#सिंधिया : दरारें तो पड़ी, पर नहीं हिलीं आस्था के महल की नींव

ग्वालियर महल के इशारे पर चलती रही है शिवपुरी-गुना संसदीय क्षेत्र की राजनीति

Update: 2019-03-23 16:56 GMT

गुना/अभिषेक शर्मा। शिवपुरी-गुना संसदीय क्षेत्र की बात ग्वालियर महल से शुरु होकर ग्वालियर महल पर ही आकर खत्म हो जाती है। यहां के मतदाताओं की पूर्ववर्ती ग्वालियर राजघराने की प्रति आस्था उन्हे इस महल की चौखट चूमने मजबूर करती आई है। इसी आस्था के वशीभूत पिछले 60-65 साल में यहां हुए चुनावों में या तो महल का ही कोई सदस्य जीतकर दिल्ली दरबार पहुँचा है या फिर महल के ही किसी दरबारी को मतदाताओं ने अपना आशीर्वाद प्रदान किया है। तीन पीढ़ी से महल के सदस्य इस संसदीय क्षेत्र पर राज कर रहे है। महल के प्रति मतदाताओं की आस्था का यह महल इतना मजबूत है कि यह न तो किसी लहर में बहा है और न कोई मुद्दा इसे डिगा पाया है। बीच-बीच में दरारें जरुर इस महल में आईं है, किन्तु चूलें अब तक मजबूती के साथ जमीं हुईं है। जिन्हे हिलाने का दम अब तक कोई राजनीतिक दल या प्रत्याशी नहीं दिखा पाया है। इंदिरा लहर में वर्ष 1984 में यहां से महल के दरबारी महैन्द्र सिंह कालूखेड़ा जीतकर दिल्ली पहुँचे तो वर्ष 2014 में प्रचंड मोदी लहर के बावजूद उनका पोता ज्योतिरादित्य सिंधिया जीतने में सफल रहे। ज्योतिरादित्य वर्तमान में भी यहीं से सांसद है, अपने पिता की मौत के बाद वर्ष 2002 में उपचुनाव जीतने सांसद बनने वाले ज्योतिरादित्य अब तक यहां से चार बार चुने जा चुके है। इस बार भी उनकी दावेदारी तय मानी जा रही है, हालांकि नाम उनकी पत्नी श्रीमती प्रियदर्शिनी राजे सिंधिया का भी चल रहा है, किन्तु वह एक नहीं कई बार इससे इनकार कर चुकी है।   

तीन पीढ़ियों से राज कर रहा महल

शिवपुरी-गुना संसदीय क्षेत्र पर ग्वालियर महल तीन पीढ़ी से राज कर रहा है। सिलसिला राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने शुरु किया था, जो 1957 में यहां से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीतकर सांसद बनीं। इसके बाद वह जनसंघ से भी जीतीं और भाजपा से विजयश्री प्राप्त की। उनके पुत्र माधवराव सिंधिया 1977 में यहां से चुनाव लड़े और जीते भी। यह चुनाव माधवराव ने जनसंघ के टिकट पर लड़ा था। इसके बाद वह कांग्रेस प्रत्याशी के रुप में तो निर्दलीय चुनाव जीतकर भी सांसद बने। उनकी मौत के बाद से उनके पुत्र ज्योतिरादित्य सिंधिया यहां से सांसद चुने जाते रहे है। 1952 से लेकर अब तक हुए 16 लोकसभा चुनाव में 13 बार कोई सिंधियाई ही चुनाव जीता है, शेष 3 उम्मीद्वार जो जीते है, वह भी महल के ही दरबारी थे। अब तक संसदीय क्षेत्र में अब तक 9 बार कांग्रेस, 4 बार बीजेपी, एक बार जनसंघ, एक बार स्वतंत्र पार्टी चुनाव जीती है। भाजपा या जनसंघ इस सीट पर तभी जीती जब राजमाता विजयाराजे सिंधिया खुद पार्टी के टिकट पर मैदान में उतरीं।

