Home > लेखक > हे ईश्वर, अब हम थक गए हैं श्रद्धांजलि देते-देते...

हे ईश्वर, अब हम थक गए हैं श्रद्धांजलि देते-देते...

हे ईश्वर, अब हम थक गए हैं श्रद्धांजलि देते-देते...
X

यह दुर्भाग्य से पहला अवसर नहीं है कि किसी विशिष्टजन के दुखद निधन के बाद उनके सम्मान में श्रद्धांजलि स्वरूप लिखना पड़ रहा है। पर सच कहूं तो आज मन में एक घबराहट है। यह सही है कि ईश्वर का न्याय सर्वोपरि है और वह जो भी निर्णय लेता है उसके पीछे यकीनन एक दूरदृष्टि होती है क्यों कि वह समय के परे देख सकता है। पर बावजूद इसके देश की राजनीति के नक्षत्र जिस प्रकार एक के बाद एक तेजी से विलुप्त हो रहे हैं वह ईश्वर से यह प्रश्न करने का अत्यंत पीड़ा के साथ अवसर दे रहे हैं कि हे ईश्वर इन प्रकाश के पुंजों को अपना सम्पूर्ण देने से पहले तुम क्यों बुला लेते हो, आखिर तुम चाहते क्या हो?

स्मृतियों के पन्ने खुल रहे हैं। आज याद आ रहे हैं पंडित दीनदयाल उपाध्याय। न केवल देश को अपितु वह विश्व को एक दर्शन दे रहे थे। जीवन के सूत्र दे रहे थे। एक दृष्टि दे रहे थे समग्र विकास की,सम्पूर्ण कल्याण की। एकाएक एक दुघर्टना कहें या षड्यंत्र, काल के शिकार हुए। परिणाम जिस दर्शन को वह व्यावहारिक स्वरूप दे सकते थे आज दशक लग गए।

देश को आवश्यकता थी लाल बहादुर शास्त्री की। वह भी असमय दुर्घटना या फिर कहें षड्यंत्र के शिकार हुए। परिणाम राजनीति में सादगी एवं शुचिता की परम्परा बाधित हुई। निकट इतिहास को देखें, कांग्रेस की बात करें तो माधवराव सिंधिया, राजेश पायलट संभावनाओं से परिपूर्ण राजनेता थे। दुर्घटर्नाओं के शिकार हुए। और निकट आएं तो ऐसा लगता है कि आखिर किसकी नजर लग गई भारतीय राजनीति को।

अटल जी 2004 के बाद जिस प्रकार धीरे धीरे मौन हुए वह वाकई दुर्भाग्यपूर्ण है। 2004 से देश की राजनीति ने, दुर्भाग्य से जो दिशा ली उसमें उनकी सक्रियता आवश्यक थी। पर वह अंत तक मौन ही रहे और गत वर्ष सदा के लिए चले गए। एक आश्वस्ति थी वह भी समाप्त हुई। थोड़ा और पहले जाएं तो हमें गोपीनाथ मुंडे याद आएंगे जो असमय दुर्घटना का शिकार होकर हमें छोड़ गए। देश को उनसे काफी आशाएं थीं। लेकिन नियति के क्रूर हाथों ने उन्हें हमसे छीन लिया।

अनंत कुमार एक ऊर्जावान नेता, कुशल संगठक बीमार हुए और अनंत यात्रा पर निकल गए। गोवा जैसे छोटे से राज्य के मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर। नाम सुनते ही एक सुखद अनुभूति होती थी। सादगी का पर्याय भी और सर्जिकल स्ट्राइक के जरिए एक कठोर निर्भीक रक्षा मंत्री के रूप में अपनी पहचान बनाने वाले उस योद्धा की विदाई देश ने अभी अभी नम आंखों से की है। उससे संभले ही नहीं थे कि भारत की लाड़ली बेटी सुषमा स्वराज को बीमारी ने ऐसा घेर लिया कि आज वह भी स्मृतियों में हैं। क्या लोकसभा आज उनके बगैर अधूरी सी नहीं है? आंसू पोंछना तो दूर अभी बंद ही नहीं हुए थे कि फिर एक सूर्यास्त।

यह कैसा ग्रहण है? अरुण जेटली सिर्फ भाजपा के संकट मोचक नहीं थे। देश के समक्ष अभी चुनौतियां समाप्त नहीं हुई हैं। आज देश को उनकी आवश्यकता थी। दूर विदेश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पीड़ा को शब्द देना अभी संभव नहीं है। आज भारतीय राजनीति का एक तरफ उज्ज्वल पक्ष यह है कि विश्व गगन में भारत की गूंज है पर ठीक उसी समय भाजपा के यह नक्षत्र एक के बाद एक ओझल हो रहे हैं। अरुण जी, यह आपने ठीक नहीं किया। कहेंगे तो आपसे ही, कारण ईश्वर से तो आज गहरी शिकायत है पर आप तो योद्धा थे क्यों यूं बीच दोपहर में अस्त हो गए। ऐसे कोई जाता है क्या?

अब दो शब्द ईश्वर से। हम जानते हैं कि हर एक की श्वांस का हिसाब आपके पास है, पर देश का भविष्य भी आपको ही तय करना है न फिर क्यों ऐसी दुर्घटनाएं, क्यों ऐसी गंभीर बीमारियां उनको घेर रही हैं जो देश को रोग मुक्त करने का बीड़ा उठा रहे हैं ? अब हम नहीं देना चाहते किसी को ऐसी असमय श्रद्धांजलि।

Updated : 26 Aug 2019 3:15 AM GMT
Tags:    
author-thhumb

Atul Tare

Swadesh Contributors help bring you the latest news and articles around you.


Next Story
Top