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इलाहाबाद हाईकोर्ट की सख्त टिप्पणी-'पंचायत चुनाव कराने के लिए सरकार और आयोग ने कोरोना को किया नजरअंदाज'

कोरोना महामारी को लेकर सूबे की सरकार को कठघरे में खड़ा करते हुए इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने महामारी के सापेक्ष सरकारी व्यवस्था को नाकाम साबित कर दिया। न्यायालय ने पंचायत चुनाव के कारण बढ़ी महामारी के लिए चुनाव आयोग, अदालतों और सरकार को महामारी के स्तर को महसूस करने में अक्षम करार दिया।

Update: 2021-05-12 16:09 GMT

प्रयागराज: कोरोना महामारी को लेकर सूबे की सरकार को कठघरे में खड़ा करते हुए इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने महामारी के सापेक्ष सरकारी व्यवस्था को नाकाम साबित कर दिया। न्यायालय ने पंचायत चुनाव के कारण बढ़ी महामारी के लिए चुनाव आयोग, अदालतों और सरकार को महामारी के स्तर को महसूस करने में अक्षम करार दिया।

उच्च न्यायालय ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि चुनाव आयोग, अदालतें और सरकार, कोरोना महामारी के बीच पंचायत चुनाव कराने के विनाशकारी परिणामों की थाह लेने सब नाकाम रहे। हाईकोर्ट ने कहा कि इस अदूरदर्शिता की वजह से उत्तरर प्रदेश में कोविड-19 संक्रमण के मामलों में उछाल देखा जा रहा रहा है। जबकि कोरोना की पहली लहर के दौरान यह वायरस ग्रामीण आबादी तक नहीं पहुंचा था।

न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा एवं न्यायमूर्ति अजीत कुमार की खंडपीठ ने पंचायत चुनाव में जान गंवाने वाले मतदान अधिकारियों के परिवार की मुआवजा राशि पर फिर से विचार करने का निर्देश दिया है। सुनवाई के दौरान वकीलों ने कहा कि सरकार को चुनाव ड्यूटी के दौरान संक्रमण के खतरे की जानकारी थी। किसी ने स्वेच्छा से चुनाव ड्यूटी नहीं की बल्कि शिक्षकों, अनुदेशकों और शिक्षामित्रों से जबरदस्ती चुनाव ड्यूटी कराई गई इसलिए सरकार को कोराना से मरने वाले मतदान अधिकारियों को एक करोड़ रुपये मुआवजा देना चाहिए।

कोर्ट ने सरकार और राज्य निर्वाचन आयोग को मुआवजे की राशि पर फिर से विचार करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने ग्रामीण इलाकों और छोटे शहरों व कस्बों में कोरोना संक्रमण के फैलने पर चिंता जताई है। कोर्ट ने कहा कि सामुदायिक व प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में अब भी कोरोना मरीजों के इलाज की सुविधाएं नहीं हैं। लोग इलाज के अभाव में मर रहे हैं।

कोर्ट ने राज्य सरकार से छोटे कस्बों, शहरों और गांवों में सुविधाओं व टेस्टिंग का ब्योरा मांगा है। साथ ही कोराना मरीजों को जीवन रक्षक दवाएं और सही इलाज न मिलने की शिकायतों की जांच के लिए कोर्ट ने 48 घंटे के भीतर हर जिले में तीन सदस्यीय कमेटी गठित करने का निर्देश दिया है। मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट स्तर का न्यायिक अधिकारी, मेडिकल कॉलेज के प्रोफेसर व एडीएम रैंक के एक प्रशासनिक अधिकारी इस कमेटी के सदस्य होंगे। ग्रामीण इलाकों में तहसील के एसडीएम से सीधे शिकायत की जा सकेगी जो शिकायतों को शिकायत समिति के समक्ष भेजेंगे।

