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ईओडब्ल्यू 8 साल में 150 में से केवल डेढ़ दर्जन मामलों की ही कर सका जांच

Update: 2019-03-18 17:39 GMT

आठ साल में पूरी नहीं हो सकी सहकारिता घोटाले की जांच

भोपाल/विशेष संवाददाता। आर्थिक अपराधों की जांच का जिम्मा जिस सरकारी एजेन्सी आर्थिक अपराध अंवेषण ब्यूरो के पास है, वह अब सफेद हाथी नजर आने लगा है। इस संस्था द्वारा की जाने वाली विभिन्न जांचों की गति इतनी धीमी होती है कि जांच का महत्व ही लगभग समाप्त हो जाता है। यही नहीं जांच की मंद गति के चलते कई आरोपी सेवानिवृत्त हो जाते हैं और जांच ही पूरी नहीं हो पाती है। इसका बड़ा उदाहरण सहकारिता क्षेत्र में हुए 12 करोड़ की जांच है। बीते आठ सालों में इसकी जांच की गति इतनी धीमी है कि डेढ़ सौ में से महज डेढ़ दर्जन सोसायटी की ही जांच की गई है।

विभाग ने बैंक और सहकारिता कर्मचारियों द्वारा किसानों के नाम पर फर्जी तरीके से लोन चढ़ाकर करोड़ों रुपए हड़पने के मामले में 2011 में डेढ़ सौ सोसाइटियों की जांच सौंपी थी, लेकिन यह जांच आर्थिक अपराध अंवेषण ब्यूरो में जाकर फाइलों में दब गई। आर्थिक अपराध अंवेषण ब्यूरो को होशंगाबाद, हरदा जिला सहकारी बैंक में हुए इस घोटाले में दोनों जिलों के अंतर्गत आने वाली लगभग डेढ़ सौ सोसाइटियों की जांच करनी थी, लेकिन ईओडब्ल्यू में जाकर जांच की फाइल दब गई। भाजपा सरकार में इस फाइल की धूल साफ नहीं हुई, हाल ही में कांग्रेस सरकार द्वारा फर्जी तरीके से किसानों के नाम पर कर्ज लेने वाले सभी मामलों की जांच कराकर कार्रवाई करने के आदेश देने के बाद ईओडब्ल्यू में फिर से यह फाइल खुली और डेढ़ सौ सोसायटियों की जांच के विरुद्ध अभी महज 18 सोसाइटियों की ही जांच की जा सकी है।

क्या है मामला

वर्ष 2008 में केंद्र सरकार ने किसानों का कर्ज माफ किया था। इस दौरान होशंगाबाद जिला सरकारी बैंक के अंतर्गत होशंगाबाद और हरदा जिला के 25 हजार किसानों का भी लोन माफ करने के लिए जिला सहकारी बैंक ने नाबार्ड से राशि प्राप्त कर ली थी। इन 25 हजार किसानों में से 5 हजार किसानों के नाम फर्जी तरीके से शामिल कर लिया गए थे। ये ऐसे किसान थे, जिन्होंने कभी लोन लिया ही नहीं, न ही खाते खुलवाए थे। इसके साथ ही सैकड़ों किसान ऐसे भी थे, जिनकी मौत भी हो चुकी थी। होश्ंागाबाद के जिला सहकारी बैंक द्वारा जिसमें होशंगाबाद और हरदा क्षेत्र की सोसाइटियां शामिल हैं, ऐसी डेढ़ सौ सोसाइटियों में बैठे जिम्मेदार कर्मचारियों और संबंधित अधिकारियों ने मिलीभगत कर लगभग दो हजार किसानों के नाम पर फर्जी से लोन चढ़ाकर राशि निकाल ली थी।

इनके खिलाफ दर्ज प्रकरण

पूर्व महाप्रबंधक डीआर सिरोठिया, भुजराम जाट, संतोष उपाध्याय, गोपी किशन यादव, रमेश ओझा, पद्म सिंह बघेल, रामनारायण, गोपी किशन हंडिया, रामनारायण चौहान, हरि प्रसाद गौर, प्रवीण कुमार काशिव, हरि प्रसाद बेड़ा, सुरेश, नर्मदा प्रसाद रायखेड़े, नारायण सिंह, एमएल बैरागी, ओमप्रकाश विश्नोई, देवेन्द्र शर्मा, मोहन लाल बघेल, हेमंत व्यास, प्रेमनारायण जाट, रामदास शर्मा, हरि प्रसाद बेड़ा पर्यवेक्षक, सुरेश तिवारी, सेवाराम सहित संस्था के अन्य कर्मचारी शामिल थे।

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