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जब अटल जी ने कहा, मैं तो छोडना चाहता हूं मगर राजनीति मुझे नहीं छोड़ती
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बतौर प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने संसद में जो भाषण दिया था वह उनकी सरकार के विश्वास मत पर चर्चा के लिए था। उनके भाषण के कुछ अंश कभी नहीं सोचा था कि मैं सांसद बनूं
जब मैं राजनीति में आया, मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं सांसद बनूं। मैं पत्रकार था और यह जिस तरह की राजनीति चल रही है, वह मुझे नहीं आती। मैं तो छोडऩा चाहता हूं मगर राजनीति मुझे नहीं छोड़ती। मैं फिर विरोधी दल का नेता हुआ। आज प्रधानमंत्री हूं और थोड़ी देर बाद प्रधानमंत्री भी नहीं रहूंगा। प्रधानमंत्री बनने के बाद मेरा हृदय आनंद से छलकने लगा हो, ऐसा नहीं हुआ। जब मैं सबकुछ छोड़छाड़ कर चला जाऊंगा, तब भी मेरे मन में किसी तरह की मलिनता होगी, ऐसा होने वाला नहीं है।
28 मई 1996 को लोस में विश्वास प्रस्ताव की चर्चा के बाद अटलजी के वक्तव्य का अंश
ये सदन चर्चा के लिए है, शांतिपूर्ण चर्चा के लिए, संयमित चर्चा के लिए, तर्कपूर्ण चर्चा के लिए। कुछ मित्रों का प्रयत्न था कि कोई चर्चा न हो, तत्काल वोट ले लिया जाए और वो यहां से निकलते ही कुर्सी पर जाकर बैठ जाएं। उधर से आवाज आ रही है कि ऐसा ही होगा।
हर कठिन परिस्थिति में से भारत का लोकतंत्र बलशाली होकर निकला है
पार्लियामेंट में मैंने 40 साल गुजारे हैं। ऐसे क्षण बार-बार आए हैं। सरकारें बनी हैं, बदली हैं। नई सरकारों का गठन हुआ है। लेकिन हर कठिन परिस्थिति में से भारत का लोकतंत्र बलशाली होकर निकला है और मुझे विश्वास है कि इस परीक्षा में से भी बलशाली होकर निकलेगा।
मैंने 40 साल आलोचना की है आज भी मुझे आलोचना सुननी पड़ी है
मैंने 40 साल आलोचना की है। आज भी अधिकांश मुझे आलोचना सुननी पड़ी है। निंदा करने वाले को पास में रखना चाहिए, चापलूस नहीं तो बिगाड़ देंगे अगर निंदक रहेगा तो बिना साबुन और पानी के सफाई करता रहेगा।
मैं नहीं जानता कि 'काऊ बेल्ट' कहां है ?
मैं नहीं जानता कि 'काऊ बेल्ट' कहां है? 'काऊ बेल्ट' जिसे कहा जाता है उसको इस तरह से सदन में उल्लेखित करना। किस क्षेत्र की आप बात कर रहे हैं। हम हरियाणा में जीते हैं, हमने कर्नाटक में समर्थन प्राप्त किया है और यह ठीक है कि केरल में और तमिलनाडु में उतने शक्तिशाली नहीं हैं मगर हमारा संगठन है। पश्चिम बंगाल में भी हमें 10 प्रतिशत से थोड़ा कम वोट मिला है।
चलो एकला अपने चुनाव क्षेत्र से और दिल्ली में आकर हो जाओ इकट्ठे रे
इस सदन में एक-एक व्यक्ति की पार्टी है और वे हमारे खिलाफ जमघट करके हमें हटाने का प्रयास कर रहे हैं। एक व्यक्ति की पार्टी एकला चलो रे और चलो एकला अपने चुनाव क्षेत्र से और दिल्ली में आकर हो जाओ इकट्ठे रे। किसलिए इकट्ठे हो जाओ, देश के भले के लिए, स्वागत है।
ये कोई आकस्मिक जनादेश नहीं है चमत्कार नहीं है, 40 साल की साधना है
हम भी अपने ढंग से देश की सेवा कर रहे हैं और हम देशभक्त न होते और अगर हम निस्वार्थ भाव से राजनीति में अपना स्थान बनाने का प्रयास न करते और हमारे इस प्रयास के पीछे 40 साल की साधना है। ये कोई आकस्मिक जनादेश नहीं है, यह कोई चमत्कार नहीं है।