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'दिग्गजों' को 'धराशाही' करने की चुनौती

Update: 2019-03-19 16:19 GMT

भाजपा-कांग्रेस की कुछ सीटें, जहां हराना रहा है हमेशा से चुनौती, अब जीत की तलाश में जुटी भाजपा-कांग्रेस

भोपाल/राजनीतिक संवाददाता। मध्यप्रदेश की कुछ लोकसभा सीटें ऐसी हैं, जहां पर दिग्गजों को धराशाही करना भाजपा-कांग्रेस दोनों के लिए हमेशा से चुनौती रहा है। अब इन सीटों पर जीत की तलाश में दोनों प्रमुख राजनीतिक दल हैं। इन सीटों पर वर्षों से इनका एकाधिकार रहा है। इस बार भाजपा-कांग्रेस दोनों इस रिकार्ड को तोड़ने की कवायद में जुटे हुए हैं।

मध्यप्रदेश की छिंदवाड़ा, गुना, भोपाल सहित कई लोकसभा सीटें ऐसी हैं, जो वर्षों से एक ही राजनीतिक दल के कब्जे में है। छिंदवाड़ा लोकसभा की सीट पर वर्ष 1980 से अब तक मुख्यमंत्री कमलनाथ सांसद रहे हैं, लेकिन इस बार वे चुनाव मैदान में नहीं उतर रहे हैं। इस बार उन्होंने अपने बेटे नकुलनाथ को यहां से उतारने की तैयारी की है। कमलनाथ वर्ष 1980 में 7वीं लोकसभा के लिए पहली बार सांसद चुने गए थे। वे मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा लोकसभा क्षेत्र से 9 बार संसद सदस्य रहे हैं। वे वर्ष 1985, वर्ष 1989, वर्ष 1991, वर्ष 1998 और वर्ष 1999 में लोकसभा के लिए चुने गए। इसके बाद वे वर्ष 2004 में फिर 14वीं लोकसभा का चुनाव जीते। वे 2009 और 2014 में भी छिंदवाड़ा से जीते। भाजपा अब तक इस सीट पर उनको हराने का तोड़ नहीं निकाल पाई। इस बार छिंदवाड़ा से कमलनाथ के बेटे नकुलनाथ प्रत्याशी होंगे और उनको घेरने के लिए भाजपा भी कोई बड़ा चेहरा सामने ला सकती है।

इसी तरह गुना संसदीय सीट भी वर्षों से कांग्रेस के कब्जे में है। यहां से ज्योतिरादित्य सिंधिया सांसद हैं। इस सीट से अब तक सिंधिया राजघराने का ही कब्जा रहा है। गुना से अब तक विजयाराजे सिंधिया, माधवराव सिंधिया और ज्योतिरादित्य सिंधिया ही ज्यादातर जीतते आए हैं। फिलहाल पिछले 4 चुनावों से इस सीट पर कांग्रेस के ज्योतिरादित्य सिंधिया को ही जीत मिली है। 2014 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने बीजेपी के जयभान सिंह पवैया को 120792 वोटों से शिकस्त दी थी। गुना लोकसभा सीट पर पहला चुनाव 1957 में हुआ था। इसमें विजयाराजे सिंधिया ने जीत हासिल की थी। कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ते हुए उन्होंने हिंदू महासभा के वीजी देशपांडे को हराया था। वर्ष 1971 में विजयाराजे के बेटे माधवराव सिंधिया मैदान में उतरे। वे यहां से जनसंघ के टिकट पर चुनाव लड़े और उन्होंने जीत हासिल की। 1977 के चुनाव में वह यहां से निर्दलीय लड़े और 80 हजार वोटों से बीएलडी के गुरुबख्स सिंह को हराया। इसके बाद वह 1980 में कांग्रेस के टिकट पर यहां से लड़ते हुए जीत हासिल की। वे लगातार 3 चुनावों में यहां से विजयी रहे। 2001 में माधवराज सिंधिया के निधन के बाद 2002 में हुए उपचुनाव में उनके बेटे ज्योतिरादित्य सिंधिया यहां से लड़े और जीते। इसके बाद गुना की जनता उनको लगातार जिताती आ रही है। 2014 में मोदी लहर में जब कांग्रेस के दिग्गज नेताओं को हार का सामना करना पड़ा था, तब भी ज्योतिरादित्य सिंधिया यहां पर जीत हासिल करने में कामयाब हुए थे।

