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बदले "समय" के साथ आखिर सिंधिया का "सब्र" क्यों टूटा ?

शायद ज्योतिरादित्य सिंधिया इसलिए नहीं बन पाये मुख्यमंत्री ....

Update: 2020-03-14 01:45 GMT

स्वदेश वेब डेस्क। ज्योतिरादित्य सिंधीया के नेतृत्व  मे उन्हें  मुख्य नेता  बनाकर कांंग्रेस प्रदेश में भााजपा को हराकर 15 साल बाद सत्ता में लौटी थी।  सिंधिया को कांग्रेस ने चेहरा दिखाकर जब यह चुनाव लड़ा तब प्रदेश की जनता ने सोचा था कि चुनाव जीतने के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया ही मुख्यमंत्री बनेंगे लेकिन ऐसा हुआ नहीं। सिंधिया की जगह कांग्रेस हाईकमान ने  कमलनाथ को मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री बना दिया था। इसके बाद जनता को उम्मीद थी की सिंधिया को उप मुख्यमंत्री बनाया जायेगा लेकिन उन्हें यह पद भी नहीं दिया गया। कांग्रेस ने विधानसभा चुनावो में किये वादों को अधूरा छोड़ किसानो से वादाखिलाफी की जिसके चलते वह लोकसभा चुनाव हार गए। 

राजनीतिक जानकारों के अनुसार सोनिया गांधी ने काबिल और होनहार ज्योतिरादित्य सिंधिया को इसलिए मुख्यमंत्री नहीं बनाया क्योंकि उन्हें डर था की वह आगे चलकर राहुल गाँधी के रास्ते का काँटा बन सकते है। इसी तरह राहुल गांधी के समकक्ष राजस्थान के युवा नेता सचिन पायलट को भी राजस्थान में सरकार आने के बाद उन्हें पारितोषिक के रूप में उप मुख्यमंत्री पद का झुनझुना पकड़ा दिया गया।अब उनकी अपने मुख्यमंत्री अशोक गेहलोत के साथ आये दिन खटकतने की खबर आती रहती हैं । राजनितिक जानकार दावा करते है की  यदि राजस्थान में हालात ऐसे ही रहे तो वह दिन दूर नहीं जब सचिन पायलट भी जल्द कांग्रेस का दामन छोड़ भाजपा में शामिल हो सकते है ।

कांग्रेस में राहुल गांधी के अतिरिक्त अन्य युवा नेताओं के बढ़ते कद से शायद कांग्रेस के आलाकमान नेताओं में भय इसलिए व्याप्त हो जाता है की कहीं कोई अन्य युवा नेता राहुल गांधी से आगे निकल गया तो उन्हें प्रधानमंत्री के रूप में देखने का सपना अधूरा रह जाएगा।  कांग्रेस में सिर्फ एक युवा के राजनीतिक करियर को बढ़ावा देने के लिए अन्य युवा नेताओ को हाशिये पर डाला जा रहा है। जिसका ही परिणाम है की कभी कांग्रेस के बड़े कद्दावर नेता माने जाने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया को भी पार्टी छोड़ जनसेवा के लिए अन्य विकल्पों की तलाश करना पड़ रही हैं। अपनी ही पार्टी में  समय के साथ मिली उपेक्षा से आखिर सब्र टूट ही गया।  

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