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'कौन ठगवा नगरिया लूटल हो'

Price:   150 |  12 Jan 2020 12:01 AM GMT

कौन ठगवा नगरिया लूटल हो

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संवेदना के खण्डित धरातल की कहानियां हैं: 

साहित्य मानवीय संवेदना और जन चेतना का विस्तार करता है। समाज के प्रत्येक स्पंदन पर उसके कान लगे रहते हैं, और एक बेहतर समाज की निर्मिति ही उसकी आकांक्षा होती है। ऐसे कठिन समय में समाज की भी यही अपेक्षा होती है कि उसे ऐसा साहित्य पढऩे को मिले जो उसका हो, लोक का हो। लेखक का लोकधर्मी होना ही उसकी सफलता का द्योतक होता है। लोक से विमुख साहित्य न तो अपनी पहचान बना पाता है और न पाठक ही उसे आत्मसात कर पाता है। इन स्थितियों में सफल लेखक वही है जो पुरस्कार की स्पर्धा में न होकर सतत और अविरल रूप से अपनी लेखनी से सृजन करते हुए लोक मानस में अपनी पैठ बना ले और यही सर्व स्वीकार्यता लेखक का सबसे बड़ा पुरस्कार होता है।

पद्मश्री मालती जोशी का लेखन भी इसी प्रकार का है-उनका एक बहुसंख्य पाठक वर्ग है जो उन्हें अपने ज़ेहन में रखता है। मेरी-तेरी-सबकी बात का उन्होंने लेखन में प्रयोग करते हुए मध्यम वर्ग की घटनाओं को चित्रित किया है। पाठक को उन कहानियों से गुजरते हुए यह अहसास होने लगता है, कि यह घटना उनके परिवार की ही है या उससे मिलती-जुलती है। यही कारण है, कि समकालीन महिला कथा लेखकों में उनका नाम आज भी आदर के साथ लिया जाता है।

'वाणी प्रकाशनÓ से हालिया प्रकाशित उनका कहानी संग्रह 'कौन ठगवा नगरिया लूटल होÓ में संग्रहीत अधिकांश कहानियां जहां पुरुषवादी मानसिकता पर चोट करती हैं वहीं वे एक संदेश भी देती है। इन कहानियों में मनोवैज्ञानिक अन्तद्र्वन्द है-बिखरी हुई परंपरायें हैं- असंवेदनशीलता की छलकती हुई बूंदे हैं तो नारी अस्मिता की जागृति का संदेश भी है। ये घर आंगन की कहानियां भर नहीं हैं इनमें विरोध और प्रतिकार की व्यंजना भी है।

इस कथा संग्रह में कुल चौदह कहानियां संग्रहीत हैं। सभी कहानियां कथोपकथन शैली में है। 'ब्लू व्हेल गेमÓ कहानी में समाज में वर्तमान में परिव्याप्त स्थिति को चित्रित किया गया है जिसमें लड़की की घर में निगरानी के बावजू़द सड़कों पर घूमने वाले आवारा शोहदे लिफ्ट देकर उन्हें अपने जाल में फंसा लेने का काम करते हैं और सेल्फी की आड़ में भोली-भाली लड़कियों का शिकार करते हैं। अन्त में ऐसी लड़कियां आत्महत्या का वरण करती हैं। आज के परिवेश में व्याप्त ऐसी घटनाएं समाज को सजग और सावधान रहने की ओर इंगित करती हैं-यही इस कहानी का हेतु भी है और प्रतिपाद्य।

'घुटनÓ कहानी मध्यमवर्गीय परिवारों की लड़कियों को पसंद करने की मानसिकता पर चोट करती है। विवाहोपरांत लड़कियों के टेलेन्ट को दफन कर घर गृहस्थी के प्रचलित तौर तरीकों में रम जाने की पुरुषवादी सोच का खुलासा इस कहानी में किया गया है। 'इसी बहानेÓ में गमी में शरीक होने आये अतिथियों द्वारा दु:ख की औपचारिकता का निर्वाह करते हुये एक कन्या को देखने के लिये जाने की असंवेदनशील प्रवृत्ति का उद्घोष है। कहानी में मानवीय मूल्य तार-तार होते दिखाई देते हैं। एक पंथ दो काज को रूपायित करती यह कहानी अवसर से खिलवाड़ करती हुई दूषित मनोवृत्तियों का पर्दाफाश करती है। शुभाशुभ से परे असंवेदना के जिस पहलू को मालती जी ने इस कहानी में चित्रित किया है वह हमारे सामाजिक परिवेश के हल्केपन का श्रेष्ठतम उदाहरण है। 'जननीÓ कहानी मनोवैज्ञानिक रूप से बुनी हुई एक ऐसी कहानी है जहां गोद ली हुई बच्ची अपने माता-पिता से एक और बच्चे को गोद लेने की मांग करती है। पैतृक सम्पदा और एकाकी जीवन के बरक्स वह उस संसार को चुनना ज्यादा पसंद करती है जहां भाई का स्नेह इस भौतिक सम्पदा से कहीं अधिक भावी जीवन के लिये मूल्यवान और आवश्यक है।

संतान भले ही दिव्यांग हो पर मां के लिये तो स्नेह का अक्षय स्रोत होती है। उसके निधन पर संवेदना व्यक्त करने की विभिन्न भावनाओं का यथार्थ चित्रण 'मातमपुरसीÓ में देखने को मिलता है। 'निर्वासनÓ में विशाल का प्रेम प्रसंग, विवाहोपरांत कुणाल की शादी में घर जाना और आकस्मिक रूप से समारोह में विशाल की पत्नी का भी पहुंचना जहां सम्बन्धों को प्रगाढ़ करने की पहल करता है वहीं उसकी मां द्वारा किया गया आदतन क्लेश, मांगलिक वातावरण को बोझिल करने की प्रवृत्ति इस बात की ताकीद करती है कि सास कैसी भी हो वह अपनी भड़ास से मंगल को अमंगल करने से नहीं चूकती।

'नो सिम्पथी प्लीजÓ में हमसफर के छूटने का शून्य है वहीं मन से योजन दूर रहकर देहधर्म निभाने की व्यथा-कथा है।

'वेलडन पापाÓ में भी लेखिका ने वर शोधन पर लड़के वालों के नाज नखरों का चित्रण और कन्यापक्ष के प्रति अशालीन व्यवहार की ओछी मानसिकता को उजागर किया है।

इस प्रकार मालती जोशी जी के कथा कर्म से गुजरते हुए यह भासित होता है कि इन कहानियों के कथा बीज उन्हें अपने चारों ओर फैले हुए परिवेश से सहजता से उपलब्ध हो जाते हैं। इन कथा बीजों को वे बुनाई की सलाइयों पर अन्तद्र्वन्द्व और विसंगतियों के फंदे से इस तरह उतारती हैं कि कहानी अपने आप में एक नये रूपांकन में आकार ग्रहण कर लेती है। मालती जोशी की भाषा बेहद सधी हुई है। शिल्प और संप्रेषणीयता से कसी हुई हैं। इन कहानियों में वेदना का स्वर है तो मूल्यों का क्षरण भी है। मानसिक अन्तद्र्वन्द्व है तो तार-तार होती संवेदना का रूपक भी है। अपनी कहन में सटीक ये कहानियां सोचने को विवश करती हैं और संदेश भी देती है। कथा साहित्य जगत में यह संग्रह भी पूर्व के कथा संग्रहों की भांति पठनीय और समादृत होगा।

प्रकाशक: वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली


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