सावन में कांवड़ियों के लिए महाकुंभ है काशी विश्वनाथ

काशी में क्यों उल्टी बहती है गंगा मैया

Update: 2025-12-11 17:30 GMT

स्वामीनाथ शुक्ल

काशी में मणि कार्णिका घाट से तुलसी घाट तक गंगा मैया उल्टी बहती है। दोनों घाटों के बीच डेढ़ किलोमीटर में 45 घाट पड़ते हैं। पुराणों के अनुसार जब स्वर्ग से गंगा मैया धरती पर उतरी थी। तब जल का बहाव बहुत तेज था। जिससे वाराणसी के घाट पर तपस्या कर रहे भगवान दत्तात्रेय का आसन और कमंडल डेढ़ किलोमीटर तक बह गया था। भगवान दत्तात्रेय का आसन और कमंडल वापस करने के लिए गंगा मैया डेढ़ किलोमीटर वापस लौटी थी। तभी से काशी में डेढ़ किलोमीटर तक गंगा मैया उल्टी बहती है। भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंग है। इसमें एक उत्तर प्रदेश के बनारस में काशी विश्वनाथ मंदिर है। मोक्षदायिनी गंगा नदी के पश्चिमी तट पर सातवां ज्योतिर्लिंग है।

प्राचीन काल में बनारस का नाम काशी था। भगवान शिव को काशी और विश्वनाथ के दोनों नाम को आपस में जोड़कर काशी विश्वनाथ कहां जाता है। किंवदंतियों के अनुसार माता पार्वती और भगवान शिव का विवाह हो चुका था। लेकिन माता पार्वती अपने पिता के घर और भगवान शिव कैलाश पर्वत पर रहते थे। कैलाश पर्वत पर भोलेनाथ का मन लगता नहीं था। जिससे भगवान शंकर माता पार्वती से मिलने के लिए ससुराल चले गए थे। भगवान शिव की वापसी में माता पार्वती साथ चलने की प्रार्थना की। भगवान शिव माता पार्वती को साथ लेकर काशी आ गए थे। फिर माता पार्वती और भगवान शिव काशी विश्वनाथ से कभी लौटकर वापस नहीं गए । तभी से काशी को मोक्षदायिनी कहा जाता है। मंदिर के अंदर अन्नपूर्णा देवी का मंदिर है। भगवान शिव के सामने नंदी महाराज बैठे हुए हैं।

काशी विश्वनाथ मंदिर के करीब शहर कोतवाल भैरव बाबा का मंदिर है। शहर कोतवाल के दर्शन के बाद भगवान शिव का दर्शन पूजन माना जाता है। जिससे शहर कोतवाल के मंदिर में भी अपार भीड़ होती है। सावन महीने में विदेशी सैलानी भी बनारस ज्यादा आते है। जलाभिषेक करने वालों की रात-दिन कतारें लगी रहती है। काशी विश्वनाथ मंदिर की संरचना 1780 में इंदौर के मराठा शासक अहिल्याबाई होलकर ने की थी। बाबा विश्वनाथ मंदिर में गोस्वामी तुलसीदास, आदि शंकराचार्य,संत एकनाथ वादकारी सम्प्रदाय का महान ग्रंथ श्रीएकनाथी भागवत लिखकर पूरा किए थे। इसी मंदिर में बैठकर गोस्वामी तुलसीदास रामचरितमानस की रचना की थी।

इतिहास के पन्नों में आंकड़े बताते हैं कि कई मुस्लिम शासकों ने विश्वनाथ मंदिर को बार बार तोड़े है। मुगल शासक के औरंगजेब इस मंदिर को तोड़ने और गिराने वाला अंतिम मुस्लिम शासक था। इसी शासक ने मंदिर के स्थान पर ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण करवाया था। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव की नगरी बनारस बाबा विश्वनाथ के त्रिशूल की नोक पर बसी है। बाकी बाबा विश्वनाथ को विश्व का शासक माना जाता है। मंदिर के पुजारी ने बताया कि मंदिर ढाई बजे रात को खुलता है। तीन बजे से चार बजे के बीच मंगला आरती, सुबह चार बजे से 11 बजे तक आम दर्शन, सुबह 11,30 बजे से 12 बजे तक माध्यान भोग आरती,12 बजे से 7 बजे तक दर्शन,7 बजे से 8,30 बजे तक सप्त रिषि आरती,रात नौ बजे श्रृंगार भोग आरती,10,30 बजे से 11 बजे तक शयन आरती के बाद मंदिर बंद हो जाता है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सांसद चुने जाने के बाद से बनारस की तस्वीर बदल चुकी है। पहले संकरी गलियां, टूटी-फूटी सड़कें,बजबजाती नालियां, सड़कों पर कूड़ो का ढेर,जाम में फंसे दर्शनार्थी, चरमराई यातायात व्यवस्था बनारस की पहचान थी। लेकिन मोदी और योगी के आने के बाद बनारस बदल चुका है। विश्वनाथ कोरिडोर बन चुका है। लाखों की भीड़ के बाद भी मंदिर खाली दिखता है। यहां सबसे ज्यादा भीड़ सावन के महीनों में होती है। रोजाना लाखों भक्त जलाभिषेक करते हैं। लेकिन सड़कों पर गंदगी नहीं होती है।

बनारस के अंदर चौड़ी चौड़ी सड़कें बन चुकी है। जिससे भीड़ का पता नहीं चलता है। जबकि बनारस के होटलों में ठहरने के लिए कमरे खाली नहीं है। अस्सी प्रतिशत जनता दर्शन के बाद वापस लौट जाती है। बनारस के विधायक और योगी सरकार के राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार रवींद्र जायसवाल ने बताया कि बाबा विश्वनाथ मंदिर में सभी को दर्शन मिलता है। इतनी भीड़ के बाद भी किसी के साथ धक्का मुक्की नहीं होती है। मंदिर प्रशासन की नजर सभी पर होती है।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ खुद महीने में तीन से चार बार बनारस आते हैं। बाकी उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक और केशव मौर्य भी आते रहते हैं। बनारस में तैनाती के दौरान मंदिर में प्रोटोकॉल अधिकारी की जिम्मेदारी निभा चुके लोकनिर्माण विभाग में निर्माण खंड के अधिशाषी अभियंता रमेश चंद्र ने बताया कि काशी विश्वनाथ कोरिडोर बन जाने से लाखों की भीड़ हजारों में नजर आती है। भोले नाथ सभी को दर्शन देते हैं। जबकि एक पीसीएस अधिकारी अखिलेश आर्या ने कहा कि बनारस के छोटे-छोटे मंदिरों को भी नया रुप दिया गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी बाबा के दरबार में माथा टेकने आते रहते हैं।

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