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भाजपा का अभेद्य दुर्ग रही है देवास लोकसभा सीट

Update: 2019-03-07 18:58 GMT

भाजपा-कांग्रेस को चेहरों की तलाश

विशेष संवाददाता भोपाल

मध्य प्रदेश की देवास लोकसभा सीट भाजपा का दशकों से गढ़ रही है। यह संसदीय क्षेत्र मालवा क्षेत्र में आती है तथा अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। पूर्व में इस सीट को देवास-शाजापुर लोकसभा क्षेत्र के नाम से जाना जाता था। उस समय सीट पर भाजपा ने लगातार 6 बार सफलता अर्जित की थी। इस सीट से दो बार भाजपा के फूलचन्द वर्मा तथा चार बार थावरचन्द गहलोत ने सफलता हासिल की थी। साल 2008 में देवास-शाजापुर सीट का अस्तित्व समाप्त हो गया और देवास पृथक लोकसभा सीट के रुप में अस्तित्व में आई।

इस लोकसभा सीट को भाजपा का अभेद्य किला माना जाता है। कांग्रेस सालोंं से यहां जीत की तलाश कर रही है। इस सीट से 2014 में भाजपा के मनोहर ऊंटवाल ने चुनाव जीता था। हाल ही में वह विधानसभा चुनाव में आगर विधानसभा से चुनाव जीते हैं। इसलिए यह सीट खाली हो गई है। अब भाजपा को इस सीट पर नए चेहरे की तलाश है। वहीं, कांग्रेस से इस सीट पर मंत्री सज्जन सिंह वर्मा के बेटे का नाम सामने आ रहा है।

जब पहली बार साल 2009 में परिसीमन के कारण देवास-शाजापुर सीट का समाप्त कर अलग देवास सीट का गठन किया गया, तब साल 2009 में हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के सज्जन सिंह वर्मा ने भाजपा के थावरचंद गहलोत को बड़ा झटका दिया था। दशकों से भाजपा की कब्जे वाली सीट पर वर्मा ने जीत दर्ज की थी। लेकिन मोदी लहर में भाजपा ने कांग्रेस से यह सीट हासिल करली। 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में सज्जन सिंह वर्मा यहां से सोनकच्छ विधानसभा से विधायक चुने गए हैं और वर्तमान सरकार में वह लोक निर्माण मंत्री हैं।

मोदी लहर में भाजपा जीती

इस सीट पर 2009 में कांग्रेस का कब्जा था, लेकिन 2014 में हुए आम चुनाव में मोदी लहर के चलते कांग्रेस के कई दिग्गज चुनाव हारे इसमें सज्जन सिंह वर्मा भी शामिल थे। भाजपा ने 2014 में इस सीट पर 2.6 लाख मतों से जीत दर्ज की थी। हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में इस बार भाजपा और कांग्रेस दोनों ने चार-चार विधानसभा सीटें जीती हैं, लेकिन अगर मत प्रतिशत की बात की जाए तो कांग्रेस को इस संसदीय क्षेत्र से भाजपाकी तुलना में 40 हजार अधिक मत मिले हैं।

क्या है यहां मुद्दे

इस क्षेत्र में विकास की बहुत कमी है। यहां बेरोजगारी बड़ा मुद्दा है। कृषि संकट से लेकर व्यापारियों के बीच गुस्सा, बेरोजगारी और विकास की कमी प्रमुख मुद्दे रहे हैं, और यह गुस्सा राज्य सरकार के उम्मीदवार के रूप में दिखाई दे रहा था। देवास सीट शाजापुर, देवास, आगर मालवा और सीहोर जिलों में फैली हुई है। सज्जन सिंह वर्मा के अलावा, कांग्रेस के युवा चेहरे कुणाल चौधरी ने भी काला पीपल विधानसभा सीट से जीत दर्ज की है। यहां के मतदाताओं ने अतीत में भाजपा को पसंद किया है। कस्बे और आस-पास के क्षेत्रों में अभी भी पूर्ववर्ती रियासतों का प्रभाव है।

