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वजूद और विचारधारा के सवाल पर जूझती कांग्रेस

यूपी बिहार के बाद कांग्रेस का शरदराव के आगे सरेंडर

Update: 2019-11-30 06:21 GMT

(डॉ अजय खेमरिया)

महाराष्ट्र की सियासी महाभारत में कांग्रेस को क्या हांसिल हुआ है ?यह सवाल इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि शिवसेना को तो सीएम की कुर्सी चाहिये थी, जो उसे मिल गई। और पवार साहब 79 साल की उम्र में भी महाराष्ट्र की सियासत के असली खिलाड़ी साबित करने में कामयाब रहे। लगे हाथ अपनी बेटी को मराठा राजनीति में अग्रणी रूप से स्थापित भी कर गए।कांग्रेस को स्पीकर के पद के अलावा क्या मिला है?मोदी अमित शाह के अश्वमेघी रथ को रोकने के लिये क्या कांग्रेस ने फिर उसी तर्ज पर हथियार डाल दिये जैसा यूपी,बिहार में उसने लालू और अखिलेश के सामने समर्पण मुद्रा खुद ही अख्तियार कर ली थी।इस पूरे प्रहसन में आरंभिक तौर पर दो दल जमीनी तौर पर सबसे घाटे में रहने वाले है पहला शिवसेना और दूसरा कांग्रेस।शिवसेना भले संजय राउत के अथक प्रयासों से मुख्यमंत्री पद हांसिल करने में कामयाब रही लेकिन उसका वैचारिक धरातल और कैडर विशुद्ध रूप से दरक चुका है।राष्ट्रपति चुनाव में मराठी मानुस के नाम पर प्रतिभा पाटिल के समर्थन हो या प्रणब मुखर्जी को वोट करने का मामला, जमीनी राजनीति से इसका कोई सीधा रिश्ता नही है क्योंकि राष्ट्रपति का चुनाव वोटरों और कार्यकर्ता के स्तर पर नही होता है। जाहिर जो लोग पुराने उदाहरण देकर इस युति के लिये तार्किकता खड़ी कर रहे है वह जमीन की राजनीतिक हकीकत से वाकिफ नही है।उन्हें उत्तर प्रदेश के महागठबंधन प्रयोग का अध्ययन करना चाहिये जो कागजों के अलावा बीजेपी के नेतृत्व को भी नतीजों से पहले वाटरलू का मैदान ही प्रतीत हो रहा था।उपचुनावों के नतीजों ने इस महागठबंधन की सार्थकता को कैमेस्ट्री की जगह अर्थमेटिक ज्यादा साबित किया था लेकिन जब मुख्य चुनावी बिसात बिछी तो गठबंधन हवा हो गया।बिहार में तो कमोबेश विपक्ष का सफाया ही हो गया था।जाहिर है मराठा राजनीति के इस गढ़ को भी हमें गहराई से विश्लेषण करने की आवश्यकता है।इस राज्य में पहली बार गैर मराठा गैर दलित मुख्यमंत्री मोदी ने बनाया था जिसने अपनी बेहतरीन स्ट्राइक रेट के साथ बीजेपी को 105 सीटें जिताई है ।हमे याद रखना होगा कि बीजेपी के 25.8फ़ीसदी के बाद सर्वाधिक मत इस राज्य में निर्दलीयों (18.6%) को मिलें है और उद्धव ठाकरे दूसरी नही तीसरी(16.7%) बड़ी ताकत है एनसीपी (16.4%)और कांग्रेस (15.6%)उनके पीछे है।यानी बीजेपी गैर मराठा गैर दलित कार्ड के साथ हिंदुत्व की जमीन पर अभी भी महाराष्ट्र की सबसे बड़ी ताकत है।उसे शिवसेना के परंपरागत हिंदू मानसिकता वाला समर्थन भी 105 सीटों पर तो मिला ही है और जिन 56 सीटों पर शिवसेना जीती है वहाँ उसे मोदी का कोर वोटर मिला होगा।इस युति ने मोदी और बाल ठाकरे के फोटो लगाकर वोट मांगे।सवाल यह है कि अब महाराष्ट्र में बाला ठाकरे ब्रांड हिंदुत्व का क्या होगा?जिसने पाकिस्तान,अयोध्या, तुष्टीकरण, सावरकर, गोडसे,कॉमन सिविल कोड जैसे मुद्दों पर बीजेपी से ज्यादा आक्रमक रुख अपना रखा है।बाल ठाकरे ने दशहरे की अंतिम रैली में शिवसैनिकों से आग्रह किया था कि वे भारत को 'पंचक'से मुक्त कराकर ही दम लें।पंचक भारतीय ज्योतिष गणना में सबसे अशुभ माने जाते है इस अवधि में हिन्दू कोई शुभ या नया काम नही करते है।बाल ठाकरे ने सोनिया गांधी, राहुल गांधी,प्रियंका गांधी,रॉबर्ट वाड्रा और अहमद पटेल को पंचक कहा था।आज इसी पंचक के आशीर्वाद से उद्धव बाल ठाकरे की समाधि के सामने खड़े होकर मुख्यमंत्री पद की शपथ ले रहे है।