुड़े मुद्दे को देखने का आग्रह किया गया और इस मामले में गुणदोष के आधार पर फैसला दिया गया। सिब्बल ने कहा कि अपील पर निर्णय उच्चतम न्यायालय को करना चाहिए। पीठ ने कहा, ''जिस तरीके से इस मामले में आगे बढ़ा गया उससे हमें कुछ पिछली चीजें याद दिलाई गईं।" इसके बाद अदालत ने मामले की अगली सुनवाई की तारीख 20 अगस्त तय की।