कोरोना महामारी के दौरान व्यवस्था की जानकारी के लिए सूबे के छोटे जिले बहराइच, बाराबंकी, बिजनौर, जौनपुर और श्रावस्ती जैसे जिलों में स्वास्थ्य सुविधाओं और कोरोना से लड़ने के लिए आवश्यक जीवनरक्षक सुविधाओं का ब्योरा प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है। शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में की गई टेस्टिंग का भी रिकार्ड तलब किया है।

कोर्ट ने शहर और ग्रामीण क्षेत्रों के लिए विवरण पेश करने को कहा है, जिसमें शहर की आबादी, अस्पतालों में बेड के विवरण के साथ लेवल -1 और लेवल -3 अस्पतालों की संख्या, डॉक्टरों की संख्या, लेवल -2 व लेवल -3 अस्पताल में एनेस्थेटिस्ट, चिकित्सा और पैरामेडिकल स्टाफ, बीवाईएपी मशीन की संख्या, ग्रामीण आबादी तहसील वार, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों की संख्या, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में बेड की उपलब्धता, जीवन रक्षक उपकरणों की संख्या, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में क्षमता विवरण के साथ तथा चिकित्सा और अर्ध-चिकित्सा कर्मचारियों की संख्या का ब्योरा रहे।

कोर्ट ने पिछले निर्देशों के पालन में अपर सॉलिसिटर जनरल द्वारा प्रस्तुत हलफनामे को असंतोषजनक करार देते हुए कहा कि कोर्ट के निर्देशों के अनुसार अस्पतालों द्वारा मेडिकल बुलेटिन जारी करने, ऑक्सीजन व जीवन रक्षक दवाओं की उपलब्धता से संबं‌धित जान‌कारियां हलफनामे में नहीं दी गई हैं। कोर्ट ने कोविड मरीजों को अस्पतालों में उपलब्ध कराए जा रहे पौष्टिक आहार और कोर्ट ने कोरोना से हुई मौतों का तारीखवार ब्योरा उपलब्ध न कराने पर भी नाराजगी जताई है।

कोर्ट ने कहा कि सरकार के हलफनामें में जो आंकड़े दिए गए हैं, वे आश्चर्यजनक रूप से यह बताते हैं कि परीक्षण की संख्या धीरे-धीरे कम हो गई है। 22 अस्पतालों में ऑक्सीजन उत्पादन के बारे में भी जानकारी नहीं दी गई। राज्य में जिलों की संख्या को देखते हुए एम्बुलेंस भी बहुत कम हैं। लेवल -1, लेवल -2 और लेवल -3 श्रेणी के अस्पतालों को दिए जाने वाले भोजन के बारे में कोई विवरण नहीं दिया गया है। केवल यह बताया गया है कि लेवल -1 अस्पताल में प्रति रोगी 100 रुपये का आवंटन किया जाता है।

कोर्ट ने कहा कि कोविड रोगी को अत्यधिक पौष्टिक भोजन की आवश्यकता होती है, जिसमें फल व दूध शामिल करना चाहिए और न्यायालय यह समझ नहीं पा रहा है कि कैसे प्रति व्यक्ति बजट में 100 रुपये के साथ सरकार लेवल -1 श्रेणी में तीन बार भोजन का प्रबंध कर रही है वह भी 2100 आवश्यक कैलोरी के साथ। लेवल -2 और लेवल -3 अस्पतालों के बारे में कोई विवरण नहीं दिया गया है। कोर्ट ने सभी श्रेणी के अस्पतालों के संबंध में प्रत्येक आइटम की कैलोरी गणना के साथ भोजन विवरण पेश करने को कहा है। दिव्यांगों को वैक्सीन लगाने के सम्बंध में किए गए आदेश के अनुपालन में राज्य सरकार का कहना था कि वह केंद्र सरकार की गाइड लाइन का ही पालन कर रही है। केंद्र की गाइड लाइन में इस बारे में कोई निर्देश नहीं दिया गया है। इसी प्रकार 45 से कम आयु के लोगों को वैक्सीन लगवाने के लिए पंजीकरण अनिवार्य करने के मामले में कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा कि अशिक्षित लोगों और मजदूर जो स्वयं अपना ऑन लाइन रिजस्ट्रेशन करने में सक्षम नहीं हैं, उन्हें वैक्सीन लगाने के लिए क्या योजना है।

