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बिहार, छत्तीसगढ़ व आंध्र के माओवादियों को दी गयी झारखंड में संगठन मजबूती की जिम्मेदारी

Update: 2018-12-08 12:01 GMT

रांची/विकास पाण्डेय। झारखंड में प्रतिबंधित नक्सली संगठन भाकपा माओवादी ने अब राज्य में संगठन को मजबूत करने के लिए बिहार, छत्तीसगढ़ और आंध्र प्रदेश के नक्सलियों को जिम्मेदारी सौंपी है। भाकपा माओवादी की केंद्रीय कमिटी ने यह नई जिम्मेदारी दूसरे राज्यों के नक्सलियों को सौंपी है। पुलिस मुख्यालय को इसकी भनक मिल गयी है और पुलिस निगरानी के साथ रणनीतियां भी बनाई जा रही हैं |

सूत्रों के अनुसार भनक मिलते ही पुलिस मुख्यालय ने सभी नक्सल इलाकों के एसपी को विशेष सतर्कता बरतने और नक्सलियों के खिलाफ लगातार अभियान चलाने का निर्देश दिया है । झारखंड की कमान संभाले एक करोड़ के इनामी नक्सली सुधाकरण संगठन को मजबूत करने की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं । इसके अलावा सर्वजीत यादव और विश्वनाथ भी झारखंड में अपनी मजबूती करने में लगे हैं । बम बनाने में माहिर विश्वनाथ को झारखंड के मुख्य तकनीकी कमांडर के रूप में जिम्मेदारी सौंपी गई है। वह नए कैडरों को भी बम बनाने की ट्रेनिंग देगा।

झारखंड में संगठन को मजबूत बनाने के लिए बाहर से आने वाले नक्सलियों की संख्या 35 बताई गई है, जो अत्याधुनिक हथियारों से लैस हैं । इनमें विनय भुइयां, अमन गंझु, संतोष भुइयां, शीतल मोची, दशरथ, मनीष यादव, मनीष गंझु, नेशनल भोक्ता, नागेंद्र, रविंद्र गंझु, अनल दा, अश्विन , रोशनी नागेशिया, रजनी, रोहित चौहान, संदीप, जयमत और आकाश नागेशिया शामिल हैं ।

झारखंड पुलिस के प्रवक्ता व आईजी अभियान आशीष बत्रा ने शानिवार को बताया कि झारखंड में नक्सली लगातार कमजोर हो रहे हैं ।इस वर्ष मुठभेड़ में लगभग 25 नक्सली मारे गए हैं। बीमारी की वजह से भी कई नक्सली की मौत हो चुकी है। पैसों की लालच में बाहर के नक्सली झारखंड पहुंच रहे हैं। झारखंड पुलिस की पैनी नजर सभी नक्सलियों पर है। लगातार नक्सल इलाकों में नक्सलियों के खिलाफ सर्च अभियान चलाए जा रहे हैं। बाहर से आने वाले नक्सलियों के लिए पुलिस विशेष अभियान भी चलाएगी। बत्रा ने कहा कि बाहरी राज्यों के नक्सली झारखंड में सिर्फ पैसे की उगाही करने के लिए आते हैं। झारखंड के विकास कार्यों में पहले से काफी तेजी आई है | यहां पर बड़े पैमाने पर कोयला की खान है और दूसरी माइन्स भी है । कोयला की खान और माइन्स से नक्सली अपने बल पर लेवी वसूलते रहते हैं । खुद करोड़पति होकर फिर अपने राज्य की तरफ वापस लौट जाते हैं। सरेंडर के दौरान कई नक्सलियों ने इन बातों को स्वीकार किया है। बड़े पदों पर बैठे नक्सली अपने बच्चों को बाहर पढ़ाते हैं मगर छोटे कैडरों के साथ शोषण किया जाता है।

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