भोपाल लोकसभा सीट पर भी ज्यादातर समय भाजपा का कब्जा रहा है। इस सीट पर जीत हासिल करने के लिए कांग्रेस लगातार प्रयासरत है, लेकिन अब तक सफलता हासिल नहीं हो सकी है। अब इस बार कांग्रेस यहां से दिग्विजय सिंह को मैदान में उतार सकती है। हालांकि दिग्विजय सिंह को टक्कर देने के लिए भाजपा ने भी तैयारियां शुरू कर दी हैं, लेकिन फिलहाल नाम तय नहीं हो सके हैं। भोपाल सीट का इतिहास शुरूआत में कांग्रेस समर्थित रहा, लेकिन करीब ढाई दशक से भारतीय जनता पार्टी का कब्जा है। अब तक 15 आम चुनावों में भोपाल सीट से नौ गैर कांग्रेस प्रत्याशी जीते हैं। 1989 के बाद तो कांग्रेस इस सीट से गायब सी हो चुकी है। भोपाल में पहले लोकसभा चुनाव में दो सीट थीं, जिन्हें रायसेन और सीहोर के नाम से जाना जाता था। इसके बाद 1957 भोपाल की एक सीट हो गई, जिसमें पहली बार मैमूना सुल्तान ने कांग्रेस का प्रतिनिधित्व किया और वे हिंदू महासभा के हरदयाल देवगांव को हराकर सांसद बनी। इसके बाद 1962 में दोबारा हिंदू महासभा के ओमप्रकाश को हराकर लोकसभा पहुंची। 1967 में भारतीय जनसंघ ने अपने प्रत्याशी उतारे और भोपाल सीट पर पहली बार में कब्जा जमा लिया। उसके प्रत्याशी जेआर जोशी ने मैमूना सुल्तान को हराया। इस जीत को भारतीय जनसंघ 1971 के अगले चुनाव में बरकरार नहीं रख सकी और कांग्रेस के शंकरदयाल शर्मा ने उसके प्रत्याशी भानुप्रकाश सिंह को हराकर कांग्रेस को सीट वापस दिलाई। इसके बाद 1977 में भारतीय जनसंघ के स्थान पर भारतीय लोकदल बना और इसमें गैर कांग्रेस की सरकार चाहने वाले एकसाथ आ गए। भारतीय लोकदल की ओर से आरिफ बेग ने भोपाल सीट पर पुन: कब्जा किया और उन्होंने शंकरदयाल शर्मा को 1.08 लाख के भारी अंतर से हरा दिया। 1980 में कांग्रेस लहर आई। उस समय फिर नए पार्टी जनता पार्टी बनी। कांग्रेस के शंकरदयाल शर्मा ने दोबारा सीट पर कब्जा किया और आरिफ बेग को हराया। आठवीं लोकसभा के लिए 1984 में हुए चुनाव में कांग्रेस ने सीट पर कब्जा बनाए रखा और उसके प्रत्याशी केएन प्रधान ने नवगठित भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी लक्ष्मीनारायण शर्मा को करारी मात दी थी। प्रधान की यह करीब एक लाख 68 हजार 900 वोटों की थी जो कांग्रेस के इस सीट के इतिहास में सबसे बड़ी जीत का अंतर है। 1984 के बाद तो कांग्रेस को भोपाल लोकसभा सीट से जीत का स्वाद मिला ही नहीं है। 1989 में कांग्रेस की इस सीट को सबसे पहले पूर्व मुख्य सचिव रहे सुशीलचंद्र वर्मा ने भाजपा के कब्जे की। इसके बाद वे लगातार चार बार 1998 तक इस सीट से सांसद रहे। इसके बाद 1999 में उमा भारती और 2004 व 2009 में कैलाश जोशी यहां से जीते। 2014 के चुनाव में भाजपा ने यहां से आलोक संजर को मैदान में उतारा और उन्होंने कांग्रेस के पीसी शर्मा को करारी शिकस्त दी।  

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