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आपातकाल की याद कर अब भी सिहर उठते हैं जेपी आन्दोलनकारी

Update: 2019-06-24 13:28 GMT

25 जून 1974 की रात 11:30 बजे देश में आपातकाल लगते ही जिस तरह पूरे देश में दहशत का माहौल कायम हुआ और जगह -जगह आन्दोलनकारियों पर जुल्म ढाए जाने लगे उसकी याद कर 44 साल बाद भी जेपी आन्दोलनकारी अन्दर से कांप उठते हैं । बिहार के जेपी आंदोलनकारियों के मुंह से दमन की कहानियां सुनकर लोग आज भी सिहर उठते हैं । 25 जून 2019 को इस आंदोलन का 44 वां साल पूरा हो जायेगा लेकिन इस आंदोलन के भुक्तभोगी इतने वर्ष बीत जाने के बाद भी देश में कुछ खास बदलाव नहीं महसूस करते हैं । 

बिहार के पूर्व मंत्री एवं राजद नेता विक्रम कुंवर 25 जून,1975 की रात लागू आपातकाल को याद कर आज भी सिहर उठते हैं। वे इसे देश का काला अध्याय मानते हैं। उस समय कुंवर छपरा जेल में थे। सीवान के पचरुखी में जनता सरकार बनाने के अभियान में नागार्जुन,लालू प्रसाद,जेड ए जाफरी सरीखे लगभग 200 लोगों के साथ कुंवर मई में ही गिरफ्तार होकर छपरा जेल में बंद थे। 26 जून को सुबह जेलर बच्चा सिंह से बंदियों को जानकारी मिली कि देश में आपातकाल लागू हो गया है। विक्रम कुंवर कहते हैं कि जेल की छत पर कई बंदियों के साथ गया तो देखा कि जेल के बाहर सड़कों पर सन्नाटा पसरा था। लोग एक अजीब तरह की दहशत में थे। आपातकाल लागू होने के बाद 10 दिनों तक पुलिस उनके घर-परिवार को प्रताड़ित करती रही थी। 10 दिनों के बाद आंदोलनकारियों को रातों रात बक्सर जेल पहुंचा दिया गया था। विक्रम कुंवर पटना के कॉलेज आफ कार्मस के पार्ट-1 के छात्र रहते आंदोलन में कूद पड़ ​थे। उनका कहना है कि राम बहादुर राय के बाद में वे देश के दूसरे मीसाबंदी ​थे। जेपी आंदोलन में बिहार में 5 हजार से अधिक मीसाबंदी थे। नीतीश सरकार ने जेपी आंदोलनकारियों के लिए पेंशन योजना लागू कर रखी है। छह महीने तक जेल में बंद रहे जेपी आन्दोलनकारियों को पांच हजार रुपये मासिक और छह माह से अधिक जेल काट चुके जेपी सेनानियों को 10 हजार रुपये मासिक पेंशन दी जाती है। मगर मार्च,2019 से प्रदेश के 3500 जेपी सेनानी पेंशन पाने की बाट जोह रहे हैंं ।

पटना विश्वविद्यालय के वाणिज्य संकाय के प्रोफेसर रहे पूर्व विधायक डा.रमाकांत पांडेय 25 जून को नयी दिल्ली प्रवास में थे। उस समय जेपी के साथ पटना में आरएसएस की ओर से समन्वयक की भूमिका निभा रहे प्रोफेसर डॉ. रमाकांत पांडेय को फरवरी 1976 में मुम्बई में गिरफ्तार किया गया था । उनका कहना है कि आपातकाल की स्थिति पटना में तो 144 धारा की तरह थी जबकि अन्य जिलों में इसका काफी प्रभाव था और इसके

कारण पटना से बाहर अन्य जिलों में न सिर्फ काफी दहशत थी बल्कि खूब दमनचक्र चल रहा था । उनका कहना है कि 25 जून को ही दिल्ली में गांधी शांति प्रतिष्ठान में आंदोलन से जुड़े नेताओं की बैठक हुई थी। उसी दिन रात में जेपी वहां अन्य नेताओं के साथ गिरफ्तार किये गये थे। प्रोफेसर डॉ. रमाकांत ने 25 जून,1975 की आपबीती बतायी। उन्होंने कहा कि दिल्ली में पुलिस ने सोये हालत में जेपी को गिरफ्तार कर दीनदयाल थाना ले गयी थी । चंद्रशेखर को जब जेपी की गिरफ्तारी की सूचना मिली तो चंद्रशेखर, मोहन धारिया और कृष्णकांत थाने पहुंच गये। पुलिस ने उन्हें भी हिरासत में ले लिया। आंदोलन के निष्कर्ष का जिक्र करते हुए उन्होंने बताया कि आपातकाल की घोषणा के बाद मैंने महसूस किया कि अब देश को इंदिरा गांधी सरकार से मुक्ति मिल जायेगी औरआंदोलन निर्णायक मोड़ पर पहुंच जायेगा। उन्होंने कहा कि अब कोई देश में आपातकाल लगाने की हिम्मत नहीं कर सकता।

