जम्मू-कश्मीर में पीडीपी, नेकां और कांग्रेस मिलकर लड़ें तो जीत सकते हैं 70 सीटें
जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव कराना केन्द्र पर निर्भर, संसद के शीतकालीन सत्र में विपक्ष बनायेगा दबाव
नई दिल्ली। जम्मू कश्मीर की पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती पाकिस्तान के कहने पर कब किस पार्टी से गठबंधन करती हैं, यह तो आरोप लगाने वाले केन्द्र के खुफिया तंत्र व अन्य साधन से सम्पन्न नेता ही जानें लेकिन यह सब जानते हैं कि राज्य में यदि पीडीपी , कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस मिलकर विधान सभा चुनाव लड़ें तो सरकार इनकी ही (गठबंधन) बनेगी।
इस बारे में जम्मू - कश्मीर में पले – बढ़े , पढ़े और छात्र राजनीति कर चुके सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ वकील बी.एस बिलौरिया का कहना है कि भाजपा का घाटी में कोई आधार नहीं है। जो है वह जम्मू क्षेत्र में है। उसकी बदौलत वह राज्य में सरकार नहीं बना सकती। इसलिए जब विधानसभा चुनाव होगा, उस समय यदि पीडीपी, कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस महागठबंधन करके चुनाव लड़ें तो इसे राज्य विधानसभा की 87 सीटों में से लगभग 70 सीटें मिल सकती हैं। भाजपा जो 2014 में हुए विधानसभा चुनाव में 25 सीटें जीती थीं, घटकर 12 के लगभग आ सकती हैं। यदि भाजपा ने पीपुल्स कांफ्रेंस के सज्जाद लोन और पीडीपी से मुजफ्फर हुसैन बेग को अलग कराकर, उनको मदद करके चुनाव लड़ाई तो भी पीडीपी, नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस के महागठबंधन को नुकसान नहीं पहुंचा पायेगी।
बीएस बिलौरिया का कहना है कि जहां तक राज्य में चुनाव कराने का सवाल है तो यह केन्द्र सरकार पर निर्भर है कि वह चुनाव कब कराती है। वैसे तो राज्य में राज्यपाल शासन 19 दिसम्बर, 2018 को खत्म होने वाला है। उसके बाद 6 माह के लिए राष्ट्रपति शासन लग जायेगा। इस दौरान जब चुनाव आयोग लिखेगा कि राज्य में हालात चुनाव कराने के लायक है तो केन्द्र सरकार चुनाव करा सकती है। नहीं तो और 6 माह के लिए राष्ट्रपति शासन बढ़ा दिया जायेगा लेकिन राष्ट्रपति शासन बढ़ाने के लिए संसद के दोनों सदनों की मंजूरी लेनी होगी। अभी जो स्थिति बनी है उसमें राज्य के तीनों प्रमुख राजनीतिक दल सहित अन्य विपक्षी दल चुनाव कराने की मांग को लेकर संसद ठप कर सकते हैं।
पूर्व सांसद हरिकेश बहादुर का कहना है कि विपक्षी दलों ने भाजपानीत केन्द्र सरकार पर दबाव बनाने के लिए यह मुद्दा 11 दिसम्बर से 8 जनवरी तक चलने वाले संसद के शीतकालीन सत्र में उठाने के लिए बातचीत शुरू कर दी है। इसलिए 2019 के लोकसभा चुनाव के साथ ही जम्मू – कश्मीर विधान सभा चुनाव कराने की भी संभावना है। वैसे यदि 2019 में लोकसभा चुनाव नहीं होता और केन्द्र सरकार ठान लेती तो राज्य में कई वर्ष तक चुनाव टाल सकती थी।
बी.एस. बिलौरिया इसके लिए राज्य में 1989 में विधानसभा भंग होने और 7 वर्ष बाद 1996 में चुनाव होने की मिसाल देते हैं। तब नेशनल कांफ्रेंस के फारूख अब्दुल्ला ने चुनाव का बहिष्कार किया था। उनकी पार्टी लोकसभा चुनाव नहीं लड़ी थी लेकिन 1996 में राज्य विधानसभा चुनाव में शामिल हुई थी।