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प्रमोशन में आरक्षण के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने नहीं किया कोई बदलाव

Update: 2018-09-26 08:33 GMT

नई दिल्ली/स्वदेश वेब डेस्क। प्रमोशन में आरक्षण मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अपना बहुप्रतीक्षित फैसला बुधवार को सुना दिया। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में पुराने फैसले को ही जैसा का तैसा रखते हुए कहा है कि इस मामले में राज्य सरकारें निर्णय लें।

सरकारी नौकरियों में प्रमोशन में आरक्षण के मसले पर सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ ने बुधवार को फैसला सुनाया। सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि इस मामले में 2006 में एन नागराजन द्वारा दिए फैसले पर पुनर्विचार की जरूरत नहीं है। हालांकि, कोर्ट ने यह भी कहा कि प्रमोशन पर फैसला राज्य सरकार ले। यह फैसला जस्टिस नरीमन की बैंच ने सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एक राहत के तौर पर राज्य को वर्ग के पिछड़ेपन और सार्वजनिक रोजगार में उस वर्ग के प्रतिनिधित्व की अपर्याप्तता दिखाने वाला मात्रात्मक डेटा एकत्र करना जरूरी नहीं है। सर्वोच्च न्यायालय के संविधान पीठ ने कहा है कि नागराज जजमेंट में पुनर्विचार की आवश्यकता नहीं है। यानी इस मामले को दोबारा 7 जजों की पीठ के पास भेजना जरूरी नहीं है। 30 अगस्त को सरकारी नौकरियों में प्रमोशन में आरक्षण मामले में सुप्रीम कोर्ट की सविधान पीठ ने सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित रखा था। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की यह अर्जी खारिज कर दी कि एससी-एसटी को आरक्षण दिए जाने में उनकी कुल आबादी पर विचार किया जाए।  

2006 में यह दिया था फैसला

नागराजन बनाम भारत सरकार मामले में एससी/एसटी को प्रमोशन में आरक्षण देने के कानून को कोर्ट ने सही ठहराया था, लेकिन कहा था कि इस तरह का आरक्षण देने से पहले सरकार को पिछड़ेपन और सरकारी नौकरी में सही प्रतिनिधित्व न होने के आंकड़े जुटाने होंगे। इस कारण राज्यों में एससी/एसटी को प्रमोशन में रिजर्वेशन देने के लिए बनाए कानून रद्द होते रहे हैं। हाल के दिनों में बिहार, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और त्रिपुरा में ऐसा हुआ है। हाई कोर्ट के फैसलों के खिलाफ सभी राज्य सरकारों ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की है।

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