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टू प्लस टू वार्ता : इंडिया और यूसए के बीच संबंधों में सुधार का बेहतर अवसर

Update: 2018-09-03 08:38 GMT

लॉसएंजेल्स। भारत और अमेरिका के बीच कूटनीतिक रिश्तों में कई तरह की चुनौतियां बनी हुई हैं। इसके बावजूद कहा जा रहा है कि समय, काल और परिस्थिति के अनुसार दोनों देशों के बीच संबंधों में सुधार के लिए यह बेहतर अवसर है।

पूर्व राष्ट्रपति जार्ज बुश के नीति सलाहकार एशले जे टेलिस की मानें तो मुद्दा संबंधों में और मिठास घोलने का नहीं है, बल्कि जोखिम को कम से कम किए जाने का है। इसके लिए सभी देश जूझ रहे हैं। भारत अपवाद नहीं है।

भारत और अमेरिका के बीच 2+2 मंत्री स्तरीय वार्ता को लेकर अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोंपियो और जनरल जोसेफ डैन्फ़र्ड इस्लामाबाद होते हुए 5 सितंबर को दिल्ली पहुंच रहे हैं, तो रक्षा मंत्री जिम मैटिस सीधे भारत आ रहे हैं। अमेरिका की दक्षिण एशियाई सामरिक रणनीति की दृष्टि से कहा जा रहा है कि ट्रम्प प्रशासन दक्षिण-पूर्व एशिया में चीन के बढ़ते प्रभाव पर अंकुश लगाने के लिए भारत को अहमियत देना चाहेगा।

इस मिशन की खास बात यह है कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी में दक्षिण मध्यमार्गी होने के नाते कुछेक विसंगतियों के बावजूद अनेक समानताएं हैं, उनके कनिष्ठ सहयोगियों- माइक पोंपियो और जिम मैटिस, दोनों चहेते मंत्री सुलझे हुए और सकारात्मक सोच के धनी माने जाते हैं। मैटिस ने ही पहल करते हुए हवाई स्थित कमान का नाम हिंद-प्रशांत दे कर मित्रता को पुख़्ता किए जाने का प्रमाण दिया था। यह कयास लगाया जा रहा है कि इस वार्ता में भारत को प्रशांत क्षेत्र में बड़ी और अहम भूमिका मिल सकती है।

समाचार पत्र न्यू यॉर्क टाइम्स ने अपने ताज़ा अंक में रेखांकित किया है कि चुनौतियां भले ही बड़ी हैं, लेकिन माइक पोंपियो और जिम मैटिस संबंधों को संरक्षित रखने के साथ-साथ उनमें सुधार लाने में सक्षम होंगे। यह सर्व विदित है कि अमेरिका के किसी दबाव पर भारत मध्य एशिया में अपने हितों के मद्देनज़र ईरान से अकस्मात कच्चा तेल लेना बंद नहीं करेगा और ना ही रूस से दशकों पुराने संबंधों की तिलांजलि देते हुए हथियार लेना ही छोड़ देगा।

भारत और अमेरिकी संबंधों में यह बात कम अहमियत नहीं रखती कि सन 2017 में दोनों देशों के बीच 126 अरब डाॅलर से व्यापार ने नई ऊंचाइयां तय की हैं और भारत से उच्च शिक्षा के लिए आने वाले छात्रों की संख्या इस साल भी एक लाख 86 हज़ार तक पहुंची है। भारत ने भी अठारह अरब डाॅलर के रक्षा समझौते को अंजाम दे कर मित्रता निभाई है। यह रक्षा सामान अगले साल भारत आना तय है। इसके मद्देनजर वाशिंगटन ने रूस से भारत की रक्षा खरीद को नजरंदाज किया है जो एक बड़ी बात है। इसे यूं कहा जाए कि भारत की अहमियत अमेरिका की नज़रों में बढ़ी है, तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। 

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