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सेना के पराक्रम से पस्त हुआ पाकिस्तान

Update: 2019-10-21 12:08 GMT

- प्रमोद भार्गव

भारतीय सेना ने चार साल के भीतर तीसरी बार साहसिक पराक्रम का परिचय दिया है। पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में मौजूद आतंकी ठिकानों पर कड़ा प्रहार करके सेना ने जता दिया है कि अब वह अपने जवानों की शहादत का बदला लेने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है। ताजा हमले के एक दिन पहले पाकिस्तानी सेना ने भारतीय सीमा में आतंकियों की घुसपैठ कराने के लिए कुपवाड़ा में अकारण गोलीबारी की थी। उसमें दो भारतीय सैनिक पद्म बहादुर श्रेष्ठ एवं गामिल कुमार शहीद हो गए थे। एक नागरिक भी मारा गया था। इस घटना से भारतीय सेना ने तंगधार सेक्टर के सामने नियंत्रण रेखा के पार तोपों से गोले दागकर पीओके की नीलम घाटी के जूरा, ऐथमुकाम और कुंदलशाही में तीन आतंकी शिविरों को तबाह कर दिया। इन नापाक ठिकानों में जैश-ए-मोहम्मद व हिजबुल मुजाहिद्दीन के प्रशिक्षण शिविर थे। मीडिया रिपोर्ट में पाकिस्तानी सेना के 10 जवान और 35 आतंकी ढेर होने की खबर है।

भारत ने पाकिस्तान पर पहली 'सर्जिकल स्ट्राइक' उरी हमले के बाद सितम्बर 2016, दूसरी 'एयर स्ट्राइक' बालाकोट में पुलवामा हमले का जवाब देने के लिए फरवरी 2019 और अब यह 'आर्टिलरी स्ट्राइक' 20 अक्टूबर 2019 को की है। थल सेना प्रमुख विपिन रावत ने कहा है कि 'आतंकियों के चौथे शिविर को तो भारी नुकसान हुआ ही है, आतंकी संरचना और शिविरों की इमारतें भी ध्वस्त हुई हैं।' दरअसल, बर्फबारी होने से पहले पाकिस्तानी सेना की मंशा बड़ी संख्या में भारतीय सीमा में आतंकियों की घुसपैठ कराना थी, जो नाकाम हो गई। इस स्ट्राइक के दृश्य व छाया-चित्र भी जारी हो गए हैं। इसलिए इस हमले पर विपक्षी दलों द्वारा सवाल खड़े करना मुश्किल है। फिर भी वे ऐसा कुछ करते हैं तो यह संदेश उन्हें ही नुकसान पहुंचाएगा। साफ है, पाकिस्तान को अब समझ जाना चाहिए कि उसकी हर हरकत का मुंहतोड़ जवाब दिया जाएगा। नेतृत्व की इच्छाशक्ति और सेना के पराक्रम का ही परिणाम है कि हमारी सेना लक्ष्मण रेखा लांघकर जवाबी हमला करने में सक्षम दिखाई दे रही है।

पिछले तीन दशक से पाकिस्तान अपने नापाक मंसूबों को आतंक के जरिए भारत की धरती पर जिस तरह से अंजाम देने में लगा था, उसे भारतीय सेना की ताकत और राजनीतिक इच्छाशक्ति की दृढता दिखाना जरूरी था। इस कार्यवाही से अब यह संदेश जाएगा कि आतंकी पाकिस्तानी सीमा में भी सुरक्षित नहीं हैं। आतंकी शिविरों पर की गई इन सीमित कार्रवाइयों ने दुनिया को पैगाम दे दिया है कि भारतीय फौज हर प्रकार के हमले करने में दक्ष है। इससे यह भी संदेश गया है कि सेना और देश के नेतृत्व का रुख अब रक्षात्मक की बजाय आक्रामक हो गया है। दरअसल, अनुच्छेद-370 के खात्मे के बाद पाकिस्तान बौखलाया हुआ है। वह दुनिया को यह संदेश देना चाहता है कि इस अनुच्छेद की समाप्ति से कश्मीर की जनता में रोष है। इसीलिए वह घुसपैठियों की मदद से हिंसक वारदातें करने लगा है।

