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भाग-14 / पितृपक्ष विशेष : शुक देव - श्रुति परम्परा के प्रथम वाहक

महिमा तारे

Update: 2020-09-20 13:02 GMT

ऋषि शुक पहले श्रुति परंपरा के वाहक है। जिन्होंने परीक्षित को भागवत पुराण सुनाया। जो उनके पिता वेदव्यास ने लिखा था। परीक्षित अर्जुन के प्रपोत्र, अभिमन्यु और उत्तरा के पुत्र तथा जनमेजय के पिता है।

शुक ने भागवत पुराण के 18000 श्लोकों का पहले अध्ययन किया और फिर पहली बार परीक्षित को सुनाया। वह भी 16 वर्ष की अल्पायु में। उन्होंने मां के गर्भ में ही वेद, उपनिषद, दर्शन पुराण का ज्ञान प्राप्त कर लिया था और जन्म के साथ ही संन्यास के लिए निकल गए थे।

शुक के बारे में एक रोचक प्रसंग है। वह 16 वर्ष के युवा है। सन्यास लेने हेतु संकल्पित। वे वन में निकलते हैं आगे-आगे जा रहे हैं। पीछे-पीछे उनके पिता है। एक सरोवर में कुछ युवतियां बिना वस्त्रों के स्नान कर रही हैं। शुकदेव जब निकलते हैं तो महिलाएं उसी तरह ही स्नान करती रहती हैं जैसे कोई वहां से गुजरा ही ना हो पर जैसे ही वेदव्यास निकलते हैं। महिलाएं पेड़ों की ओट में छिप जाती है। यह देखकर वेदव्यास से रहा नहीं गया और वे उन स्त्रियों से प्रश्न करते हैं कि अभी एक युवा यहां से निकला तब तो तुमने संकोच नहीं किया और मैं तो एक वृद्ध हूं। आप मुझसे संकोच क्यों कर रही हैं तब स्त्रियों का उत्तर था कि जो आगे संन्यासी गए हैं उनके मन में स्त्री पुरुष का भाव ही नहीं था। वह देह से परे हैं। वह देहातीत हैं। वह स्त्री पुरुष के भेद से परे हैं पर जब आप गुजरे तब लगा कि आप पुरुष हैं और हम महिलाएं। कारण यही भाव आप में भी है।

जैसा बताया कि शुकदेव ने राजा परीक्षित को सर्वप्रथम भागवत सुनाया। युधिष्ठिर को महाभारत युद्ध के बाद राÓय किए हुए &6 वर्ष हो गए हैं कृष्ण देवलोक गमन कर गए हैं यह सुनकर पांडवों को संसार से विरक्ति आ गई और परीक्षित को राÓय देकर स्वर्ग लोक चले गए।

राजा परीक्षित न्याय प्रिय और विष्णु भक्त राजा थे। एक बार जंगल में शिकार करते-करते भूख प्यास से व्याकुल होने पर जंगल में ही एक ऋषि आश्रम में गए। ऋषि ध्यान मग्न थे इसलिए उन्होंने राजा का यथोचित सत्कार नहीं किया इससे क्रोधित होकर परीक्षित ने एक मरा हुआ सांप उनके गले में डाल दिया। जब उनके पुत्र श्रृंगी ऋषि ने देखा तो उन्होंने परीक्षित को श्राप दिया कि आज से सातवें दिन तक्षक सर्प के काटने से उनकी मृत्यु होगी। राजा परीक्षित को जब यह समाचार मिला तो उन्होंने सोचा कि अब जीवन के सिर्फ सात दिन है इसलिए उन्होंने गंगा तट पर ऋषि शुक से भागवत सुनने की इ'छा प्रकट की और उन्होंने ब्रह्मज्ञानी शुक से कुछ प्रश्न किए वे प्रश्न इस प्रकार हैं? अंत समय में मनुष्य को क्या सुनना चाहिए? कौन सा जप करना चाहिए? किस का स्मरण और किस का भजन करना चाहिए? इसका उत्तर शुकदेव ने सात दिन भागवत सुनाकर दिया।

विश्व को श्रुति परम्परा के माध्यम से ज्ञान की गंगा बहाने वाले ब्रह्मज्ञानी शुक जो विचार से मन से कर्म से संन्यासी थे को सादर नमन।

(लेखिका स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)

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