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ऐतिहासिक है उतरौला में स्थित दुखहरण नाथ मंदिर

मुगलकालीन हिंदू मुस्लिम एकता का बाबा दुखहरण नाथ मंदिर

Update: 2021-03-11 11:47 GMT

बलरामपुर। उतरौला का दु:खहरणनाथ मंदिर अपने आप में एक बड़ा और विस्तृत इतिहास समेटे हुए है। यहाँ पर शिवरात्रि और सावन में मंदिर में लगने वाली भक्तों की भीड़ इसका प्रमाण देती है। पूरे सावन के दौरान कई बार यहाँ पर कांवड़ियों की भीड़ लगती है और राप्ती के जल से औघड़दानी आदिशिव का जलाभिषेक करती है। इस मंदिर का डिजाइन अगर आप ध्यान से देखें तो पता चलेगा कि यह मुगलकालीन इतिहास और हिन्दू-मुस्लिम एकता का जीता-जागता मिशाल है।

क्या है मंदिर का इतिहास : इस बाबत मंदिर के महंत बताते हैं कि जहां पर आप यह मंदिर देख रहे हैं वह पहले जंगल था, यहाँ पर बलरामपुर से एक जयकरन गिरि नाम के संत आए थे, जिन्हें रात में एक स्वप्न आया कि टीले और जंगल के नीचे एक शिवलिंग है। जब यह बात राजा तक पहुंची तो उन्होंने संत जयकरन गिरि को अपने दरबार में बुलाया लेकिन वह नहीं गए, जिसके बाद यहाँ के राजा खुद चलकर आए और संत से बात करके यथास्थान खुदाई आरंभ करवाई। वह कहते हैं संत के स्वप्न के अनुसार वहाँ से एक भव्य भूरे रंग शिवलिंग निकला, जो बीचोबीच से मुड़ा हुआ था। वह कहते हैं कि जब इस बात का पता उतरौला के नवाब नेवाद खान को चला तो उसने हाथियों कि मदद से शिवलिंग को खिंचवाकर राप्ती नदी में फिकवा दिया, लेकिन अगली सुबह फिर शिवलिंग अपने स्थान पर मिला।

इस शिवलिंग में बीच से कटे होने का निशान है। इस पर मयंक गिरि कहते हैं कि उतरौला के नवाब को जब अगले दिन यह शिवलिंग फिर उसी स्थान पर मिला तो उसने हिन्द के बादशाह औरंगजेब के कहने पर उसे आरी से बीचोंबीच से कटवाना चाहा, लेकिन जैसे ही आरी का पहला धार चला, शिवलिंग से खून की धार बहने लगी। इसके बाद नवाब उतरौला नेवाद खान से उसी स्थान पर एक भव्य मंदिर का निर्माण शुरू करवाया, जो साल 1928 में बन कर तैयार हुआ। मंदिर कहते हैं कि यह शिवलिंग उत्तर पूर्व के कोने यानि हिमालय की तरफ झुका हुआ है। वह कहते हैं कि पूरे देश में ऐसा शिवलिंग और कहीं नहीं है। वह कहते हैं कि यह शिवलिंग अपने आप निकला हुआ है इसलिए यह भी अनोखा और अद्वितीय है।

भक्तों की लगती है भारी भीड़ : महंत कहते हैं कि शिवरात्रि और सावन में यहां हजारों किन संख्या में श्रद्धालु आते है।उन्होंने बताया यहाँ पर कजलीतीज, शिवरात्रि, दशहरा, दीपावली, होली व अन्य तीज-त्योहारों में भी भारी भीड़ होती है। यहाँ साल भर में कई मेलों का आयोजन किया जाता है। लोग यहाँ आकार भगवान से अपनी मिन्नतें करते हैं और आदिशिव भगवान दु:खहरणनाथ अपने हर भक्त की प्रार्थना स्वीकार करते हुए उसे फल देते हैं।

वह कहते हैं कि इसके अलावा यहाँ पर माता बालासुंदरी का भी एक मंदिर है, जहां पर नवरात्रों में विशेष पूजन का कार्यक्रम किया जाता है। यहाँ पर लोग कराह प्रसाद (हलवे का प्रसाद) का आयोजन करते हैं और माता अपने भक्तों को तरक्की देती हैं। इसके अलावा यहाँ का हनुमान मंदिर और पोखरा भी विशेष महत्व रखता है। यही वजह है कि यहाँ पर सालों से बड़े मेलों का आयोजन होता है।

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