पाकिस्तान ने पीओके में 28 से ज्यादा आतंकी शिविरों में 350 से भी ज्यादा प्रशिक्षित आतंकी इकट्ठे कर लिए हैं, जो बर्फबारी होने के साथ ही घाटी में घुसपैठ कर माहौल बिगाड़ने को तत्पर हैं। इसीलिए वह बार-बार संघर्ष विराम तोड़ रहा है। इसी साल अक्टूबर तक 2300 से भी अधिक बार वह संघर्ष विराम का उल्लंघन कर चुका है। यह आंकड़ा बीते पांच सालों में सर्वाधिक है।

कश्मीर मुद्दे पर दुनियाभर में मुंह की खाने के बाद पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान सेना के इशारों पर चलने को विवश हो गए हैं। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उसकी कश्मीर से जुड़ी दलीलों को किसी राष्ट्र ने महत्व नहीं दिया। मुस्लिम राष्ट्रों से भी उसे समर्थन नहीं मिला। कश्मीर मुद्दे पर चीन भी पाकिस्तान का खुला समर्थन नहीं कर रहा है। इसी बीच पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर नाकामी खुलकर सामने आ गई है। इमरान अपनी नाकामियों के चलते घरेलू मोर्चे पर बुरी तरह घिर गए हैं। उनके खिलाफ पूरे देश में प्रदर्शन हो रहे हैं। यह स्थिति कालांतर में तख्तापलट का कारण बन सकती है।

अभी तक सर्जिकल स्ट्राइक में अमेरिका और इजराइल की सेना को ही पेशेवर दक्षता हासिल थी। अब पीओके में तीन हमलों को अंजाम देकर भारतीय सेना ने जता दिया है कि उसने भी सर्जिकल स्ट्राइक ऑपरेशन की कुशलता हासिल कर ली है। हालांकि भारत, म्यांमार में भी इसी तरह का ऑपरेशन कर चुका है। जिसमें भारतीय सेना ने 38 नगा उग्रवादियों को म्यांमार की सीमा में घुसकर मौत के घाट उतार दिया था। हालांकि वह ऑपरेशन म्यांमार सरकार की सहमति से हुआ था।

इंदिरा गांधी के कार्यकाल 1971 में जब भारत और पाक के बीच युद्ध हुआ था, तब भी भारत के सशस्त्र बलों ने नियंत्रण रेखा को पार किया था। लेकिन 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने सेना को नियंत्रण रेखा पार करने की अनुमति देने से इनकार कर दिया था। ऐसा उन्होंने अंतरराष्ट्रीय दबाव के चलते किया था। किंतु, अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के राज में सेना को खुली छूट मिल गई है। इस सर्जिकल ऑपरेशन के जरिए सेना ने भी जता दिया है कि उसमें पाक अधिकृत कश्मीर के साथ-साथ गिलगित और बाल्टिस्तान तक इसी तर्ज पर हमले करने और मनचाहा लक्ष्य साधने की शक्ति है। भारत अब शायद इस मनस्थिति में आ गया है कि यदि पाकिस्तान भारत के विरुद्ध लघु पैमाने पर भी परमाणु हथियारों का इस्तेमाल करने की भूल करता है तो वह जवाब में पाकिस्तान पर बड़े परमाणु हमला कर सकता है। जनवरी 2004 में पाकिस्तान ने भरोसा दिलाया था कि वह अपनी जमीन पर आतंकवाद को पनपने नहीं देगा, किंतु ऐसा करने की बजाय उसने आतंक की पूरी वेल को ही सींचने का निरंतर काम किया। इस लिहाज से भारत के लक्षित हमले पाकिस्तान को सबक सिखाने की दृष्टि से जरूरी हैं।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

 

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