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जैविक खेती की ओर लौट रहे किसान

जैविक खेती की ओर लौट रहे किसान

Update: 2018-06-14 09:44 GMT

मेरे द्वारा हाल ही में द अदर इंडिया बुकशॉप से ली गई एक पुस्तक डॉ. के.नटराजन द्वारा पंचगव्य पर लिखा गया एक मैनुअल है। डा. नटराजन ने दशकों तक पंचगव्य के प्रभावों का अध्ययन किया है और समूचे भारत में पौधों, पशुओं तथा मनुष्यों के उपचार के लिए इसका इस्तेमाल किया है। उनका कहना है कि अधिकतम दक्षता के लिए बुनियादी तैयारी ठीक से की जानी चाहिए। उन्हें पहले ही उनके जैव कीटनाशक (तैयार करने में आसान और दुष्प्रभाव रहित) के लिए प्रतिष्ठित सृष्टि पुरस्कार प्रदान किया गया है और उन्होंने मवेशियों के लिए उत्कृष्ट प्रतिरक्षा बूस्टर बनाया है। मधुमेह और गठिया के लिए उन्होंने दो हर्बल दवाएं विकसित की हैं।

1998 में वैज्ञानिकों द्वारा पहली बार खोजे जाने के पश्चात से पंचगव्य ने एक काफी लंबा सफर तय किया है। अब छात्रों के पास इसमें पीएचडी तथा एम.फिल. तक है। हजारों किसान रोज इसका इस्तेमाल करते  है । यह मैनुअल बेहद दिलचस्प है। यह न केवल पंचगव्य के बारे में और इसे कैसे बनाया जाता है, का विवरण देता है, बल्कि यह पूरे भारत में विभिन्न स्थानों पर इसके उपयोग और मिट्टी तथा शरीर पर तुरंत होने वाले इसके प्रभाव के अनुभव के बारे में भी बताता है।

भारत कृषि में एक अत्यधिक संकट काल से गुजरा है। सदियों से, हमने आर्गेनिक, अच्छे, मौसमी भोजन और फल खाए हैं। फिर, 1960 में सरकार को रातों-रात सब कुछ दोगुना करने का ख्याल आया। हरित क्रांति में कीटनाशकों और रसायनों की शुरूआत की गई और उन्हें सभी प्रचार मीडिया तथा वैज्ञानिक संस्थानों के माध्यम से बढ़ावा दिया गया। दस वर्षों में हमारे द्वारा खाए जाने वाले अधिकांश भोजन गायब हो गए और इनका स्थान मानकीकृत, निम्न स्तर वाले, अस्वास्थ्यकर अनाज ने ले लिया। जैसे-जैसे समय बीता, जमीनें रसायनों और यूरिया से भर गई और इतनी शुष्क हो गई कि हमने पानी और फिर सिंचाई के लिए बिजली का अधिक उपयोग करना शुरू कर दिया। वर्ष 2000 में भारत को एहसास हुआ कि जहां हम भूमि में डालने के लिए लाखों टन जहर आयात कर रहे थे, कैंसर को छोड़कर कुछ भी नहीं बढ़ा था। हरित क्रांति पूरी तरह से विफल रही थी और किसान निराशा में थे।

धीरे-धीरे, किसान उसी पर वापस लौटने लगे जिसे वे सबसे अच्छा जानते थे - जैविक खेती। रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों और फंगीसाइड को आर्गेनिक खाद से बदलने के लिए छोटे-छोटे कदम उठाए गए। लेकिन हार्मोन और प्रतिरक्षा बूस्टर को बढ़ावा देने और निरंतर उच्च उत्पादकता लाने के लिए कुछ भी उपलब्ध नहीं था। अत: किसानों और कुछ वैज्ञानिकों ने वृक्षायुर्वेद में वर्णित दवाओं के साथ प्रयोग करना शुरू किया और यह पंचगव्य में परिणत हुआ।
किसानों के लिए पंचगव्य में गाय से मिलने वाले पांच उत्पाद होते हैं - गोबर, मूत्र, दूध, दही और घी, जो उचित रूप से मिश्रित होने पर लगभग चमत्कारिक परिणाम देते हैं। डा. नटराजन ने कुछ और सामग्री जोड़ी हैं।

तो पंचगव्य का नुस्खा यह है :

