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प्रतिष्ठा बचाने मंत्रियों पर दारोमदार!

Update: 2019-03-17 15:46 GMT

मुख्यमंत्री कमलनाथ ने सौंपी मंत्रियों को अपने-अपने जिलों में जीत की जिम्मेदारी

प्रतिष्ठा का प्रश्न बन चुके लोकसभा चुनाव में जीत के लिए कांग्रेस का दारोमदार काफी हद तक मंत्रियों पर है। मुख्यमंत्री कमलनाथ ने अपने सभी मंत्रियों को अपने-अपने जिलों में जीत की जिम्मेदारी सौंपी है। मंत्रियों ने भी साख बचाने के लिए क्षेत्रों में डेरा जमा लिया है। वे अपने-अपने गृह एवं प्रभार वाले जिलों में सक्रिय हैं। हालांकि इनमें से ज्यादातर मंत्री पहले लोकसभा का चुनाव लड़ चुके हैं और भाजपा प्रत्याशियों से हार का सामना भी करना पड़ा है, लेकिन विधानसभा में जीत के बाद उन्हें मंत्री पद से नवाजा गया है। अब मुख्यमंत्री कमलनाथ ने अपने मंत्रियों पर जीत का भरोसा जताया है।

भोपाल/सुमित शर्मा। लोकसभा चुनाव के लिए प्रदेश में आचार संहिता प्रभावशील है। आचार संहिता के साथ ही भाजपा-कांग्रेस ने टिकट के दावेदारों पर भी मंथन शुरू कर दिया है। एक तरफ जहां कांग्रेस इस बार प्रदेश में 22 से अधिक सीटों पर जीतने का दावा कर रही है तो वहीं भाजपा भी अपनी जीत के इतिहास को दोहराने की कवायद में जुटी हुई है। कुल मिलाकर इस बार मुकाबला बेहद कांटे का होना है। इसके लिए दोनों प्रमुख दलों में मंथन का दौर जारी है।

मंत्रियों पर जीत का भरोसा

प्रदेश में सरकार बनाने के बाद कांग्रेस का आत्मविश्वास लौटा है। मुख्यमंत्री कमलनाथ प्रदेश में 22 सीटों पर जीत का दावा कर रहे हैं। वे कहते हैं कि प्रदेश की जनता ने 15 साल प्रदेश में और 5 साल केंद्र में भाजपा को सरकार चलाने का मौका दिया, लेकिन इनकी सरकार प्रदेश और देश की जनता के लिए कुछ नहीं कर सकी, लेकिन हमने प्रदेश में सरकार बनाने के बाद किसानों की सुध ली है। अब किसानों के भरोसे ही कांग्रेस प्रदेश में 22 सीटों पर जीत का दावा कर रही है। इसके लिए मुख्यमंत्री कमलनाथ ने अपने सभी मंत्रियों को उनके क्षेत्रों में जीत की जिम्मेदारी सौंपी है। इसके साथ ही उन्होंने विधायकों को भी मैदान में जुट जाने के लिए कहा है।

कई मंत्रियों को मिली थी हार

कांग्रेस सरकार के मंत्रियों को वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा था। हालांकि वे उस समय विधायक जरूर थे, लेकिन उनकी सांसद बनने की इच्छा पूरी नहीं हो सकी। दरअसल कांग्रेस के पास इस बार भी चुनाव जिताऊ चेहरों की कमी है, लेकिन कांग्रेस अपने वर्तमान मंत्री और विधायकों को टिकट नहीं देगी, क्योंकि प्रदेश में सरकार भी अल्पमत में है, ऐसे में कांग्रेस कोई रिस्क लेना नहीं चाहेगी। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने भिंड से ईमरती देवी को मैदान में उतारा था, लेकिन वे भाजपा के डॉ. भागीरथ प्रसाद से चुनाव हार गईं थीं। सागर से गोविंद सिंह राजपूत भाजपा के लक्ष्मीनारायण यादव से चुनाव हारे थे। ओंकार सिंह मरकाम मंडला से भाजपा प्रत्याशी फग्गन सिंह कुलस्ते से चुनाव हारे थे। बालाघाट से हीना कांवरे बोधसिंह भगत से चुनाव हारी थीं। विदिशा से सुषमा स्वराज के सामने लक्ष्मण सिंह को टिकट दिया था। लक्ष्मण सिंह भी बड़े अंतर से चुनाव हार गए थे। जनसंपर्क मंत्री पीसी शर्मा भोपाल संसदीय सीट से चुनाव मैदान में थे। वे आलोक संजर से हारे थे। सज्जन सिंह वर्मा को देवास से मनोहर ऊंटवाल ने हराया था। इसी तरह धार से उमंग सिंघार को भाजपा की सावित्री ठाकुर ने पराजित किया था।

मंत्रियों की बेरुखी बनी चिंता

भले ही मुख्यमंत्री कमलनाथ ने अपने मंत्रियों को उनके क्षेत्रों में सक्रिय कर दिया है, लेकिन मंत्रियों की बेरुखी चिंता का कारण भी बन गई है। पिछले दिनों कमलनाथ ने लोकसभा क्षेत्रों को लेकर स्थानीय नेताओं से चर्चा की। इस दौरान ज्यादातर मंत्रियों की शिकायत आई थी कि मंत्री उनके फोन ही नहीं उठाते हैं। कई मंत्रियों के बारे में तो यह तक भी कहा गया था कि वे लोगों से मेल-मुलाकात नहीं करते। हालांकि इस समय मंत्रियों को मैदान में विधानसभा चुनाव के दौरान दिए गए वचनों को लेकर भी जनता को जबाव देना पड़ रहा है। दरअसल कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव के दौरान कई ऐसे वचन दिए थे, जो अब तक पूरे नहीं हो सके। कांग्रेस ने किसानों की कर्जमाफी का सिलसिला जरूर शुरू किया है, लेकिन ज्यादातर किसानों को अब तक इसका लाभ नहीं मिला है। इस कारण मंत्रियों के सामने मैदान में भी दिक्कत ही दिक्कत नजर आ रही है। बहरहाल अब यह देखना दिलचस्प होगा कि वे प्रदेश की जनता को कैसे कांग्रेस की तरफ खींचने में कामयाब होंगे।

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