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मदर टेरेसा: संत या नर्क की परी ?

Update: 2020-08-26 13:24 GMT

सितंबर, 2016 के पहले सप्ताह में जब मदर टेरेसा को वेटिकन द्वारा कैननकरण (एक मृत व्यक्ति की आधिकारिक तौर पर मान्यता प्राप्त संत के रूप में घोषणा) किया गया। तो उनके जीवन और समाज को दिए कथित समय को इस तरह पेश किया गया जैसे कि वे मानवता के लिए ईश्वर का उपहार हों ? लेकिन क्या यह हकीकत है ?

शुरुआत करने से पहले आप बता दें सुसान शील्ड्स के अनुभवों के बारे में। ब्रोंक्स, रोम और सैन फ्रांसिस्को में मिशनरी ऑफ चैरिटी के साथ शील्ड्स ने साढ़े नौ साल तक काम किया। दिलचस्प बात यह है कि, उन्होंने "इन मदर्स हाउस" नामक एक पुस्तक लिखी, लेकिन कभी भी उन्हें एक प्रकाशक तक नहीं मिला ! प्रसिद्ध पत्रकार और "मिशनरी स्थिति: सिद्धांत और व्यवहार में मदर टेरेसा" क्रिस्टोफर हिचेन्स ने पाया की, "यह मुझे अपमानजनक लगता है कि साहसी कार्य करने वाले के विचारों को प्रकाशित करने के लिए एक प्रकाशक को खोजने में विफल रहा।  लेकिन एक पुस्तक के लिए जब पोप लगभग 5 मिलियन डॉलर की अग्रिम मदद प्राप्त कर सकता है जो उन्होंने लिखी ही नहीं थी।" यह बड़ा प्रश्नचिन्ह खड़ा करता है। 

शील्ड्स इस बात के एक गंभीर सबूत देती हैं कि मदर टेरेसा के नेतृत्व में "मिशनरी ऑफ चैरिटी" को किस तरह धर्मांतरण के लिए इस्तेमाल किया गया था

सिस्टरों की मदद से लोगो के बीच बपतिस्मा (जल के प्रयोग के साथ किया जाने वाला एक धार्मिक कृत्य) के लिए सहमति बनातीं थी। संवेदना प्रकट करने के लिए दिखावा करने हेतु वह केवल गीले कपड़े से उस व्यक्ति के माथे को ठंडा कर रही होती है, जबकि वास्तव में वह उसे बपतिस्मा देतीं थी, चुपचाप से आवश्यक गोपनीय चर्चाएं भी करती थीं। गोपनीयता इसलिए महत्वपूर्ण थी कि यह पता नहीं चले कि मदर टेरेसा की सिस्टरें हिंदुओं और मुसलमानों का बपतिस्मा कर रही थीं। 

धोखे देकर बपतिस्मा करना से मदर टेरेसा और सिस्टरों की भूमिका सदिग्ध ही है। इसलिए, संत या नर्क की परी ?

 सोर्स : https://bit.ly/3hula64

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