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नाथ के सामने साख बचाने की चुनौती

Update: 2019-03-26 15:28 GMT

भोपाल/राजनीतिक संवाददाता। प्रदेश की राजनीति में भाजपा और कांग्रेस के सामने यह लोकसभा चुनाव बड़ी चुनौती लेकर आया है। इन चुनाव में जहां मुख्यमंत्री कमलनाथ को कांग्रेस की सीटों की संख्या बढ़ाने की चुनौती है। वहीं भाजपा को भी पिछले चुनाव का परिणाम दोहराने की चुनौती है। कुछ सीटों इस दौरान भाजपा का अभेद गढ़ बन चुकी है। इन अभेद गढ़ को भेदने में कांग्रेस लगातार संघर्ष कर रही है। प्रदेश में पिछले दस साल से कांग्रेस एक दर्जन से ज्यादा सीटें नहीं जीत सकी है। वर्ष 2009 में कांग्रेस ने 12 सीटे जीती थी। इससे पहले के कई चुनावों में वह जीत में दहाई का अंक भी नहीं पा सकी थी। वर्ष 2004 में हुए लोकसभा में कांग्रेस को महज चार सीट ही मिली थी। छतीसगढ़ अलग होने के बाद यह पहला चुनाव था। 2014 के लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस महज दो सीट ही जीत सकी है। हालांकि एक सीट वह बाद में उपचुनाव में और जीत गई थी। इन तीन चुनावों में से दो चुनावों में कांग्रेस की जीत वाली सीटों की संख्या दो अंक में नहीं पहुंच सकी थी। हालांकि बीच के एक चुनाव में वह एक दर्जन सीटें जीतने में कामयाब रही।

ऐसे रहे हैं परिणाम

2014 में दो सीट: इस चुनाव में पूरे देश में छाई मोदी लहर का असर प्रदेश में दिखाई दिया था। चुनाव में कांग्रेस के दिग्गज नेता कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया ही चुनाव जीत सके थे । बाद में रतलामझाबुआ सीट पर हुए उपचुनाव में कांग्रेस से कांतिलाल भूरिया जीते।

2009 में जीती थी एक दर्जन सीट: वर्ष 2009 के चुनाव में कांग्रेस पिछले 23 साल में हुए चुनाव में सबसे ज्यादा सीटे जीती थी। इस चुनाव में कांग्रेस ने गुना, शहडोल, मंडला, छिंदवाड़ा, होशंगाबाद, राजगढ़, देवास, उज्जैन, मंदसौर, रतलाम, धार और खंडवा सीटे जीती थी। इस चुनाव में जीते दो सांसद अब भाजपा का दामन थाम चुके हैं। उज्जैन से प्रेम चंद गुड्डू चुनाव जीते थे। वे विधानसभा चुनाव के पहले भाजपा में शामिल हुए। जबकि होशंगाबाद से कांग्रेस के टिकट पर जीत राव उदय प्रताप सिंह ने बाद में पार्टी के साथ ही लोकसभा से इस्तीफा दे दिया था। वे अब भाजपा से सांसद हैं।

2004 में चार सीट: छत्तीसगढ़ अलग होने के बाद लोकसभा के पहले चुनाव में कांग्रेस महज चार सीट जीत सकी थी। उस दौरान कांग्रेस ने ग्वालियर, गुना, छिंदवाड़ा और रतलाम सीट पर कब्जा किया था। बाद में ग्वालियर और खरगौन में उपचुनाव हुए। जिसमें ग्वालियर पर भाजपा का कब्जा हो गया और खरगौन सीट भाजपा से कांग्रेस ने जीत ली थी।

1999 में आठ सीट: इस चुनाव में कांग्रेस ने पिछले चुनाव की तुलना में दो सीटें ज्यादा जीती। गुना, खजुराहो, रीवा, छिंदवाड़ा, राजगढ़, खरगौन, धार और झाबुआ सीटें कांग्रेस के खाते में आई थी।

1998 में छह सीट: इस चुनाव में कांग्रेस ने दो सीटे ज्यादा जीती। कांग्रेस ने ग्वालियर से माधवराव सिंधिया चुनाव जीते थे। सिवनी, छिंदवाड़ा, राजगढ़, धार और झाबुआ सीट भी कांग्रेस ने जीती थी।

1996 में चार सीट: इस चुनाव में भी कांग्रेस कोई बेहतर प्रदर्शन नहीं कर सकी थी। माधवराव सिंधिया मध्य प्रदेश विकास कांग्रेस बना कांग्रेस से अलग होकर चुनाव लड़े थे। जबकि कांग्रेस बालाघाट, छिंदवाड़ा, राजगढ़ और झाबुआ लोकसभा सीट ही जीत सकी थी।

कांग्रेस का मिशन 29

कांग्रेस ने इस बार मिशन 29 रखा है। हालांकि उसके अधिकांश नेता यह चाहते हैं कि कांग्रेस कम से कम 20-22 सीटे हर हाल में जीते। इसके लिए मुख्यमंत्री कमलनाथ ने खुद मोर्चा संभाला है। कांग्रेस में पहली बार किसी नेता ने हर लोकसभा क्षेत्र के नेताओं की अलग-अलग बैठकर, वहां से रायशुमारी करने के साथ ही गुटबाजी रोकने का प्रयास किया है। हांलाकि, उनके इस प्रयास को कितनी सफलता मिली यह बात तो कांग्रेस के सभी 29 उम्मीदवारों का ऐलान होने के बाद बनने वाले हालातों से पता चलेगा, लेकिन कांग्रेस के अन्दर से जो खबरे बाहर आ रही हैं, वह कम से कम मध्यप्रदेश कांग्रेस कमेटी अध्यक्ष और मुख्यमंत्री कमलनाथ के लिए। वह शुभ संकेत तो नही दे रहीं।

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