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सबरीमाला : चर्च की राजनीति की रणनीति

Update: 2019-12-01 12:21 GMT

कुछ दिन से सबरीमाला मंदिर एक बड़ा मुद्दा बना हुआ है, इस मुद्दे को लोग राजनीति का रूप दे रहे है, किंतु यहाँ समझने वाली बात ये है कि सबरीमाला कोई राजनीतिक अड्डा नहीं है ये सांस्कृतिक धरोहर है। जिस समाज में हम रहते हैं या जिस धर्म को मानते हैं उसके नियम को भी हमें स्वीकार करना होगा। समाज नियम से बंधा होता है, इसने स्त्री और पुरुष सभी के लिए नियम निर्धारित कर रखे हैं और सबरीमाला भी हिंदू समाज का एक अंग है।

अब बात आती है कि इस मंदिर पर ये प्रश्न क्यों उठाए गए? चूंकि ये मंदिर केरल में हैं जहाँ ईसाई मिशनरियाँ ईसाई धर्म को बढ़ाने के लिए तथा हिंदुत्व को नष्ट करने के लिए लगी हुई हैं। इन मिशनरियों ने बहुत से लोगों का धर्म परिवर्तन कराया, किन्तु धर्म परिवर्तित लोगों ने अपनी आस्था सबरीमाला के प्रति नहीं बदली तो मिशनरी के लोगों को लगा कि धर्म परिवर्तन का फायदा क्या हुआ हिंदुत्व तो वैसा ही है। चूंकि यहाँ धर्म की धर्म के प्रति लड़ाई हैं तो इन्होंने ये रास्ता चुना। केरल में वामपंथी सरकार है जिसका पूरा फायदा मिशनरी उठा रही है। हिंदू धर्म को कमजोर करना तथा इसके मूल को कमजोर करना ही इनका उद्देश्य है, इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए स्त्रियों को खड़ा कर उनके अधिकार के लिए उकसाया गया। इस अधिकार की लड़ाई लड़ रही प्रत्येक स्त्री से एक प्रश्न है कि आपने कभी अपने धर्म को समझने की कोशिश की? हिंदू धर्म में व्यर्थ कुछ भी नहीं है, इसे समझने की जरूरत है। खास कर हिंदुओ ने जितना स मान स्त्रियों को दिया है उतना किसी और धर्म में नहीं है। यही वह धर्म है जहाँ कहा जाता है यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमन्ते तत्र देवता। इसी धर्म में काली, दुर्गा, सरस्वती आदि देवियों की पूजा की जाती है। फिर भी इस मंदिर पर प्रश्न उठाए गए,क्यों?

सोचने वाली बात है कि केरल के मंदिर पर क्यों सवाल उठाए गए, क्यों इस मंदिर पर कुछ महिलाएं लगी हुई हैं, क्यों वहाँ की सरकार इन महिलाओं के समर्थन में है, तृप्ति देसाई कौन है और ये हिन्दू मंदिर पर क्यों लगी हुई हैं? इन सारे प्रश्नों के उत्तर खोजने पर सिर्फ एक ही बात सामने आई है कि इन सब के पीछे मिशनरियों का हाथ है। तृप्ति देसाई धर्म परिवर्तित क्रिश्चियन है और कांग्रेस की कार्यकर्ता रही है और वो कांग्रेस की ओर से चुनाव भी लड़ चुकी है। मिशनरियों को केरल की सरकार का संरक्षण प्राप्त है। वहाँ की सरकार मिशनरियों को बहुत सी सुविधा उपलब्ध कराती है। वामपंथी सरकार का एजेंडा ही हिंदुत्व को नष्ट करना है। इन सारी बातों को ध्यान में रखते हुए कहीं से भी ये लड़ाई अधिकार की नहीं दिखती है। क्योंकि अगर ये अधिकार की लड़ाई होती तो मस्जिद में भी महिलाओं के प्रवेश के लिए लड़ी जाती। ये धर्म की लड़ाई है जिसमें राजनीति की रणनीति है। 

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