बाल ठाकरे के इसी कट्टर कांग्रेस विरोधी धरातल पर हजारों शिवसैनिकों की फ़ौज खड़ी हुई है करीब 35 साल के इस वैचारिक और बूथ लेबल सियासी सँघर्ष का कांग्रेस से समेकन होना भविष्य में असंभव इसलिये लगता है क्योंकि यूपी बिहार में महागठबंधन के बड़े नेताओं के पास खुद का जातिगत जनाधार मौजूद था लेकिन महाराष्ट्र में उद्धव की जमीन तो विशुद्ध हिंदुत्व की है उनका खुद का कोई जातिगत आधार नही है।ऐसी परिस्थितियों में त्रिदेव की इस युति में शिवसेना को वैसा ही नुकसान उठाना पड़ सकता है जैसा यूपी में अखिलेश यादव को।इस प्रदेश में मराठा राजनीति के शिखर पुरुष अभी भी शरद राव ही है यह साबित वह खुद कर चुके है और कांग्रेस के दूसरे नेता पृथ्वीराज चव्हाण,अशोक चव्हाण,शरद राव के आगे आज भी बेहद फीके ही है।जाहिर है सत्ता में भागीदारी हांसिल कर एनसीपी अपने मराठा कोर जनाधार को बरकरार रखने में सफल होगी वैसे भी अपने सबसे बेहतरीन प्रदर्शन में भी एनसीपी 65 सीट से ऊपर इस राज्य में नही जा सकती है।इस सीमित फलक के बाबजूद वह बीजेपी के दिल्ली दरबार को चुनौती देने में सफल रहे।वहीं कांग्रेस इस मामले में कहीं भी किसी भी भूमिका में नही दिखी। शरदराव इस घटनाक्रम के जरिये अपनी पारिवारिक विरासत को भी करीने से बेटी सुप्रिया सुले को हस्तांतरित करने में सफ़ल रहे है।यही नही वे पूरी कांग्रेस पर भारी साबित हुए है क्योंकि इस सरकार के मौजूदा गठन में उन्हें ही चाणक्य कहा जा रहा है।मोदी अमित शाह के तिलिस्म को तोड़ने या उसे फैल करने का श्रेय भी कोई 10 जनपथ या राहुल को नही दे रहा है।समझा जा सकता है कि राष्ट्रीय परिदृश्य में भी मोदी से मुकाबिल होने की काबिलियत कांग्रेस नही शरद पवार ने स्वयंसिद्ध की है।जिस समय ईडी, सीबीआई के डर से कांग्रेस या दूसरे दलों के नेता डरे सहमे है तब शरद राव खुद मुम्बई के ईडी दफ्तर अपनी गिरफ्तारी के लिये पहुंचे इससे उनकी ब्रांड मराठा छवि तो मजबूत हुई ही साथ ही वे दिल्ली को चुनौती देते भी नजर आए।असल में यह चुनौती 79 साल के शरद पवार की जगह अविवाहित राहुल गांधी या काँग्रेस के नेताओं की तरफ से आनी चाहिये थी क्योंकि शरद राव अधिकतम 60 असेम्बली सीट के नेता है।यह भी सचाई है।सही मायनों में मुंबई के महाभारत ने कांग्रेस के लिये बगैर लड़े ही सरेंडर योद्धा सी स्थिति निर्मित कर दी।पूरे चुनाव में पार्टी नेतृत्व कहीं नजर नही आया,किसी उम्मीदवार को चुनाव खर्च तक पार्टी उपलब्ध नही करा पाई और जो 44 लोग अपनी दम और कांग्रेस की पहचान से जीत कर आ गए तब उनके उपर केसी वेणुगोपाल, खड़गे,औऱ अहमद पटेल को बेताल की तरह लाद दिया गया।इनमें से किसी को महाराष्ट्र की समझ नही है।अनिर्णय का शिकार कोई कैसे होता है यह इस प्रकरण में कांग्रेस आलाकमान को देखकर समझा जा सकता है।यह भी स्पष्ट है कि सोनिया गांधी इस युति के पक्ष में नही थी उन्होंने शरद पवार से कहा था कि वे शिवसेना से हाथ मिलाकर उपर महात्मा गांधी को क्या मुँह दिखायेगी? इस मनस्थिति के बाबजूद आज महाराष्ट्र में कांग्रेस ठाकरे परिवार के साथ खड़ी होकर राज्याभिषेक करा रही है।सवाल महात्मा गांधी का नही फिलहाल के दो गुजराती धावकों को पीछे करने का है।कांग्रेस 2014,2019 के दौरान कहीं टक्कर देती नही दिख रही है।इस त्रियुति ने इस बड़े राज्य में संभव है पांचवी पोजीशन खुद स्वीकार कर ली है 10 जनपथ ने।क्योंकि सँघर्ष की जगह समर्पण दिल्ली के नेताओं को ज्यादा रास आता है इसीलिये पंचक और मातोश्री की नया सियासी समेकन खड़ा किया है अहमद पटेल ने।फिलहाल सरकार के सुशासन से पहले महाराष्ट्र में बीजेपी नैतिक रूप से शिकस्त और कलंकित होने के बाबजूद बड़ी ताकत के रूप में रहेगी।एनसीपी बीजेपी को मैदानी टक्कर देगी।सवाल शिवसेना और कांग्रेस के भविष्य का है?

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