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केन्द्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर आर्थिक आधार पर आरक्षण का किया बचाव
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नई दिल्ली। सामान्य वर्ग के आर्थिक तौर पर पिछड़े लोगों को दस फीसदी आरक्षण दिए जाने के मामले में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर किया है। केंद्र सरकार ने अपने हलफनामे में आर्थिक आधार पर आरक्षण का बचाव किया है। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि संशोधनों ने संविधान की मूल संरचना या सुप्रीम कोर्ट के 1992 के फैसले का उल्लंघन नहीं किया है।
पिछले 11 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने सभी याचिकाओं पर सुनवाई 28 मार्च तक के लिए टाल दी। 11 मार्च को सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली बेंच से कहा था कि यह मामला संविधान के मूल ढांचे से जुड़ा हुआ है। इसलिए इस मामले परसंविधान बेंच को सुनवाई करनी चाहिए। तब कोर्ट ने कहा था कि अगर बड़ी बेंच को रेफर करने की जरूरत होगी तो हम भेजेंगे।
पिछले 8 फरवरी को कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया था। कोर्ट ने फिलहाल इसको लेकर बनाए कानून पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था। याचिका में कहा गया है कि इस फैसले से इंदिरा साहनी मामले में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के 50 फीसदी की अधिकतम आरक्षण की सीमा का उल्लंघन होता है।
याचिका में कहा गया है कि संविधान का 103वां संशोधन संविधान की मूल भावना का उल्लघंन करता है। याचिका में कहा गया है कि आर्थिक मापदंड को आरक्षण का एकमात्र आधार नहीं बनाया जा सकता। याचिका में इंदिरा साहनी के फैसले का जिक्र किया गया है, जिसमें कहा गया है कि आरक्षण का एकमात्र आधार आर्थिक मापदंड नहीं हो सकता है। याचिका में संविधान के 103वें संशोधन को निरस्त करने की मांग की गई है।
याचिका में कहा गया है कि संविधान संशोधन में आर्थिक रूप से आरक्षण का आधार केवल सामान्य वर्ग के लोगों के लिए है और ऐसा कर उस आरक्षण से एससी, एसटी और पिछड़े वर्ग के समुदाय के लोगों को बाहर रखा गया है। साथ ही आठ लाख के क्रीमी लेयर की सीमा रखकर संविधान की धारा-14 के बराबरी के अधिकार का उल्लंघन किया गया है।
याचिका में कहा गया है कि इंदिरा साहनी के फैसले के मुताबिक आरक्षण की सीमा 50 फीसदी से ज्यादा नहीं की जा सकती है। वर्तमान में 49.5 फीसदी आरक्षण का प्रावधान है, जिसमें 15 फीसदी आरक्षण एससी समुदाय के लिए, 7.5 फीसदी एसटी समुदाय के लिए और 27 फीसदी ओबीसी समुदाय के लिए है।