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मुंबई के अटल और अटल जी की मुंबई : स्व. मुजफ्फर हुसैन

मुंबई के वरिष्ठ पत्रकार स्व. मुजफ्फर हुसैन ने अमृत अटल ने 1953 की एक घटना का उल्लेख करते हुए लिखा है कि...

Update: 2018-08-18 13:15 GMT

अटल जी बाल्यकाल से ही प्रतिभा के धनी थे , उनकी भाषण शैली ऐसी थी की जो भी सुनता एक बार में ही उनका प्रशंसक हो जाता। मुंबई के वरिष्ठ पत्रकार स्व. मुजफ्फर हुसैन ने अमृत अटल ने 1953 की एक घटना का उल्लेख करते हुए लिखा है कि एक नव युवक मुंबई सेन्ट्रल के प्लेटफॉर्म पर उतरता है। दिल्ली से आया ये बालक बड़े आश्चर्य से प्लेटफॉर्म पर इधर उधर देख रहा था , इतने में एक गोर चिट्टे जवान ने पंजाबी लहजे में पूछा क्या तुम्हारा नाम अटल बिहारी है ? नव युवक ने बड़ी विनम्रता से हाथ जोड़े और बोला - हाँ मुझे अटल बिहारी कहते हैं , दिल्ली से मुझे जनसंघ के अध्यक्ष दीनदयाल जी उपाध्याय ने भिजवाया है , बक्शी जी जो उस समय भारतीय जनसंघ ,जिसे मुंबई में स्थापित हुए एक सप्ताह भी नहीं हुआ था उसके सर्वे सर्वा थे, युवक ने कंधे पर झोला लटका रखा था उन्होंने उससे कहा चलो। बक्शी जी अबोध युवक को अपनी कार तक ले आये। उन्हें सांताक्रूज अपने निवास तक जाना था। सड़क पर भीड़भाड़ और डबल देकर बस को देखकर युवक हैरान था। जब वे घर पहुंचे दो रुपये का नोट निकाला और बक्शी जी के हाथ पर रख दिया, कहने लगा जब में दिल्ली से चला था तो दीनदयाल जी ने दिया था। बक्शी जी पूछने लगे अरे 45 - 50 घंटों में तुमने कुछ खाया नहीं ? युवक ने अपना सिर नीचे झुका लिया। अटल बिहारी नामक इस युवक को बक्शी जी ने घर पहुँचते ही सबसे पहले खाना खिलाया लेकिन अटल बिहारी बेहद शर्मीले थे और उन्होंने पेट भर खाना भी नहीं खाया।

मुंबई में जनसंघ की स्थापना हुई थी उस अवसर पर दीनदयाल जी ने अटल जी को सार्वजानिक भाषण के लिए भिजवाया था। बक्शी जिसोच रहे थे दीनदयाल जी ने एक युवक को मुंबई जैसे बड़ी जगह पर भिजवा दिया ये क्या करेगा। शाम को विले पार्ले में उनका भाषण रखा गया था। बक्शी जी ने तैयार होने के लिए कहा , अटल जी ने अपने झोले से धोती कुर्ता निकाला और पहनने लगे , इतने में बक्शी जी क्या देखते हैं , उनका कुर्ता आस्तीन के पास फटा था। तब वे बोले " अरे फाटे कुर्ते से जनसंघ के मंच पर भाषण करोगे। " तब अटल जी ने शर्माते हुए कहा " मेरे पास एक और कुर्ता है। " और उन्होंने उसे निकाला तो वह गर्दन के पास से फटा था , अब अटल जी क्या बप्लते , तब वे बड़ी सहजता से बोले मैं इस पर जॉकिट पहन लूंगा। बक्शी जी बोले गर्मी में जॉकिट ? लोग हसेंगे। लेकिन अटल जी ने जॉकिट पहन ली और भाषण के लिए निकल गए।

स्व. मुजफ्फर हुसैन ने आगे बताया कि तिलक भवन में भाषण था। जब अटल जी बोले ऐसा लगा जैसे गंगा यमुना थम गई है। उनकी शैली , विचार और उनकी अदा पर ना जाने कितने लोग मर मिटे। भाषण की समाप्ति पर बक्शी जी ने अटल जी को गले लगा लिया। सब लोग अटल जी से बहुत प्रभावित हुए। अटल जी का ये पहला भाषण आज भी कई मुंबईवासियों को याद है। बक्शी जी की आँखें भीगी हुई थी वे कुछ बोल नहीं पा रहे थे। बक्शी जी ने फिर अटल जी को दिल्ली जाने वाली ट्रेन पर छोड़ दिया। दो दिन बाद दीनदयाल जी का तार मिला , अटल बिहारी के साथ तुमने जो दस रुपये दिए थे वे मिले। बक्शी जी बोले अरे इस बार भी उसने रास्ते में कुछ नहीं खाया। एक फाका मनस्ती में अपने जीवन को सार्वजानिक रूप देने वाला देश का प्रधानमंत्री बन गया। इसके बाद वे जब भी मुंबई गए उन्हें मुंबई से बहुत प्यार और अपनापन मिला वे मराठी पुस्तकें खरीदते , लोगों से मराठी में बात कर उन्हें प्रभावित करते थे।  

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