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बत्ती गुल: घर-घर इंडक्शन फूंकते बिजली

Update: 2021-09-01 10:43 GMT

उज्जैन। इन दिनों बेतोल बिजली कटोत्री की खिलाफत में कांग्रेस ने आवाज बुलंद करके प्रदेश में सत्तारूढ़ बीजेपी सरकार को घेरना ओर कोसना चालू कर दिया।महँगाई, बेरोजगारी, ईंधन गैस, डीजल पेट्रोल के बढ़ते भावों की खिलाफत करके कांग्रेस अर्से से जनमत संगठित करने की जी तोड़ कोशिश कर रही है। मगर जनमत कांग्रेस की वाणी को अनसुना करने की आदत बना चुका है। 

ऊंचे भावों के बाबजूद जून,जुलाई, अगस्त में दो पहिया ओर महंगी चार पहिया वाहनों की रिकार्ड बिक्री ने कांग्रेस को करारा जबाब दे दिया।मगर बिजली की तंगी और अघोषित बेहिसाब कटोत्री से आम उपभोक्ता से लेकर दुकानदार,किसान उबलने लगा।उबले क्यो नही? लगातार मिलती बिजली ने मानसिकता ओर आदतें बदल दी। मप्र 2004 के पूर्व के दुखद दिनों को भूल चुका है। जब प्रचंड गर्मी में लोग गर्मी,मच्छरों से बचने के लिए रत जगा करके समय काटते थे। आलम ये था कि इनवर्टर रोज़मर्रा जिंदगी का हिस्सा बन चुके थे।किसानों ने डीजल इंजन खरीद सिंचाई की।कटोत्री इतनी होती थी कि इन्वर्टर तक चार्ज होने के लाले पड़ जाते थे। उस युग मे आज की तरह हर हाथ मे मोबाइल नही हुआ करते थे। न हर घर मे बिजली के विभिन्न घरेलू उपकरण हुआ करते थे।अब तो गांव का शायद ही कोई घर बचा होगा। जहां एक से अधिक कूलर ,फ्रिज,tv,ac हीटर,इंडक्शन,पंखे,अन्य उपकरण न हो। गांव सबसे बड़े बाजार में बदल चुके है।

 कूलर ओर इंडक्शन खरीदी का कीर्तिमान - 

कोरोना लॉक डाउन काल मे भी गांवो ने सब्जी भाजी की तरह कूलर ओर इंडक्शन खरीदी का कीर्तिमान रचा। बिजली की तंगी की असल वजह घर घर मे 02 हजार वाट के चलते हीटर,इंडक्शन, फिजूल चलते कूलर,पंखे और बल्ब है। ये तभी बन्द होते है। जब बिजली जाती है। वरना इन्हें बन्द करने के लिए 05 ₹रुपये की चुटकी भी अधिकांश लोग खरीदना अपनी शान के खिलाफ़ समझते है।इसके बदले वे पचासों यूनिट बिजली प्रतिदिन फूंकना अधिकार समझते है। आखिर उन्होंने वोट जो दिया है। उनके वोट से सरकार बनी है। सरकार का फर्ज है कि वह मुफ्त में हीटर,इंडक्शन,कूलर,पंखे आदि चलाने दे। यदि रुकावट डाली तो? बत्ती देने के सारे रास्ते खुले है। बकाया बिल बहुत कम चुकता करते है। वसूली पर जाने वालों विधुत कर्मियों की कुटाई करके उन पर ही उल्टे प्रकरण लदवाने की कला आती है।

आपराधिक दुरुपयोग - 

मप्र के हर छोटे-बड़े कस्बो,नगरों में सैकड़ों इंडक्शन रोज सुधरने आ रहे है। हीटर बिक रहे है। यानी सिंचाई के प्रयोग होने वाली कीमती बिजली इंडक्शन,हीटर स्वाह करके तंगी और मुसीबत बढ़ा रहे है। इस तथ्य को हर नेता,पूर्व मंत्री,विधायक,मंत्री जानते है। मगर उनमें बिजली का आपराधिक दुरुपयोग रोकने की नसीयत देने या जागरूक करने की हिम्मत नही है।

