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रेत-पानी से विहीन सिंध हुई अब वीरान

रेत-पानी से विहीन सिंध हुई अब वीरान
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डकैतों से मुक्त चंबल-सिंध के बीहड़ों में रेत माफियाओं का खौफ


भिण्ड, अनिल शर्मा। कभी चंबल सिंध नदी के बीहड़ में डकैतों का खौफ हुआ करता था, लेकिन अब नहीं। पर उससे भी ज्यादा खौफनाक लोगों के साए में सिंध नदी के जलीय जीव ही नहीं बल्कि आस-पास के ग्रामीण किसान भी जी रहे हैं। जो आए दिन लुटते-पिटते रहते हैं। यही नहीं खुले आसमान के नीचे मौजूद उनकी लाखों की संपत्ति उनकी आंखों के सामने लुट रही है। लेकिन वे असहाय हैं पर मूक नहीं। वे खूब शिकायत-शिकवा भी करते हैं, लेकिन उनकी न तो कहीं फरियाद सुनी जाती है और न ऐसे खौफनाक अपराधियों के विरुद्ध कोई कार्रवाई हो रही है। यह स्थिति कहीं और की नहीं बल्कि सिंध नदी किनारे बसे उन गांव की है जहां वैध-अवैध रेत का जमकर कारोबार चल रहा है। यहां रेत खदानों पर ही नहीं बल्कि पूरे इलाके में इन सफेदपोश उन दरिंदों का कब्जा है, जिन्हें रेत में दबाकर डंपर से कुचलकर किसी जीव की हत्या करने मेंं तनिक भी ईश्वर का भय नहीं सताता। पिछले दिनों लगातार रेत माफियाओं के इशारे पर दुर्घटनाओं में कई लोगों की मौत हुई, तो कई किसान जिनके पास बीघा-दो बीघा जमीन थी उन पर रेत माफियाओं ने कब्जा कर उन्हेंं भूखों मरने की नौबत पर लाकर खड़ा कर दिया है। हालांकि राजनेताओं का भी रेत कारोबारियों को पूरा संरक्षण रहता है, लेकिन फिर भी प्रशासन पर अपना दबाव बनाने के लिए समय-समय पर आंदोलन और मीडिया के माध्यम से मामला उछालकर अपने लोगोंं के हित पूरे करने में वे भी पीछे नहीं हैं। पिछले दिनों जब रेत कारोबारियों के विरोध मेंं राजनैतिक बिगुल बजा, तो जिला प्रशासन ने भी अपनी साख बनाए रखने के लिए कुछ खदानों पर पुलिस अधीक्षक की रिपोर्ट पर प्रतिबंध लगा दिया, जो आज भी कागजों में है। इन खदानों पर दनादन रेत का अवैध उत्खनन हो रहा है। सिंध नदी को जिसने भी देखा होगा, उसका पानी पेटा इतना बड़ा हुआ करता था कि जलीय जीव के साथ-साथ आस-पास की प्रकृति का मनोहारी दृश्य देखने लायक होता था।

आज इस नदी की व्यथा को देखकर प्रकृति प्रेमी हर उस इंसान को रोना आ जाए जो उसे देखे, पूरी नदी वीरान हो चुकी है, जगह-जगह बड़े-बड़े गड्ढे हो गए, पानी का वजूद ही नहीं बचा है, नदी अब एक छोटे नाले का रूप ले चुकी है। नदी किनारे तीर पर जिन किसानों की खेती थी, उस खेती को भी प्रकृति के दुश्मन इन दरिंदों ने नहीं छोड़ा, निजी किसानों की सर्वे की भूमि पर खड़ी फसल को नष्ट कर खेतों के ऊपर की मिट्टी हटाकर नीचे से रेत निकाला जा रहा है। भारतीय संस्कृति मेंं नदियों को पूज्यनीय माना गया है, हर नदी घाट पर देवी-देवताओं का वास होता है, यहांं प्राचीन मन्दिर भी बने मिल जाएंगे, लेकिन अकूत संपत्ति कमाकर रातोंरात करोड़पति बनने वालों के लिए प्रकृति व संस्कृति कोई मायने नहीं रखती। इस कारोबार में केवल रेत माफिया ही लिप्त नहीं हैं, बल्कि राजस्व विभाग का खदान हलके का पटवारी से लेकर जिलाधीश, पुलिस थाने का आरक्षक से लेकर पुलिस अधीक्षक अपने पदानुसार संलिप्त रहता है। यही नहीं जो सामाजिक तथा राजनैतिक कार्यकर्ता हैं, यदि उन्होंने आवाज उठाई तो पहले तो उन्हें खौफ दिखाया जाता है फिर भी न माने तो लालच देकर मनाया जाता है, नहीं माने तो किसी दिन डंपर के नीचे या डम्प रेत में दब जाओ तो कोई बड़ी बात नहीं, ऐसी स्थिति में गरीब कमजोर व्यक्ति इन लोगोंं से टकराने की हिम्मत भी नहीं कर पाता। फिर भी कई किसानों ने अपनी निजी भूमि को रेत माफियाओं से बचाने के लिए पुलिस थाने व राजस्व विभाग के छोटे से लेकर बड़े अधिकारियोंं तक शिकायतें भी कीं, लेकिन कागजों में तो कार्रवाई के निर्देश हुए, धरातल पर इनके विरुद्ध कार्रवाई नहीं होने से इन रेत माफियाओं के हौंसले बुलंद हो गए हैं।