कोर्ट ने राज्य सरकार से यह भी पूछा है कि दिव्यांगों को वैक्सीन लगाने के लिए खुद की नीति बनाने में उसे ‌क्या परेशानी आ रही है।कोर्ट ने कहा कि हमारी आबादी की एक बड़ी संख्या अब भी गांवों में रहती है। कई ऐसे लोग हैं जो केवल 18 और 45 वर्ष की आयु के बीच के मजदूर हैं और वे टीकाकरण के लिए ऑनलाइन पंजीकरण नहीं कर सकते हैं

कोर्ट ने केंद्र सरकार और राज्य सरकार से 18 वर्ष से 45 वर्ष के बीच अशिक्षित मजदूरों और ऑनलाइन पंजीकरण नहीं करा सकने वाले ग्रामीणों के वैक्सीनेशन की कार्ययोजना पेश करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने यह भी कहा कि हम आशा करते हैं कि राज्य सरकार दो-तीन महीने में कम से कम दो तिहाई से अधिक लोगों को टीका लगाने के लिए वैक्सीन खरीदने की कोशिश करेगी।

मेरठ में ऑक्सीजन की कमी से 20 मौतों के मामले में डीएम मेरठ की जांच रिपोर्ट पर कोर्ट ने असंतोष जताया है। मेडिकल कॉलेज प्रिंसिपल की सफाई पर भी असंतोष जताया। प्राचार्य का कहना था कि जो मौतें हुई हैं, वे संदिग्ध कोरोना मरीजों की हैं क्योंकि उनकी एनटीपीसीआर टेस्ट रिपोर्ट नहीं आई थी। इस पर कोर्ट ने कहा कि संदिग्ध मरीजों की मौत के बाद उनका शव परिजनों को सौंपना उचित कदम नहीं है। यदि किसी भी मरीज की मौत टेस्ट रिपोर्ट आने से पहले हो जाती है और उसे इंफ्लुएंजा जैसे लक्षण हैं तो संदिग्ध कोरोना मौत मानकर ही प्रोटोकॉल के तहत उसका अंति‌म संस्कार किया जाए।

युद्ध स्तर पर टीकाकरण करें। गृह सचिव ने हलफनामा दाखिल कर बताया कि पांच मई से ग्रामीण क्षेत्रों में शुरू किए गए सर्वे के तहत दो लाख 92 हजार से ‌अधिक घरों का सर्वे किया गया है। 4,24,631 लोगों में कोरोना जैसे लक्षण पाए गए हैं। उन्हें दवा की ‌किट मुहैया कराई गई है। कोर्ट ने लखनऊ के सन हास्पिटल के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी के तहत उत्पीड़नात्मक कार्रवाई पर रोक लगा दी है

अस्पताल की ओर से अर्जी दाखिल कर कहा गया कि उसने प्रशासन की ओर से जारी कारण बताओ नोटिस का जवाब दिया है मगर उसे कोई रिसीविंग नहीं दी गई और बिना विचार किए मुकदमा दर्ज करा दिया गया जबकि अस्पताल में एक व दो मई को कोई ऑक्सीजन की सप्लाई नहीं की गई थी। कोर्ट ने शहरी और ग्रामीण इलाकों में तेजी से फैल रहे संक्रमण को देखते हुए राज्य सरकार से वैक्सीन की खरीद का काम जल्दी करने और युद्ध स्तर पर टीकाकरण अभियान चलाने को कहा है। ‌हालांकि कोर्ट ने सरकार द्वारा अपनाई गई प्रक्रिया में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया है।

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