कई बार बदला अस्तित्व

देवास लोकसभा सीट का अस्तित्व कलातंर में कई बार बदला। आजादी के बाद इस सीट को शाजापुर-राजगढ़ के नाम से जाना जाता था। साल 1951 में पहलीबार यहां से दो सांसद चुने गए। इनमें लीलाधर जोशी और भागु नन्दू मालवीय शामिल हैं। दोनों ही भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य थे। तदोपरांत साल 1957 में एक बार फिर से इस सीट पर दो सांसदों का चुनाव हुआ और कन्हैया लाल मालवीय और लीलाधर जोशी सांसद बने। साल 1962 में इस सीट का अस्तित्व समाप्त कर दिया गया। इसके बाद 1967 में भारतीय जनसंघ के बाबूराव पटेल और 1971 में भारतीय जनसंघ के ही जगन्नाथराव जोशी यहां से सांसद निर्वाचित हुए। साल 1977 में इस सीट को अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित कर दिया गया। इसके बाद साल 1984 और 2009 को छोड़कर इस लोकसभा सीट पर भाजपा का ही कब्जा रहा है।

बदलेंगे चुनाव के समीकरण

संसदीय क्षेत्र की 8 विधानसभा में से इस बार 4 सीटों पर भाजपा-कांग्रेस का कब्जा हो गया है। दोनों पार्टी की 4-4 विधायक होने से लोकसभा चुनाव रोचक रहेगा। शाजापुर, सोनकच्छ, हाटपिपल्या और कालापीपल 4 सीट पर कांग्रेस की जीत हुई है। जबकि 4 सीट देवास, आष्टा, आगर और शुजालपुर सीट भाजपा की है। दोनों पार्टी के पास बराबर विधानसभा होने के कारण लोकसभा चुनाव में भी मतों का समीकरण बदलने के आसार बनेंगे।

क्या है राजनीतिक इतिहास

अतीत में देवास लोकसभा सीट, जैसा कि 1967 में जाना जाता था, जनसंघ के उम्मीदवार बाबूराव पटेल द्वारा जीती गई थी। बाद में इसे शाजापुर निर्वाचन क्षेत्र के रूप में नाम दिया गया। जनसंघ के दूसरे दिग्गज जगन्नाथ जोशी 1971 के चुनाव में निर्वाचित हुए। बाद में, 1977 में जनता पार्टी के उम्मीदवार के रूप में चुनाव लडऩे वाले फूल चंद्र वर्मा ने यहाँ से जीत हासिल की। 1980 में वर्मा फिर से विजयी हुए, जब जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा, तो उन्होंने कांग्रेस के रामभजन गौतम को हराया। इस निर्वाचन क्षेत्र के कांग्रेस-विरोधी मूड का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कांग्रेस को यहां जीतने में 27 साल लग गए। इससे पहले, यह 1957 में कांग्रेस की लीलाधर जोशी ने जीत हासिल की थी। फिर 2004 में थावरचन्द गहलोत को लगातार चौथी बार जीत मिली थी। उन्होंने श्याम मालवीय को हराया था। लेकिन 2009 में गहलोत को बड़ा झटका लगा कांग्रेस के सज्जन सिंह वर्मा ने उन्हें यहां से हराया। हालांकि वर्मा मात्र 15 हजार मतों से जीते थे, लेकिन मोदी लहर में 2014 में भाजपा इस सीट पर एक बार फिर कमल खिलाने में सफल रही। मनोहर ऊंटवाल को दो लाख से अधिक मतों से जीत मिली थी। भाजपा के मनोहर ऊंटवाल ने विधानसभा चुनाव लड़ा और वह विधायक चुने जा चुके हैं। अब भाजपा को यहां नए चेहरे की तलाश है। हालांकि पार्टी थावरचन्द गहलोत को भी इस सीट पर उतारने का विचार कर रही है। वह फिलहाल राज्यसभा सांसद और केंद्र में मंत्री हैं।

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