नैतिक जिम्मेदारी - 

राजनेताओं के लिए तंगी की खिलाफत में आवाज बुलंद करना ज्यादा आसान है।नतीजन इन दिनों पूर्व ऊर्जा मंत्री से लेकर विधायक गण, अन्य स्तर के नेता जनमत संगठित करने के नाम पर लोगो को जुटा लेते है। बिजली कंपनियों के ऑफिसों को घेरते है। ज्ञापन देते।पुतला फूंकते। ये लोकतांत्रिक अधिकार है। लेकिन तंगी ओर कटोत्री के असल कारणों की तह में जाकर नसीयत देना भी नैतिक जिम्मेदारी है।

सब्सिडी का भुगतान - 

वरना बिजली का उत्पादन कितना भी बढ़ा लो। वह हमेशा कम ही रहेगा।2004 के पूर्व 5300 मेगावाट की तुलना में अब 15 हजार से अधिक मेगावाट बिजली उत्पादन भी कम पड़ रहा है।वांछित वसूली न होने और सब्सिडी का भुगतान न करने के कारण बिजली कंपनियों की कमर टूट चुकी है।आलम ये है कि उनके पास वेतन देने की बात तो छोड़ो चवन्नी का नट खरीदने का पैसा नही है। तंगी की वजह से भर्ती बन्द।आउट सोर्स से काम लेना मजबूरी।

कोयला की आपूर्ति बाधित 

कोयला कम्पनियों ओर सब्सडी का भुगतान न करने से कोयला की आपूर्ति बाधित हों चुकी है। ताप बिजली घर 02-03 का सफर तय करने में ठसकने लगे। सतपुड़ा,सारणी,सिंगाजी,बिरसिंहपुर आदि थर्मल प्लांट कोयला की तंगी के शिकार हो रहे है। इनकी इकाइयां ठप्प हो चुकी है। 03 थर्मल प्लांट बन्द हो चुके है। तंगी दूर करने के लिए निजी प्लांटों ओर एनटीपीसी से खरीदी विकल्प बचा है। बिजली कम्पनियां निजी पावर प्लांटों का हजारो करोड़ का भुगतान नही कर पा रही है। यदि सरकार सब्सिडी का भुगतान कर दे तो किसी हद तक तनाव,अव्यवस्था दूर हो सकता है।

अक्टूम्बर,नवंबर में त्योहार और रवी सीजन में बिजली की मॉग 16 से 17 हजार मेगावाट सम्भव है।इस मांग की पूर्ति करना मौजूदा हालातो में आसान नही लगता।केंद्रीय पुल ओर एनटीपीसी ने हाथ खड़े कर दिए तो खेत सूखे रहने की आशंका से इनकार नही किया जा सकता। आर्थिक जरूरतों और संचालित जन कल्याणकारी योजनाओं को गति देने के लिए सरकार फिर 02 हजार करोड़ का कर्ज बाजार से उठा रही है। मगर सरकार ने सब्सिडी के भुगतान का कोई कोना तैयार नही किया। यानी अंगूठा?

सरकार की प्रवृत्ति उधार ले कर घी पिलाने की पड़ चुकी है।इस प्रवर्ति ने प्रदेश के 65% लोगो को सरकार जीवी बना दिया।यानी आलसी। निट्ठल्ला।कर्महीनता जड़ जमा चुकी है। ये प्रवर्ति अलग तरह की अराजकता को पीले चावल देते लगती है। बिजली कम्पनियों को आत्मनिर्भर,स्वालंबी बनाने की जरूत है।मोह छोड़,ढांचागत सुधार की सख्त जरूरत है।

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