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सीएए और एनआरसी पर क्या मुसलमानों में डर पैदा किया जा रहा है?

Update: 2019-12-29 17:30 GMT

नई दिल्ली। नागरिकता संशोधन कानून और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर पर देश भर में हो रहे विरोध व हिंसक प्रदर्शन के पीछे कांग्रेस समेत विरोधी दलों की सुनियोजित साजिश है। कांग्रेस अब तक अल्पसंख्यकों को लंबे समय से वोटबैंक की तरह इस्तेमाल करती रही है। पिछले पांच सालों में राष्ट्रवादी सरकार के बढ़ते कदमों को रोकने के लिए उसका कोई दांव नहीं चला तो उसने सीएए और एनपीरआर को ही ढ़ाल बना दिया है। जबकि सीएए और एनपीआर में ऐसा कुछ भी नहीं जिससे किसी भी वर्ग को कोई नुकसान होता हो। सरकार हर स्तर पर नागरिकों को उनकी सुरक्षा, संपत्ति व अधिकारों को लेकर अपना रूख स्पष्ट कर चुकी है, बावजूद इसके मुस्लिम समाज के एक वर्ग लोगों को गुमराह किया जा रहा है। और इस कार्य में राजनीतिक दल आग में घी डालने का काम कर रहे हैं। हालांकि देश के सभी मुसलमानों में इसको लेकर डर नहीं है, बल्कि मुसलमानों का एक वर्ग है, जिसके दिल में डर पैदा किया जा रहा है। और इस तरह का डर फैलाना कोई नई बात नहीं है।

क्या 1986 में इसी तरह का डर पैदा नही किया गया था? जब शाहबानो प्रकरण में मुसलमानों का एक वर्ग बेहद उत्तेजित हो गया था। यह वर्ग धमकी दे रहा था कि शाहबानो प्रकरण में असहमति जताने वाले सांसदों की टांग तोड़ दो। शाहबानो प्रकरण में तत्कालीन कांग्रेस सरकार के कदम का विरोध करने वाले एक मात्र मुस्लिम सांसद आरिफ मोहम्मद खान थे, जो इस समय केरल के राज्यपाल हैं। इसके विरोध में आरिफ खान ने राजीव गांधी सरकार से इस्ताफा दे दिया था।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर गृह मंत्री अमित शाह और महत्वपूर्ण मंत्री कह चुके हैं कि नागरिकता संशोधन कानून को लेकर किसी को भी डरने की जरूरत नहीं है। जिनको इसको लेकर डर है, उनको पहले इस कानून को पढ़ना चाहिए। यह वही कानून है, जिसकी महात्मा गांधी, पंडित जवाहरलाल नेहरू, मौलाना आजाद जैसे नेताओं ने बात की थी। बौर यह बात इन सब ने बहुत पहले की थी।

मौलाना आजाद तो बहुत पहले आज के परिदृश्य को जान चुके थे। तभी आजाद ने कहा था कि पाकिस्तान में रहने वाले लोगों का मिजाज आतंकी है, सो वहां से हिंदू या तो निकाले जाएंगे या फिर वे जान बचाकर भागेंगे। यही बात गांधी जी ने 1947 में कही थी कि पाकिस्तान के अल्पसंख्यकों का यह अधिकार होगा कि वे जब चाहें, तब हिंदुस्थान आएं और भारत सरकार का नैतिक दायित्व होगा कि वह इनको रोजगार और नागरिकता दे। सभ्य नागरिक की तरह उन्हें मूलभूत सुविधाएं भी मुहैया कराए। मौजूदा सरकार अगर यह काम कर रही है तो इसमें गलत क्या है? वह वही वादा तो पूरा कर रही है।

पूर्व प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह 2003 में खुद शरणार्थियों को नागरिकता देने की पहल कर चुके हैं। तब उन्होंने कहा था कि बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों को प्रताड़ना सहनी पड़ रही है। अगर उनको वहां से छोड़कर भागना पड़ता है तो उनको नागरिकता देना भारत का नैतिक दायित्व है। अगर इसी दायित्व को मौजूदा सरकार पूरा कर रही है तो इसमें गलत क्या है?

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