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परीक्षा उत्सव का आनंद लें

Update: 2019-02-24 14:21 GMT

परीक्षा शब्द को सुनकर ही शरीर में एक अजीब सी सिहरन फैल जाती है। जब यह परीक्षा अचानक हो तो विद्यार्थी की मानसिक एवं शारीरिक क्षमता में स्वत: ही परिवर्तन आने लगता है। जिससे परीक्षार्थी को अत्यधिक तनाव उत्पन्न हो जाता है।

जब हमें ज्ञात होता है, कि प्रतिवर्ष मार्च-अप्रैल ये दो माह विद्यालयीन परीक्षा के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण होते है। इन माहों में विद्यार्थी की पूरे वर्ष की पढ़ाई एवं मेहनत का आंकलन और मूल्यांकन परीक्षा के माध्यम से किया जाता है। छात्रों को बौद्धिक स्तर के अनुसार उनको प्राप्तांक मिलते हैं। कुछ छात्रों को अप्रत्याशित परीक्षा परिणाम भी प्राप्त होता है।

प्रत्येक छात्र परीक्षा को लेकर एक जीवन का अभिन्न अंग मानते हुए हमेशा सकारात्मक ढंग से स्वीकार करें तो परीक्षा का भय समाप्त हो जाता है। परीक्षा के संबंध में विद्यार्थियों के लिए कुछ मनोवैज्ञानिक विधियां बताई जा रही हैं। जिसे अपनाकर तनाव रहित एवं आनंदित होकर परीक्षा में मनोनुकूल अंक प्राप्त कर सकता है।

परीक्षा को सकारात्मक रूप से लें- परीक्षा प्रत्येक समकक्ष परीक्षार्थी की मानसिक एवं बौद्धिक स्तर का मूल्यांकन करने का सबसे उपयुक्त एवं अनिवार्य माध्यम है, क्योंकि परीक्षा के अतिरिक्त ऐसा अन्य कोई विकल्प नहीं है, जो कि परीक्षार्थी का बौद्धिक स्तर का मूल्यांकन कर सके। परीक्षा हमारा मूल्यांकन ही तो करती है, तो इससे हमें डरने की कोई आवश्यकता नहीं है। परीक्षार्थी परीक्षा को सकारात्मक रूप में स्वीकार कर लेता है और उसका तनाव नष्ट हो जाता है। अत: छात्र प्रसन्न चित्त होकर परीक्षा दे सकता है।

तनाव का प्रबंधन करें: प्रकृति ने हमारे शरीर में एंटी तत्व उत्पन्न किये है, जो आवश्यकता पडऩे पर स्वत: उत्पन्न हो जाते हैं। जब किसी परीक्षार्थी को तनाव उत्पन्न हो जाता है तो अपने शरीर की एड्रीनल ग्रंथि से एड्रीनलिन एवं कार्टिसोल हार्मोन्स उत्पन्न हो जाते हैं, जो हमारे मस्तिष्क में उत्पन्न तनाव का प्रबंधन कर देते है। इसलिए इन हार्मोन्स को तनाव प्रबंधन हार्मोन्स कहते हैं। परीक्षार्थी को थोड़ा तनाव होता है तो उससे कार्यक्षमता में एवं वृद्धि के स्तर में बुद्धि मन को केंद्रित करने में सहायक होता है अर्थात केयरफुल होता है। जब परीक्षार्थी को बिल्कुल तनाव नहीं होता तो वह परीक्षा को परीक्षा की तरह से नहीं लेता तो, वह असावधान हो जाता है।

जब परीक्षार्थी को परीक्षा का अत्यधिक तनाव हो जाता है तो वह कार्य के प्रति उदासीन हो जाता है, जिससे कार्य क्षमता घट जाती है, इसे नकारात्मक प्रभाव कहते हैं।

मेडीटेशन एवं योगा का प्रयोग करें- परीक्षा के दिनों में प्रत्येक परीक्षार्थी को 15-30 मिनिट योगा, प्राणायाम व ध्यान अवश्य करना चाहिए। जिससे मन शांत हो जाता है जिससे मन एकाग्र हो जाता है और कम समय में अधिक अध्ययन कर सकते हैं और इस प्रकार समय की बचत होती है। जब कभी आप पढ़ते हुए थक जाएं तो आप लंबी एवं गहरी सांस लेकर आराम से छोड़ते जाएं तो आप स्वत: ही आराम महसूस करने लगेंगे।

ताड़ासन, सर्वांसन, पद्मासन, श्वासन एवं अनुलोम विलोम कपालभांति, भ्रामरी, उद्गीत प्राणायाम का प्रयोग कर मन को शांत कर मस्तिष्क की याद करने की क्षमता बढ़ा देता है।

समय प्रबंधन- विद्यार्थी जीवन में समय का प्रबंधन अति महत्वपूर्ण है। यदि छात्र अपने समय का प्रबंधन विषय के अनुरूप कर ले तो निश्चित रूप से उसे तनााव नहीं होगा और जटिल विषयों को अधिक समय दे तथा एक टू डू लिस्ट इस प्रकार बनाये कि सुबह किस विषय को पढऩा है और उसके बाद कौन सा विषय आदि समय के अनुसार क्रम में व्यवस्थित करलें तो अध्ययन में सुविधा होगी और समय की बचत भी होगी।

माता-पिता का सहयोग- परीक्षा के दिनों में परीक्षार्थी अधिक तनाव मे रहते हैं इसलिए माता-पिता को बच्चों के सोने उठने मे लगभग 6- 7 घंटे की नींद का ध्यान एवं उनके भोजन का विशेष ध्यान रखें। जिसमें दूध, फल, एवं सूखेमेवे आदि को अवश्य सम्मिलित करें। पढ़ाई में बच्चों का मानसिक रूप से सहयोग करें। उनके नोट्स एवं गतवर्ष के प्रश्नपत्रों को करने के लिए प्रेरित करते रहें और बच्चों का मनोबल बढ़ाते रहे।

अंत में हम बच्चों को इस प्रबार से तैयार करें कि बच्चे तनाव रहित परीक्षा को आनन्दमय एवं खुशी के साथ देवे। जिससे बच्चे अधिकतम अंकों के साथ सफलता प्राप्त करने के लिए सक्षम हो सकें।

-डॉ. अतुल कुमार रायजादा 

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