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मध्यप्रदेश के ग्वालियर से आकर ब्रज में बसे है द्वारिकाधीश, इतिहास के पन्नों में दर्ज है रोचक किस्सा

Update: 2019-08-05 07:53 GMT
Image Credit : mathura.nic.in

ये बात मध्य प्रदेश खासकर ग्वालियर के लोगों को चौंका देगी, कि वो मथुरा में वो यमुना के किनारे जिस द्वारिकाधीश के दर्शनों की अभिलाषा लेकर ब्रज में आते है दरअसल वो ग्वालियर से आकर ही मथुरा में बसे है। यमुना के असकुंडा घाट के निकट स्थित द्वारिकाधीश मंदिर बल्लभ कुल का सबसे बड़ा मंदिर माना जाता है। इतिहास के पन्नों में जो बात दर्ज है उसके अनुसार कहा जाता है कि गुजरात के बल्लभ संप्रदायी वैष्णव गोकुलदास पारिख दौलतराव सिंधिया ग्वालियर में खजांची हुआ करते थे। वहां द्वारिकाधीश नागाओं के इष्ट देव थे। इधर गोकुल दास पारिख भी द्वारिकाधीश के परम भक्त थे। द्वारिकाधीश उनके सपने में आए और मथुरा ले जाने की बात कही। इसके बाद गोकुल दास पारिख की भक्ति को देखते हुए नागाओं ने भी इसकी अनुमति प्रदान कर दी। गोकुलदास पारिख सन् 1813 में ब्रज आए और सर्वप्रथम मथुरा वृंदावन रोड स्थित भतरोड पर एक बाग में द्वारिकाधीश की पूजा अर्चना प्रारंभ की।

1814 में यमुना के असकुंडा घाट के निकट ठाकुर द्वारिकाधीश के भव्य मंदिर का निर्माण हुआ। कला, संस्कृति इस मंदिर का आकर्षण है। द्वारिकाधीश का श्याम वर्णी विग्रह, चारों हाथों में शंख, चक्र, गदा और पदम सुशोभित है। ये बल्लभकुल का सबसे बड़ा मंदिर माना जाता है। सोने से मड़ा शिखर, कला से शोभायमान मेहराब, छत की नक्काशी और चित्रकला श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करती है। चूंकि ब्रज में भगवान श्रीकृष्ण के प्रति वात्सल्य भाव है ऐसे में यहां उन्होंने बालक मानकर पूजा अर्चना की जाती है। मंदिर में आठों झांकियां मंगला, श्रंगार, ग्वाल, राजभोग, उत्थापन, भोग, संध्या आरती, शयन आरती होती है। राजाधिराज की झांकियों में आनंद बरसता है। भक्त भाव विह्ल हो जाते है और नाचने गाने लगते है। प्रत्येक दर्शन में ठाकुर जी को भोग लगाया जाता है। भगवान श्रीकृष्ण के मनोरथों को यहां बड़े ही चाव से मनाया जाता है।

जो करे मंगला, कभी न रहे कंगला

ठाकुर द्वारिकाधीश मंदिर को लेकर ब्रजवासियों की अटूट आस्था है। यहां उनके मंगला दर्शनों को लेकर श्रद्धालुओं में होड़ मची रहती है। कहावत है जो करे मंगला, वो कभी न रहे कंगला। यानि जो नित्य प्रति ठाकुर द्वारिकाधीश की मंगला आरती करता है उस पर लक्ष्मी साक्षात मेहरबान रहती है। ये ही वजह है कि मंदिर की मंगला आरती करने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु मंदिर पहुंचते है।

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