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सहकारी बैंकों के संचालक मंडल पर सरकार की नजर

Update: 2019-03-06 15:35 GMT

14 सहकारी बैंको के संचालक मंडल पर लटकी तलवार

विशेष संवाददाता भोपाल

भाजपा शासनकाल में हुए कई निर्णयों पर सवाल उठाने और जांच बैठाने के बाद सरकार की नजर जिला सहकारी बैंकों के संचालक मंडल पर है। रतलाम, बालाघाट, झाबुआ, धार, खंडवा, इंदौर, मंदसौर, शाजापुर, छिंदवाड़ा, रायसेन और भोपाल बैंकों में बोर्ड भंग किए जा चुके हैं। कोरम का अभाव बताकर सरकार ने यहां प्रशासक पदस्थ करना शुरू कर दिया है। अभी तक 11 जिला सहकारी बैंकों में प्रशासक पदस्थ किए जा चुके हैं। शेष 14 सहकारी बैंकों के संचालक मंडल पर तलवार लटकी है। विभाग के संयुक्त पंजीयक अपने स्तर पर संचालक मंडल को भंग करने का प्रस्ताव भेज रहे हैं।

बता दें कि भाजपा सरकार में करीब तीन हजार समितियों से चुनाव जीत कर आए सदस्यों ने 25 बैंकों के अध्यक्षों का चयन किया था, लेकिन अब इनमें से ज्यादातर सदस्य डिफाल्टर हो चुके हैं। करीब आठ सहकारी बैंकों में अनियमितताओं की शिकायतें आई हैं, इन बैंकों में या तो समय पर संचालक मंडल की बैठक नहीं हुई है या फिर संचालक मंडल ने ऐसे निर्णय ले लिए हैं जो उनके अधिकार क्षेत्र में ही नहीं थे। कई जगह अविश्वास प्रस्ताव की स्थितियां भी बन रही हैं। सभी सहकारी बैंकों में पिछले संचालक मंडल के चुनाव को लेकर पिछले चार माह से घमासान मचा हुआ है। हर ह ते दो से तीन बैंकों का संचालक मंडल भंग हो रहा है।

बड़े संघों में भी होगी उठापटक

लघु वनोपज जैसे अन्य संस्थाओं में जहां अध्यक्षों ने हटाए जाने को लेकर सहकारिता न्यायालय से स्थगन ले रखा है वहां सदस्यों के माध्यम से अविश्वास प्रस्ताव लाने की स्थिति निर्मित की जा रही है। इन संस्थाओं में प्रशासन नियुक्त करने के बाद समितियों का चुनाव कराया जाएगा और इसके बाद यहां के अध्यक्षों का चुनाव होगा। बताया जाता है कि 12 संघ में अध्यक्षों को हटाकर चुनाव कराया जाना है। इसकी भी तैयार कांग्रेस सरकार ने शुरू कर दी है। इन अध्यक्षों के द्वारा पिछले पांच साल में किए कार्यों और निर्णयों में कमियां निकाली जा रही है।

80 प्रतिशत समितियां डिफाल्टर

बालाघाट और खंडवा सहकारी बैंक को छोडकऱ जहां भी संचालक मंडल भंग किए गए हैं वहां के सदस्यों की समितियां डिफाल्टर पाई गई हैं। जिस समय सीमा में समितियों को किसानों से ऋण वसूली कर बैंकों में राशि जमा करना था उस समय तक उन्होंने राशि जमा नहीं की है। इसके विधानसभा चुनाव और कांग्रेस वचन पत्र के चलते किसानों ने लोन की राशि देना बंद कर दिया, जिससे 80 प्रतिशत समितियां डिफाल्टर हो गई है।

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