अनिल विभाकर कहते हैं कि 26 जून की सुबह अचानक देश में अखबारों और रेडियो की ख़बरों से यह पता चला कि देश में आपातकाल लागू हो चुका है और सारे मौलिक अधिकार स्थगित कर दिये गये हैं । आपातकाल की दहशत से देश में आंदोलन भले ही थोड़ा ठंडा पड़ गया लेकिन गया में इसका कोई ज्यादा प्रभाव नहीं दिख रहा था। वहां आंदोलन जारी था जिससे लगातार सरकार परेशान थी। शहर में लगातार गिरफ्तारियों का दौर जारी था लेकिन आंदोलन ठंडा नहीं पड़ रहा था। मुझे याद है कि लगभग 6 जुलाई को पुलिस ने मुझे मेरे दो सहियोगियों ज्ञानचंद जैन और अनिल कुमार सिन्हा के साथ सुबह गया गांधी मैदान के पास से गिरफतार कर लिया और लोगों को आतंकित करने के लिए बस स्टैंड परिसर में ही अपनी हुकूमत का दम दिखाते हुए हम तीनों को उल्टा लटकार कर पीटते हुए अधमरा कर दिया। इसका एक मात्र उद्देश्य शहर में शासन का आतंक फैलाना था ताकि कोई आंदोलन करने की हिम्मत न कर सके। गया सेन्ट्रल जेल और हजारीबाग सेन्ट्रल जेल में 20 महीने से अधिक दिनों तक कैद रहने के बाद देश में जनता पार्टी की सरकार बनी और तब मैं आजाद हुआ। आज की राजनीतिक स्थिति का तुलनात्मक अध्ययन करते हुए अनिल कुमार सिन्हा वर्तमान में अनिल विभाकर का कहना है कि यद्यपि इस समय राज्य से लेकर केंद्र में जेपी आंदोलन से उपजे हुए लोग सरकार में हैं लेकिन सत्ता का चरित्र अब भी वही है, जो उस समय था।

गया में जेपी आन्दोलन में सक्रिय रहे अखौरी निरंजन प्रसाद कहते हैं कि उस समय मैं देश में बदलाव लाने के उत्साह से भरपूर था ।जेपी आंदोलन के समय मैं 19—20 वर्ष का था। मैं अक्सर अंडर ग्राउंड रहता था। गया के समाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता अखौरी निरंजन प्रसाद ने आपातकाल के अनुभव को साझा करते हुए ' हिन्दुस्थान समाचार' को बताया कि 8 अगस्त को मैं पकंज जी के घर लगभग दोपहर एक बजे खाना खाने पहुंचा। पुलिस को इस बात की खबर लग गयी कि मैं यहां हूं। पुलिस मुझे 26 जून से ही ढूंढ रही थी। एसडीओ के नेतृत्व में डीएसपी और सदर एसडीओ ने 200 पुलिस बल के साथ वहां धावा बोलकर मुझे गिरफतार कर लिया। उस समय की स्थिति ऐसी थी कि यदि कोई किसी से बात कर ले तो उस पर मुकदमा दर्ज हो जाता था। एक वकील मुझ से मेरा हाल जानने आए तो उनपर कार्रवाई हो गयी। आपातकाल के दौरान लगभग 19 महीने गया, हजारीबाग और मोतिहारी जेल में आंदोलनकारी होने के कारण मैं बंद रहा । हजारीबाग सेन्ट्रल जेल में बिताये दिनों के बारे में उन्होंने बताया कि जेल में रहते हुए भी हमारा उत्साह कम नहीं हुआ। लालटेन की राख से मैंने काला झंडा बनाया और थाली पीटकर आंदोलन को आगे बढ़ाने की घोषणा की। इसे लेकर एक और मुकदमा मेरे ऊपर दायर हो गया और मुझे मोतिहारी जेल भेज दिया गया। जब आपातकाल खत्म हुआ तो मुझे गया जेल वापस भेज दिया गया ।वहीं से मुझपर लादे गये अन्य मुकदमें हटाये गये ।

आपातकाल के बारे में वर्तमान परिप्रेक्ष्य में उन्होंने कहा कि आपातकाल से अब तक कोई बदलाव नहीं आया है। सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही भ्रष्टाचार के खिलाफ हैं । देश के सरकारी महकमे में लूट मची है। जरूरत एक बार फिर जेपी की ही है। (हि.स.)


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