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बुद्ध की मुस्कान से पराक्रम का आव्हान

-डॉ. सुखदेव माखीजा

Update: 2019-05-18 14:08 GMT

भारत का गरिमामय इतिहास अहिंसा की आस्था के साथ साथ शौर्य के विश्वास से परिपूरित है। भगवान बुद्ध की दयालुता तथा भगवान महावीर का संयम हमारे आत्मीय सम्बल के आधार हैं तो वीरांगना लक्ष्मीबाई का अदम्य साहस एवं हुतात्मा चंद्रशेखर आज़ाद, भगत सिंघ -चंद्रशेखर जैसे क्रांति वीरों के स्वबलिदान हमारे शौर्य के प्रेरणास्रोत हैं। स्वातंत्र्योत्तर भारत में भी देश को सुरक्षा एवं शक्ति प्रदान करने के लिए जल, थल तथा नभ में भारतीय सेनाओं का गौरवशाली योगदान सदैव सर्वोपरि रहा है। सैन्य शौर्य के इस शक्तिपुंज को प्रज्वल्लित रखने हेतु हमारे निष्ठावान समर्पित रक्षा वैज्ञानिकों की अनूठी सहभागिता भी अद्भुत एवं अद्वितीय है। इन निष्ठावान एवं समर्पित वैज्ञानिकों ने वर्ष 1974 तथा 1998 के मई माह में देश की पश्चिमी सीम के समीप पोखरण क्षेत्र में सफल एवं शक्तिशाली परमाणु परीक्षण करके देश को परमाणु शक्ति के रूप में सम्मपन्नता प्रदान की। मुस्कुराते बुद्ध एवम् अभियान शक्ति नाम के इन गुप्त सांकेतिक नामों के इन अद्वितीय एवम् साहसिक अभियानों का पूर्वानुमान अमेरिका तथा रूस देशों की अत्याधुनिक गुप्तचर संस्थाओं को भी नहीं हो सका। भौतिक एवं रासायनिक पदार्थों के प्रकट रूप तो सामान्यत: सभी को दिखाई देते हैं परन्तु जिन मूल अणुओं तथा परमाणुओं से ये पदार्थ निर्मित- सृजित होते हैं उनसे जनसामान्य परचित नहीं होता है। परमाणु शौर्य के प्रतीक गौरवशाली वैज्ञानिक पराक्रमों के मूल अणु एवं परमाणु हमारे वे रक्षा अनुसंधान संगठन तथा उनके वैज्ञानिक एवं सैन्य अधिकारी हैं जिनके समन्वित एवं सुनियोजित अभियानों ने परमाणु शक्ति की विधा में भारत को विश्व गौरव प्रदान किया।

संयोग से प्राय: मई माह से भगवान बुद्ध की पावन प्राकट्य तिथी भी सम्बद्ध होती है। अहिंसा में एक स्वयंसिद्ध आत्मशक्ति भी समाहित होती है। अत: 18 मई 1974 के दिन इस्माइलिंग बुद्ध तथा 11 मई 1998 को बुद्ध पूर्णिमा की पुनीत तिथि के अवसर पर अभियान शक्ति से सम्बद्ध पराक्रमी वैज्ञानिक अभियानों के भगीरथ माध्यम से भारत को परमाणु शक्ति के शिखर पर संस्थापित करने वाले ज्ञात अज्ञात विज्ञान मनीषियों एवं उनके नेतृत्व के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करना हमारा परम कर्तव्य है।


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