ताजा गोबर - 5 किलो, गाय का मूत्र 3 लीटर, गाय का दूध 2 लीटर, गाय का घी 1/2 किलो, गाय की दही 2 लीटर, गन्ने का रस 3 लीटर, नर्म नारियल का पानी 3 लीटर, 12 पके हुए केले और ताड़ी या अंगूर का रस 2 लीटर। इससे आप 20 लीटर पंचगव्य बना सकते हैं।
एक बड़े मुंह वाले मिट्टी के बर्तन, कंक्रीट टैंक या प्लास्टिक कैन को लें। कोई धातु का कंटेनर नहीं। पहले ताजा गोबर और घी डालिये और 3 दिन तक रोजाना इसे मिलाएं। चौथे दिन शेष सामग्री मिलाएं और 15 दिनों तक रोजाना इसे चलाएं। 18वें दिन के पश्चात इसे छाया में रखें और मक्खियों को रोकने के लिए एक जाल से ढके। यदि आपके पास गन्ने का रस नहीं है तो 3 लीटर पानी में 500 ग्राम गुड़ डाल दें। यदि आपके पास ताड़ी नहीं है, तो 10 दिनों के लिए एक बंद प्लास्टिक कंटेनर में 2 लीटर कच्चे नारियल का पानी डालें। यह फर्मेंट होकर ताड़ी बन जाएगा।
यह पंचगव्य छह महीने तक रखा जा सकता है और जब यह मोटा हो जाता है, तो उसे तरल रूप में रखने के लिए पानी मिलाया जा सकता है। इसमें पौधे के विकास के लिए सभी आवश्यक पोषक तत्व शामिल हैं और इनकी पुष्टि पूरे देश में प्रयोगशालाओं और किसानों द्वारा की गई है।

प्रत्येक 100 लीटर पानी में तीन लीटर मिलाएं, उसे छानें और उसका सभी फसलों पर छिड़काव करें। इसका उपयोग ड्रिप या फ्लो सिंचाई के माध्यम से भी किया जा सकता है। इसका उपयोग रोपण से पहले 20-30 मिनट के लिए बीजों को भिगाने के लिए किया जाना चाहिए। फिर इसे रोपण के 20 दिन बाद और फूल आने से पहले के चरण में हर 15 दिनों के बाद, फूल आने के बाद 10 दिनों में एक बार और फली के परिपक्व होने तक छिड़का जाना चाहिए।

कुछ फलों पर इसका प्रभाव नीचे दिया गया है (अन्यों के विवरण पुस्तक में दिए गए हैं)  :-

आम : घने फूल, एक वर्ष पश्चात के बजाय हर साल फल, स्वाद और सुगंध बढ़ना।
नींबू : साल भर फूलना, तीखी सुगंध के साथ गूदे वाला फल। शेल्फकाल 10 दिनों तक बढ़ाना।
अमरूद : आकार में बड़ा, स्वादिष्ट। शेल्फकाल 5 दिनों तक बढ़ाना।
केले : गुच्छे का आकार एक समान हो जाता है और कटाई एक माह पहले की जा सकती है।
हल्दी : उत्पादन अतिरिक्त लंबे उत्पाद के साथ 22 प्रतिशत तक बढ़ गया। कीट और रोगों में कमी हुई।
चमेली : पूरे साल भर फूलना। असाधारण सुगंध।                                                                                                                                                                              सब्जियां : उत्पादन में 18 प्रतिशत तथा खीरे के उत्पादन में दुगनी वृद्धि। विस्तारित शेल्फकाल और अच्छा स्वाद।
धान : प्रति गुच्छा 300 दाने। फसल का 15 दिन पहले पकना। कुटाई के दौरान टूटे चावलों के प्रतिशत में कमी। अनाज के वजन में 20 प्रतिशत की वृद्धि।
गन्ना, सरसो, मूंगफली, ज्वार, बाजरा, रागी, मक्का, गेहूं, सूरजमुखी और नारियल पर पंचगव्य की जांच की गई है। इन सभी में पंचगव्य ने वृद्धि को बढ़ाने वाले और कीट अवरोधक के रूप में कार्य किया।
पंचगव्य छिड़के गए पौधे के पत्ते बड़े,  तने से निकलने वाले साइड शूट मजबूत और जड़ें सघन, घनी होती हैं जिससे पौधे गहराई में जाकर अधिकतम पोषक तत्व और पानी लेते हैं। पत्तियों और तनों पर एक पतली तैलीय परत बन जाती है जो पानी के वाष्पीकरण को कम करती है और पौधे लंबी शुष्क अवधि में भी बने रहते हैं। सिंचाई आवश्यकता 30 प्रतिशत तक कम हो सकती है।
आमतौर पर पैदावार तब कम होती है जब किसान रासायनिक से जैविक खेती को अपनाता है और यही कारण है कि किसानों को इस परिवर्तन से डर लगता है। अगर वह पंचगव्य का उपयोग करता है, तो उपज उतनी ही रहती है, पहले वर्ष से ही। कटाई सभी फसलों में 15 दिन पहले हो गई थी।
पंचगव्य शेल्फकाल बढ़ाता है इसलिए बिक्री और भंडारण आसान हो जाता है।
मैं सुझाव दूंगी कि आप इसे काट कर रख लें और इस जानकारी को अपनी पहचान वाले किसानों के साथ साझा करें। उन्हें अपने खेतों के एक छोटे से हिस्से पर इसे आजमाने और इसकी सफलता को देखने के लिए कहें। यदि ऐसा होता है, तो यह निश्चित रूप से उन्हें अमीर और उनकी उपज के उपभोक्ताओं को स्वस्थकर बना देगा। इसे अपने बगीचे और अपने घर के बाहर के पेड़ों पर आजमाएं।
                                                                                                                                                                                        (लेखिका केन्द्रीय मंत्री व पर्यावरण विद् हैं)

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