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सर्वार्थ सिद्धि योग में मनेगा करवा चौथ का पर्व, महाभारत से जुड़ी है रोचक कथा

Update: 2021-10-21 08:25 GMT

वेबडेस्क।  देशभर में आगामी 24 अक्टूबर को रविवार के दिन करवा चौथ का पर्व मनाया जाएगा। इस दौरान सौभाग्यवती महिलाएं अखंड सौभाग्य एवं अपने पति की दीर्घायु, उत्तम स्वास्थ्य और समृद्धि के लिए निर्जला व्रत करेंगी। इस बार करवा चौथ का पर्व सर्वार्थ सिद्धि और धाता योग में मनाया जाएगा।

प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य डॉ. मृत्युंजय तिवारी के अनुसार रविवार 24 अक्टूबर को कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी प्रातःकाल सूर्योदय से अगली प्रातः तक रहेगी। इस दिन सर्वार्थ सिद्धि और धाता योग रहेगा। इसके साथ ही इस बार चतुर्थी को रोहिणी नक्षत्र का भी योग बन रहा है। रोहिणी नक्षत्र के दिन करवाचौथ का होना भी बहुत शुभ माना गया है। यह महिलाओं के सौभाग्य की वृद्धि करता है। इस दिन चंद्रमा अपनी उच्च राशि वृषभ में पूरे दिन विराजमान रहेंगे। 

रोहिणी नक्षत्र में होगा पूजन - 

उन्होंने बताया कि इस साल करवा चौथ पर रोहिणी नक्षत्र में पूजन होगा, तो वहीं रविवार का दिन होने की वजह से सूर्य देव का भी व्रती महिलाओं को आशीर्वाद प्राप्त होगा। इससे पहले 8 अक्टूबर 2017 को रविवार के दिन ऐसा शुभ योग बना था। रविवार का दिन सूर्य देव को समर्पित है और सूर्यदेव ग्रहों के राजा हैं। सूर्य देव आरोग्य और दीर्घायु का आशीर्वाद प्रदान करते हैं। इस दिन महिलाएं सूर्य देव का पूजन कर पति की दीर्घायु की कामना करें। शुभ मुहूर्त में पूजन करने से व्रती महिलाओं की हर इच्छा पूरी होगी।

सर्वप्रथम माता शक्ति स्वरूपा पार्वती ने रखा था यह व्रत - 

डॉ. तिवारी के अनुसार, पौराणिक कथानक है कि सबसे पहले यह व्रत शक्ति स्वरूपा देवी पार्वती ने भोलेनाथ के लिए रखा था। इसी व्रत से उन्हें अखंड सौभाग्य की प्राप्ति हुई थी। इसीलिए सुहागिनें अपने पतियों की लंबी उम्र की कामना से यह व्रत करती हैं और देवी पार्वती और भगवान शिव की पूजा करती हैं। 

एक बार सभी देवताओं की पत्नियों ने रखा यह व्रत - 

ज्योतिषाचार्य डॉ. तिवारी ने बताया कि देवासूर संग्राम की कथा के अनुसार, एक बार देवताओं और राक्षसों के मध्य भयंकर युद्ध छिड़ा था। लाख उपायों के बावजूद भी देवताओं को सफलता नहीं मिल पा रही थी और दानव हावी हुए जा रहे थे। तभी ब्रह्मदेव ने सभी देवताओं की पत्नियों को करवा चौथ का व्रत करने को कहा। उन्होंने बताया कि इस व्रत को करने से उनके पति दानवों से यह युद्ध जीत जाएंगे। इसके बाद कार्तिक माह की चतुर्थी के दिन सभी ने व्रत किया और अपने पतियों के लिए युद्ध में सफलता की कामना की। कहा जाता है कि तब से करवा चौथ का व्रत रखने की परंपरा शुरू हुई। 

महाभारत में भी है करवा का प्रसंग - 

डॉ. मृत्युंजय तिवारी के अनुसार, महाभारत काल की कथा मिलती है कि एक बार अर्जुन नीलगिरी पर्वत पर तपस्या करने गए थे। उसी दौरान पांडवों पर कई तरह के संकट आ गए। तब द्रोपदी ने श्रीकृष्ण से पांडवों के संकट से उबरने का उपाय पूछा। इस पर कन्हैया ने उन्हें कार्तिक माह की चतुर्थी के दिन करवा का व्रत करने को कहा। इसके बाद द्रोपदी ने यह व्रत किया और पांडवों को संकटों से मुक्ति मिल गई।

यह भी मिलती है करवा चौथ की कथा - 

एक अन्य कथा के अनुसार, प्राचीन समय में करवा नाम की एक पतिव्रता स्त्री थी। एक बार उसका पति नदी में स्नान करने गया था। उसी समय एक मगर ने उसका पैर पकड़ लिया। इस पर उसने मदद के लिए करवा को पुकारा। तब करवा ने अपनी सतीत्व के प्रताप से मगरमच्छ को कच्चे धागे से बांध दिया और यमराज के पास पहुंची। करवा ने यमराज से पति के प्राण बचाने और मगर को मृत्युदंड देने की प्रार्थना की। इसके बाद इस पर यमराज ने कहा कि मगरमच्छ की आयु अभी शेष है, समय से पहले उसे मृत्यु नहीं दे सकता। तभी करवा ने यमराज से कहा कि अगर उन्होंने करवा के पति को चिरायु होने का वरदान नहीं दिया तो वह अपने तपोबल से उन्हें नष्ट होने का शाप दे देगी। इसके बाद करवा के पति को जीवनदान मिला और मगरमच्छ को मृत्युदंड।

पति की लंबी उम्र - 

ज्योतिषाचार्य डॉ. तिवारी के अनुसार, इस पर्व पर सभी सौभाग्यवती महिलाएं एकत्र होकर किसी बुजुर्ग महिला से कहानी सुनती हैं और आपस में करवा बदलती हैं। ऐसा माना जाता है कि करवे को आपस में बदलने से पारिवारिक महिला सदस्य देवरानी-जेठानी, सास-बहू में प्रेम की वृद्धि होती है। करवा के दिन सुहागिन महिलाएं पति की लंबी उम्र की कामना के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। रात में चंद्रमा देखने के बाद व्रत खोला जाता है। कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को ये व्रत रखा जाता है।

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