क्यों हो रहा है अवैध रेत उत्खनन

भिण्ड जिले की सिंध नदी के रेत की मांग बाहर ज्यादा है, उसकी गुणवत्ता बहुत अच्छी है, जिसके चलते रेत की मांग पड़ोसी प्रांत उप्र में खूब महंगा रेत बिकता है। भिण्ड जिले से रेत का जो ट्रक निकलता है, उसकी कीमत उप्र में जाकर कई गुना बढ़ जाती है, अर्थात् एक ट्रक में ही लागत का कई गुना मुनाफा है, जो ट्रक भिण्ड से 15 से 18 हजार में भरकर निकलता है, उसकी कीमत उप्र के जिलों मेंं 80 से 90 हजार तक पहुंच जाती है। खूब डटकर खर्च हो तो भी एक ट्रक 50 हजार तो छोड़ ही जाता है, मुनाफा अच्छा होने के कारण रेत माफिया चंद दिनों में ही करोड़पति बन जाते हैं। किसी अच्छे व्यापारी के पास महंगी लग्जरी गाड़ी नहीं होगी, जो इन माफियाओं के पास मिल जाएगी। पैसा इतना बांटते हैं कि पुलिस तो उनके यहां हाजिरी भरती है। यही कारण है कि रेत के अवैध उत्खनन पर अंकुश नहीं लग पा रहा है।

कैसे लगे इस अवैध कारोबार पर रोक

यदि प्रदेश सरकार रेत के अवैध कारोबार को रोकना चाहती है तो उसे प्रदेश से बाहर रेत के परिवहन पर रोक लगानी चाहिए, अन्य जिलों में क्या स्थिति है यह तो नहीं जानता, लेकिन भिण्ड जिले के पास अपार रेत खनिज संपदा थी, अब जिला वीरान हो गया है, यदि शीघ्र ही रेत के बाहर जाने पर प्रतिबंध नहीं लगाया गया तो भिण्ड की जनता कभी माफ नहीं करेगी। यहां की भावी पीढ़ी को शायद अपने मकान बनाने के लिए रेत, सीमेंट से भी ज्यादा महंगा खरीदना पड़े। वहीं यदि उप्र रेत जाने के लिए प्रतिबंध लगता है तो मुनाफा कम होने से रेत माफियाओं की दबंगई कम हो जाएगी। भिण्ड जिलाधीश को चाहिए जिस तरह पशुचारे की कमी होने पर उसके बाहर जाने पर प्रतिबंध लगाया जाता है, ऐसा ही कुछ नियम बनाने का प्रस्ताव सरकार को भेजा जाए। हालांकि रेत के कारोबार की बदनामी से जिलाधीश भी ऊब चुके हैं, फिर भी यदि जाते-जाते ऐसा कुछ करके जाते हैं तो शायद भिण्ड के लिए यादगार अधिकारी बन जाएं। यदि रेत के भिण्ड से बाहर जाने पर प्रतिबंध लगाया जाता है तो एक तो रेत का उत्खनन भी उपयोगिता के लिए होगा और दूसरे जो ज्यादा मुनाफे के कारण रेत खदानों का अपराधीकरण हुआ, वह भी कम होगा।

पंचायतों को रेत खदान सौंपना और भी होगा खौफनाक

प्रदेश सरकार पंचायतों को रेत खदानों को सौंपकर बेशक इस कार्य को जन हित में अच्छा मान रही है, हकीकत यह है कि यह आज की स्थिति से भी ज्यादा खौफनाक हो सकता है। आज भी ठेके बेशक शिवा कॉर्पोरेशन या वेदांश के नाम से हो, लेकिन उनके चलाने वाले लोग स्थानीय अपराधी किस्म के हैं। जिनको पूरा राजनैतिक संरक्षण भी प्राप्त है।

रेत खदान पंचायत को मिलने के बाद वे आय का बहुत बड़ा जरिया बन जाएंगी। जो पंचायत के आगामी चुनाव में खूनी मंजर पैदा करेंगे। पंचायत चुनाव की दुश्मनी कभी मिटती नहीं है। निश्चित रूप से यह भिण्ड को फिर उसी डकैत परंपरा की ओर धकेल सकती है।

Updated : 10 March 2018 12:00 AM GMT
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