1957 में दी थी महल ने दस्तक

गुना लोकसभा सीट पर महल ने 1957 में दस्तक दी। दूसरी लोकसभा के 1957 में हुए चुनाव में ग्वालियर की राजमाता विजयाराजे सिंधिया कांग्रेस के टिकट पर पर चुनाव लड़ीं, उन्होंने हिंदू महासभा के वीजी देशपांडे को करीब पचास हजार से अधिक मतों से शिकस्त दी। इससे पहले पहली लोकसभा में अखिल भारतीय हिंदू महासभा के विष्णु घनश्याम देशपांडे चुनाव जीते थे। कांग्रेस से सांसद बनने के 10 साल बाद राजमाता सिंधिया स्वतंत्र पार्टी के चुनाव चिन्ह पर मैदान में उतरी और उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी डीके जाधव को हराया। 1967 में हुए उपचुनाव में जेबी कृपलानी यहां से स्वतंत्र पार्टी के सांसद बने। महल की दूसरी पीढ़ी का आगमन 1971 में लोकसभा में हुआ। 71 के चुनाव में राजमाता के पुत्र माधवराव सिंधिया ने जनसंघ के टिकट पर चुनाव लड़ा और महज 26 साल की उम्र में सांसद बने। माधवराव सिंधिया का 1977 में जनसंघ से मोहभंग हो गया, उन्होंने निर्दलीय चुनाव मैंदान में उतरकर बीएलडी के गुरुबख्स सिंह को चुनाव हराया। हालांकि 1971 का चुनाव लाखों मतों से जीतने वाले माधवराव की जीत इस चुनाव में महज 80 हजार पर सिमटकर रह गई। इसके बाद 1980 का चुनाव उन्होने कांग्रेस के टिकट पर लड़ा और जीते भी। इसके बाद वह लगातार तीन लोकसभा चुनाव यहां से जीते। 1984 में वह ग्वालियर की लोकसभा सीट से चुनाव लड़े, और अपने सिपहसलार महैन्द्र सिंह कालूखेड़ा को गुना से चुनाव लड़ाया। दोनों ही सीट कांग्रेस के खाते में गईं। 1989 में राजमाता ने फिर इस सीट से चुनाव लड़ा और भाजपा प्रत्याशी के रुप में कांग्रेस प्रत्याशी महेन्द्र सिंह को शिकस्त दी। राजमाता सिंधिया लगातार चार बार गुना से सांसद रही। राजमाता के निधन के बाद एक बार फिर गुना लोकसभा सीट से साल 1999 में माधवराव सिंधिया ने चुनाव लडक़र विजय हासिल की। साल 2001 में माधवराव सिंधिया की मौत के बाद 2002 में उनके बेटे ज्योतिरादित्य सिंधिया ने करीब 5 लाख मतों से चुनाव जीता। इसके बाद से पिछले 17 सालों से ज्योतिरादित्य यहां के सांसद है।

एक बार भी नहीं आईं प्रचार में

विधानसभा चुनाव में ऐसे कई किस्से है, जब चुनाव के दौरान कोई प्रत्याशी अपने विधानसभा क्षेत्र में प्रचार के लिए नहीं गया हो, फिर भी उसे जीत हासिल हुई हो, किन्तु लोकसभा में संभवत: गुना लोकसभा ही ऐसी होगी, जहां ऐसा इतिहास बना है। बात 1998 के चुनाव की है। इस समय भाजपा ने अपना प्रत्याशी राजमाता सिंधिया को बनाया था। चुनाव के समय राजमाता काफी अस्वस्थ थीं, इसके चलते वह प्रचार के लिए एक बार भी संसदीय क्षेत्र में नहीं आ पाईं। पूरा चुनाव उन्होने अस्पताल से ही लड़़ा। इसके बावजूद वह लाखों मतों से चुनाव जीतीं।

