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कमल नाथ से 'कड़क' नाथ हो जाएं

Update: 2019-02-24 15:44 GMT

राजनीतिक संक्रमण काल से गुजर रहे हैं नाथ

विशेष संवाददाता भोपाल

मध्यप्रदेश सरकार कडक़ी के हालात से गुजर रही है। मुख्यमंत्री कमलनाथ ने साफ़ कर दिया है, प्रदेश में आर्थिक तंगी है, बेवजह खर्च करने पर कार्रवाई हो सकती है। मुख्यमंत्री को इन दिनों प्रशासन और राजनीति दोनों ही मोर्चो पर दो-दो हाथ करना पड़ रहा है। कांग्रेस की राजनीति में उनके हाथ बंधे है, गलती करने वाले मंत्रियों से सीधे बात नहीं कर पा रहे है, मंत्रियों की लगाम खींचने के लिए उन्हें सहारा लग रहा है। नौकरशाहों का चयन करने में कहीं चूक हो गई है। प्रशासनिक अश्व की वल्गाएँ शिथिल दिख रही है। नाम के अनुरूप सौम्य कमल नाथ को अब "कडक़" नाथ बन जाना चाहिए। कडक़ का अर्थ थोड़ा कठिन। सौम्यता का नतीजा पिछले चार दिनों से चर्चा में है। विधानसभा के बयानों के बाद अब मंत्री पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह से सीधी पत्राचार कर रहे हैं। यह प्रक्रिया ठीक नहीं है, इसके परिणाम क्या होंगे ? कल्पना कीजिए।

कानून व्यवस्था चौपट

सरकार में आने से पहले कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष की हैसियत से मुख्यमंत्री कमलनाथ ने प्रदेशवासियों को यह भरोसा दिलाया था कि उनकी सरकार आने के बाद प्रदेश शांति का टापू होगाए जहां महिलाएं सुरक्षित होंगी। लूट, अपहरण, डकैती जैसे बड़े अपराधों का नामोनिशान नही होगा, लेकिन स्थितियां इसके उलट हैं। सतना की घटना ने तो पूरे प्रदेश को दहला दिया है। जहां दो बच्चों के अपहरण और फिरोती की रकम लेने के बाद भी उनकी जघन्य हत्या की घटना ने प्रदेश में कमलनाथ सरकार की कार्यप्रणाली और दावों पर सवालिया निशान लगा देने के लिए काफी हैं।प्रदेश के लोग कांग्रेस के दिग्विजय सिंह शासन के समय कां भूले नही हैं। जब पूरा प्रदेश डकैतों की चारागाह बन गया था और अपहरण की मंडी ने गांवों से लेकर महानगरों तक पैर पसार रखे थे। वह भी तब जब कि 12 घण्टे पहले ही प्रदेश के मुखिया ने कानून व्यवस्था को लेकर प्रदेश के पुलिस मुख्यालय में बैठकर पाठ पढ़ाया हो।

लोकसभा चुनाव की चुनौती

मुख्यमंत्री होने के साथ-साथ कमलनाथ मध्यप्रदेश कांग्रेस कमेटी के मुखिया भी हैं। ऐसे में लोकसभा के संभावित चुनावों में उनकी जिम्मेदारी बढ जाती है कि प्रदेश से कांग्रेस को अधिक से अधिक सीटें जीतकर दें। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के मुखिया राहुल गांधी ने मिशन-19 के तहत उन्हे प्रदेश से 25 सीटें जीतने का लक्ष्य दिया है। अब सवाल यह उठता है कि प्रदेश में जो राजनीतिक हालात हैं और कांग्रेस के अन्दर जो परिस्थितियां पिछले दिनों बनी हैं उसके बाद उनके सामने बड़ी चुनौती है।

प्रदेश की परिस्थितियों से अनभिज्ञ

कमलनाथ के लिए सबसे बड़ी मजबूरी यह है कि वे प्रदेश के बारे में बहुत ज्यादा जानकारी नहीं रखते हैं और इसलिए उन्हें किसी गुट विशेष के नेता की समझाइश पर ही काम करना पड़ रहा है। हैरत की बात यह है कि जिस शिवराज सरकार के मुख्यमंत्री सचिवालय के इर्द-गिर्द जमे हुए नौकरशाहों को कांग्रेसी पानी पी पी कर कोसा करते थे, वह आज भी सत्ता में है और अंदर खाने की खबर तो यह है कि सरकार आज भी एक पूर्व मुख्य सचिव ही चला रहे हैं। अब देखना यह होगा कि अपने राजनीतिक जीवन के इस अंतिम पड़ाव में कमलनाथ क्या खरे सोने की तरह दब कर एक बार फिर बाहर आते हैं या फिर उनके निष्कलंक रहे राजनीतिक जीवन को कोई खतरा हो सकता है।

