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क्या कहना चाहते हैं शिवराज ?

Update: 2018-12-22 07:54 GMT

भोपाल/विशेष प्रतिनिधि। ताजे-ताजे पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह कुछ बदले-बदले से हैं। सामान्यत: उनकी राजनीतिक शैली अब तक प्रगट रूप में कम से कम सरलता की रही है। कूटनीतिक बयान वह कम देते हैं। पर सत्ता परिवर्तन के बाद उनकी शैली को लेकर प्रदेश की राजधानी भोपाल से लेकर राष्ट्रीय राजधानी नई दिल्ली तक चर्चाएं हैं और इस पर सब अपने अपने तरीके से गौर भी कर रहे हैं।

जनादेश के तत्काल बाद उनका पहला बयान था '' अब मैं आजाद हूं।'' नि:संदेह आजादी से उनका आशय मुख्यमंत्री के पद से ही रहा होगा पर उन्होंने चौंकाया। बेहद सधे हुए अंदाज में उन्होंने उसी दिन पत्रकारों से औपचारिक बातचीत भी की। नई भावी सरकार को बधाई भी दी और कमलनाथ एवं राहुल गांधी को किसान कर्ज माफी का वादा भी याद दिलाया और वह अब चौकीदार की भूमिका में हैं, यह जतला भी दिया। यही नहीं मध्यप्रदेश में उनकी आत्मा बसती है यह कह कर एक संदेश प्रदेश में और पार्टी में भी दे दिया। अगले दिन वे पार्टी कार्यालय पहुंचे और पदाधिकारियों से बातचीत की घोषणा भी की कि जब भी वह राजधानी में रहेंगे पार्टी कार्यालय में बैठेेंगे। इस घोषणा को भी जाहिर है सकारात्मक तौर पर ही लिया गया। यहीं उन्होंने आभार यात्रा के भी संकेत दे दिए।

नि:संदेह लोकसभा चुनाव सिर पर हैं। अत: जिले से लेकर मंडल तक कार्यकर्ताओं में उत्साह एवं संचार का भाव पैदा करने की आवश्यकता थी। अब यह किस प्रकार है। इस पर पार्टी में स्वाभाविक तौर पर विचार तब तक नहीं हुआ था। कारण आभार यात्रा का विचार उन्होंने स्वयं ही दिया था और बाहर भी चर्चा में आ गया। पर यह पार्टी नेतृत्व को स्वीकार होना भी नहीं था और हुआ भी नहीं। माना यह गया कि श्री शिवराज सिंह प्रदेश में यह संदेश देना चाहते हैं कि वह आज भी पार्टी के एकमेव सर्वमान्य नेता हैं और पार्टी उनके पीछे। संगठन ने संभवत: इसलिए हाथ खींच लिए।

इधर मुख्यमंत्री कमलनाथ के शपथ ग्रहण समारोह में कमलनाथ एवं ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ हाथ खड़े कर उन्होंने एक राजनीतिक सदाशयता का परिचय भी दिया। यह सराहा भी गया वहीं पार्टी के अंदर दबे अंदाज में विरोध के स्वर भी उभरे।

इधर शिवराज सिंह की बुधनी यात्रा के दौरान टाइगर अभी जिंदा है और यह सरकार पांच साल नहीं चलेगी का बयान फिर सबको हैरत में डाल गया। संभव है, वह बुधनी के कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ा रहे हों पर टाइगर जिंदा है जैसी शैली शिवराज सिंह की नहीं है। वह क्या और किससे कहना चाह रहे हैं। यह राजनीतिक पंडित समझने का प्रयास कर रहे हैं। वहीं सरकार के स्थायित्व को लेकर दिए बयान की 'टाइमिंग' को लेकर सवाल है।

आने वाले दिनों में भाजपा को नेता प्रतिपक्ष तय करना है। उपलब्ध विकल्पों में डॉ. नरोत्तम मिश्र, गोपाल भार्गव के नाम भी चर्चाओं में हैं। पर पार्टी में एक बड़े वर्ग का यह मानना है कि मौजूदा परिस्थितियों में शिवराज सिंह ज्यादा बेहतर विकल्प हो सकते हैं। लेकिन उनको लेकर यह भी चर्चा है कि पार्टी उनकी क्षमता का उपयोग राष्ट्रीय स्तर पर करना चाहेगी। पेंच यहीं है। पड़ौसी राज्य छत्तीसगढ़ एवं राजस्थान के भी भूतपूर्व मुख्यमंत्री संभवत: दिल्ली जाना नहीं चाहते। केन्द्रीय नेतृत्व को यह प्रश्न आने वाले दिनों में सुलझाना है। वह एक फार्मूला देता है या अलग-अलग यह भविष्य बताएगा, पर इस बीच शिवराज सिंह अपने कदम सधे अंदाज में बढ़ाने का प्रयास जारी रखे हुए हैं।

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