भाजपा लगातार बदल रही प्रत्याशी, नतीजे जस के तस

लोकसभा में भाजपा पिछले चार चुनावों से हर बार प्रत्याशी बदल रही है, किन्तु नतीजे जस के तस बने हुए है। अलबत्ता जीत-हार का आंकड़ा जरुर घटता-बढ़ता रहा है। उपचुनाव में वर्ष 2002 में भाजपा ने यहां से देशराज सिंह यादव को अपना उम्मीद्वार बनाया था। माधवराव सिंधिया की संवेदना लहर के चलते ज्योतिरादित्य करीब 5 लाख मतों से जीते थे, हालांकि दूसरे ही चुनाव में ज्योतिरादित्य की जीत का आंकड़ा 5 लाख से ऐतिहासिक रुप से गिरकर 80 हजार पर सिमट गया था। भाजपा से प्रत्याशी थे हरिवल्लभ शुक्ला। इसके बाद वर्ष 2009 के चुनाव में ज्योतिरादित्य ने भाजपा प्रत्याशी नरोत्तम मिश्रा को शिकस्त दी थी, जीत का आंकड़ा फिर लाखों में पहुंचा। वर्ष 2014 में भाजपा ने फिर अपना प्रत्याशी बदला और महल में सेंध लगाने कमान जयभान सिंह पवैया को सौंपी, जिन्होने 1999 में ज्योतिरादित्य सिंधिया के पिता माधवराव सिंधिया को ग्वालियर छोडऩे को मजबूर कर दिया था, किन्तु गुना में जयभान कोई कमाल नहीं दिखा पाए। ज्योतिरादित्य ने उन्हे 1 लाख 20 हजार मतों से शिकस्त दी। इस बार भाजपा प्रत्याशी को लेकर कई नाम चर्चाओं में है। इनमें प्रदेश स्तर के साथ ही क्षेत्रीय नेताओं के नाम भी शामिल है।

चंबल-मालवा का प्रवेशद्वार है गुना

गुना शहर मध्य प्रदेश के उत्तर में स्थित है। इसे चंबल-मालवा का प्रवेशद्वार माना जाता है। गुना शहर में मुख्यत: हिन्दू, मुस्लिम तथा जैन समुदाय के लोग रहते हैं. खेती यहां का मुख्य कार्य है। ग्वालियर संभाग में आने वाला यह क्षेत्र आजादी से पहले गुना ग्वालियर राजघराने का हिस्सा था। जिस पर सिंधिया वंश का अधिकार था। 2011 की जनगणना के मुताबिक गुना की जनसंख्या 2493675 है. यहां की 76.66 फीसदी आबादी ग्रामीण क्षेत्र और 23.34 फीसदी आबादी शहरी क्षेत्र में रहती है। गुना में 18.11 फीसदी लोग अनुसूचित जाती और 13.94 फीसदी लोग अनुसूचित जनजाति के हैं। चुनाव आयोग के आंकड़े के मुताबिक 2014 में गुना में कुल 1605619 मतदाता थे। जिसमें से 748291 महिला मतदाता और 857328 पुरुष मतदाता थे। 2014 के चुनाव में इस सीट पर 60.83 फीसदी मतदान हुआ था। गुना लोकसभा क्षेत्र की 76 फीसदी आबादी गांव में रहकर कृषि कार्य पर निर्भर है। वहीं 23 फीसदी आबादी शहरी क्षेत्र में रहती है। लोकसभा में गुना, बमौरी, अशोकनगर, चंदेरी, मुंगावली, शिवपुरी, पिछोर, कोलारस विधानसभा आतीं है। इनमें से सिर्फ एक गुना भाजपा कगे पास है।

समर्थक बुलाते है महाराज

क्षेत्र के वर्तमान सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया का क्षेत्रीय राजनीति में खासा प्रभाव है, इस युवा सांसद को उनके समर्थन महाराज के नाम से बुलाते है। ज्योतिरादित्य ने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से अर्थशास्त्र में ग्रेजुएशन और स्टैनफोर्ड ग्रेजुएट स्कूल ऑफ बिजनेस से एमबीए की डिग्री ली है। 48 साल के सांसद सिंधिया ने अपने पिता की मौत के बाद पहली बार 2002 में चुनाव जीता। वह मनमोहन सिंह की सरकार में सात साल तक सूचना एवं प्रौद्योगिकी वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के मंत्री रहे तो वर्ष 2012 से 2014 तक बिजली मंत्रालय का स्वतंत्र प्रभार वाले मंत्री रहे। संसद के रिपोर्ट कार्ड के मुताबिक 76 फीसदी उनकी लोकसभा में उपस्थिति रही है। साथ ही उन्होंने लोकसभा की 48 बहस में हिस्सा लेकर 825 सवाल भी पूछे है। हालिया विधानसभा चुनाव में उनकी सक्रिय भूमिका सामने आई थी। नतीजे कांग्रेस के पक्ष में आने के बाद वह मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार भी थे, किन्तु बाजी हाथ लगी कमलनाथ के।

लोकसभा की अब तक की स्थिति


यह है 2014 के नतीजे


वर्ष 2009 के नतीजे



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