सहयोगी बन रहे मुसीबत

मामूली बहुमत से चल रही इस सरकार के मंत्रियों के रवैये से नाराज 27 विधायकों ने क्लब बनाया है। इनकी राजधानी के एक होटल में बैठक हुई। ये विधायक आज मुख्यमंत्री कमलनाथ से मिलेंगे। उनका कहना है कि क्षेत्र में होने वाले कामों की शिलान्यास पट्टिका में उनका नाम नहीं लिखा जाता। इस बैठक में बसपा विधायक संजीव सिंह, रामबाई, सपा के राजेश शुक्ला, कांग्रेस के आरिफ मसूद, प्रवीण पाठक,संजय यादव, सिद्धार्थ कुशवाह, शशांक भार्गव, देवेंद्र पटेल, निलय डागा, जजपाल जग्गी के साथ कई विधायक मौजूद थे। राजनीति और प्रशासन सरकारी रथ के दो पहिये होते हैं। दोनों शिथिल हो रहें हैं। ऐसे में नाथ के सामने सौम्यता त्याग कर "कडक़" होने के अलावा कोई चारा नहीं है।

कुशल प्रशासक की छवि

राजनीतिक जीवन में चालीस साल तक एक बेहद कुशल प्रशासक के रूप में अपनी छाप छोडऩे वाले, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जाने जाने वाले मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ इन दिनों अपने राजनीतिक संक्रमण काल से गुजर रहे हैं। बहुमत का आंकड़ा न छू पाने के बावजूद 15 साल की राजनीतिक वनवास के बाद कांग्रेस की सरकार बनाने में सफल रहे कमलनाथ ने सरकार बना कर अपनी राजनीति की चातुर्य और कुशलता का प्रमाण तो दे दिया, लेकिन सरकार को चला पाने में अब उनकी सांसे फूल रही हैं। मध्य प्रदेश की राजनीति में केवल छिंदवाड़ा तक सीमित रहे कमलनाथ के लिए सबसे बड़ी परेशानी यह रही कि उन्होंने मध्य प्रदेश में अपना कोई ग्रुप नहीं बनाया और कभी दिग्विजय सिंह तो कभी ज्योतिरादित्य सिंधिया तो कभी अजय सिंह और कभी सुरेश पचौरी जैसे नेताओं के ऊपर ही निर्भर रहे। अब दिक्कत यह है कि सरकार तो बन गई और सरकार भी ऐसी बनी कि देश के राजनीतिक इतिहास में पहली बार राजनीतिक दबाव के चलते सारे मंत्रियों को कैबिनेट मंत्री का दर्जा देना पड़ गया। अब जब लोकसभा चुनाव सिर पर हैं कमलनाथ के सामने बतौर मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष दोनों के नाते सबसे बड़ी जिम्मेदारी कांग्रेस को लोकसभा में ज्यादा से ज्यादा सीटें दिलाने की है और ऐसे में प्रशासनिक कसावट कर पाना उनके लिए नामुमकिन हो रहा है।

तबादलों ने कराई किरकिरी

मध्यप्रदेश में 15 साल बाद कांग्रेस सरकार की वापसी के बाद से ही मुख्यमंत्री सचिवालय के आसपास जिन लोगों ने अपना डेरा डाल दिया है वे कमलनाथ को वास्तविक स्थिति से रूबरू होने ही नहीं दे रहे। अर्थात एक ऐसा पर्दा है, जिसके बाहर का नजारा मुख्यमंत्री कमलनाथ को दिखया नही जा रहा है। मध्यप्रदेश में इन दोनों तबादला उद्योग जोरों पर है। मंत्री से लेकर खुद सरकार में बैठी कांग्रेस के विधायक मुख्यमंत्री के सामने इस तरह किये जा रहे तबादलों पर अपनी आपत्ति दर्ज करा चुके हैं। बात सहीं नही थमी, कुछ विधायको ने मुख्यमंत्री के सामने यह स्पष्ट कह दिया कि तबादले राजनीतिक वैमनस्ता के कारण किये जा रहे हैं। इस पर भी नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव ने हमला बोल रखा है और आरोप लगा रहे हैं के तबादलों में ला यानी पैसा दे और ऑर्डर यानी आदेश ले जा की बनी हुई है। 15 साल की सत्ता वापसी से उत्साहित कांग्रेसी नेता न जाने क्या कर लेना चाहते हैं। इन सब के बीच दो मंत्रियों उमंग सिंगार और बाला बच्चन के बयानों ने तो सरकार की किरकिरी करा दी। मंदसौर में जिस किसान हत्याकांड को लेकर कांग्रेस सत्ता में आई उसी पर पूर्ववर्ती शिवराज सरकार को बाला बच्चन ने गृह मंत्री के रूप में विधानसभा में क्लीन चिट दे दी और शिवराज की जिस नर्मदा परिक्रमा यात्रा में करोड़ों अरबों के घोटाले के आरोपों को लेकर कांग्रेसी चुनाव के दौरान सरकार को कोसते रहे उस पर भी उमंग सिंगार ने सरकार को क्लीन चिट दे दी।

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