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यूसए की तालिबान से सीधी वार्ता, अफगान सेना से कुछ क्षेत्रों में पीछे हटने का किया आग्रह

Update: 2018-07-29 04:57 GMT

लॉस एंजेल्स| अफगानिस्तान में शांति और स्थिरता के लिए अमेरिकी अधिकारियों ने तालिबान से सीधे वार्ता शुरू कर दी है। यह वार्ता दो दिन पहले कतर में शुरू हुई है| वार्ता में अमेरिका की ओर से दक्षिण एशियाई राजदूत एलिस भाग ले रही हैं| तालिबान से दो अधिकारियों के बातचीत में हिस्सा लिए जाने की जानकारी मिली है। बताया जाता है कि ट्रम्प प्रशासन ने दो सप्ताह पूर्व अपने वरिष्ठ राजनयिकों को निर्देश दिए थे कि वे सीधे तालिबान से सम्पर्क करें ताकि 17 साल से जारी युद्ध को विराम दिया जा सके। इस संदर्भ में तालिबान ने भी इस कथन के जवाब में अफगानिस्तान सरकार से सीधे वार्ता करने से पहले अमेरिका से बातचीत पर सहमति जताई थी।

अमेरिकी रणनीति को एक बड़े बदलाव के रूप में देखा जा रहा है। अमेरिकी मीडिया में इसे यूं भी देखा जा रहा है कि दो पक्षों को समीप लाएं और फिर वार्ता को विस्तृत आकार देकर युद्ध को अंतत: विराम तक ले जाएं। ट्रम्प ने सत्तासीन होते ही अफगानिस्तान में अतिरिक्त संसाधन जुटाए जाने में आनाकानी शुरू कर दी थी। इसके बाद तालिबान ने देश के दूर-दराज के उन क्षेत्रों में कहर बरपाना शुरू कर दिया था, जहां अफगान सेना नगण्य स्थिति में थी या उनका नियंत्रण ढीला पड़ने लगा था। इस समय तालिबान का अफगानिस्तान के 407 जिलों में से 229 जिलों में सरकारी नियंत्रण है। 59 जिलों में तालिबान का सीधा नियंत्रण है, तो देश के दूर दराज के 119 जिलों में तालिबान सरकार के कमजोर नियंत्रण से वहां के लोग बेबस हैं।

न्यूयॉर्क टाइम्स के अनुसार ट्रम्प प्रशासन ने अफगान सेना को देश के दूर-दराज के कम आबादी वाले क्षेत्रों से पीछे हटने का आग्रह किया है। इसका राजनयिक हलकों में यह अर्थ लगाया जा रहा है कि अफगान सेना को उन क्षेत्रों अर्थात बड़े शहरों में अपनी किलेबंदी मजबूत करनी चाहिए जहां तालिबान का प्रभुत्व कम है। इसके दो लाभ गिनाए जा रहे हैं। एक, अफगान सेना को तालिबान से सीधे कम टकराव करना होगा। दूसरे, अफगान सेना पहले से मजबूत किलों की बेहतर किलेबंदी कर सकेगी। इन क्षेत्रों में काबुल, कंधार, कुंदूज, मंजरे शरीफ और जलालाबाद आदि बड़े शहरों के नाम गिनाए जा रहे हैं, जहां तालिबान का अपेक्षाकृत कम प्रभाव है। अमेरिकी मीडिया की मानें तो पिछले ही महीने अफगानिस्तान में अमेरिकी कमांडर जनरल जान डब्ल्यू निकलसन ने ब्रसेल्स में मीडिया से बातचीत में स्वीकारोक्ति की थी कि देश के दूर-दराज के क्षेत्रों में तालिबान का प्रभुत्व जमता जा रहा है और अफगान सेना का अपना साजों सामान छोड़ कर वहां से पलायन करना शुरू हो चुका है। एक अनुमान के अनुसार अफगानिस्तान में पिछले एक साल में अठारह हजार सैनिक मारे जा चुके हैं। 

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