Home > Archived > मुंगावली विधानसभा उपचुनाव: निर्णायक घड़ी, माहौल भाजपा के पक्ष में

मुंगावली विधानसभा उपचुनाव: निर्णायक घड़ी, माहौल भाजपा के पक्ष में

मुंगावली विधानसभा उपचुनाव: निर्णायक घड़ी, माहौल भाजपा के पक्ष में
X

  • अभिषेक शर्मा

मुंगावली विधानसभा उपचुनाव की उलटी गिनती शुरू हो चुकी है। आज 20 तारीख है तो कल 21 फरवरी है। इस लिहाज से कल भोर की बेला में जब आप यह आलेख पढ़ रहे होंगे, तब से करीब 30-32 घंटे बाद मुंगावली विधानसभा क्षेत्र में शोरगुल वाला चुनाव प्रचार थम जाएगा। इससे पहले आपने, हमने और सबने देखा कि किस तरह महज एक विधानसभा उपचुनाव में दोनों प्रमुख राजनीतिक दल भाजपा और कांग्रेस ने अपनी पूरी ताकत झोंकी, किस तरह एक उपचुनाव को विधानसभा चुनाव का सेमीफायनल का रूप देने की कोशिश की गई और किस तरह एक स्वस्थ लोकतांत्रिक प्रक्रिया को व्यक्तिवादी (शिवराज बनाम सिंधिया) में तब्दील करने के पूरे पूरे प्रयास किए गए और किस तरह मुंगावली में चुनाव जीतने के लिए साम, दाम, दंड भेद की राजनीति अमल में लाई गई। बहरहाल चुनाव के लिए मतदान 24 फरवरी को होना है और इस लिहाज से घड़ी निर्णायक हो चुकी है, हालांकि प्रचार के लिए अभी एक, दो दिन और शेष है, किन्तु अब सब लगभग तय हो चुकना माना जा रहा है। जिसको जो करना था, किया जा चुका है और जितनी ताकत जहां लगाई जाना थी, वो भी लग चुकी है। जहां और कसर होगी अगले चार पांच दिनों में पूरा करने की कोशिश दोनों तरफ से होगी। निर्णायक घड़ी में मतदाता करीब-करीब अपना मानस बना चुका है। इसमें राजनीति की बारीकी से समझ रखने वालों के मुताबिक कांग्रेसी खेमे में बैचेनी और भाजपा के लिए बड़ी राहत देने वाली बात यह है कि मतदाता का यह मानस बहुत हद तक भाजपा के पक्ष में है।

राजनीतिक पंडित यह भी मानते है कि समय भले ही मतदान में तीन-चार दिन का शेष रह गया हो, किन्तु मतदाता का यह मानस अब बहुत ज्यादा करवट ले पाएगा, फिलहाल का माहौल देखकर ऐसा लगता तो नहीं है। खुद सिंधियाई कांग्रेसी भी अब बेमन से ही सही यह मान रहे हंै कि महाराज (ज्योतिरादित्य सिंधिया) के हाथ से मुंगावली निकल चुकी है। गौरतलब है कि विधायक महेन्द्रसिंह कालूखेड़ा के निधन से रिक्त मुंगावली विधानसभा के उपचुनाव में शुरू से ही माहौल कांग्रेस के पक्ष में था। लोकतांत्रिक हवाएं हमेशा की तरह महल की ओर ही चल रहीं थीं। उपचुनाव की तिथियां होने, प्रत्याशी घोषित होने, नामांकन दाखिले और भाजपा सरकार की तमाम लोक-लुभावनी घोषणाओं के बाद भी प्रचार शुरू होने तक सारा कुछ कांग्रेस के पक्ष में था और कांग्रेस प्रत्याशी विजेन्द्र यादव का मुंगावली विधायक बनना तय माना जा रहा था। मुंगावली में चुनावी मौसम का बदलना, मौसम के बदले जाने के साथ शुरू हुआ। इधर, मौसम में बारिश और ओलावृष्टि हुई और उधर लोकतांत्रिक हवाएं महल की ओर से दिशा बदलने लगी और यह हुआ मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के क्षेत्र में तूफानी दौरे, सत्ता और संगठन से जुड़े भाजपा दिग्गजों को पूरी रणनीति के साथ मुंगावली में उतारने से । तब तक भाजपा की उपलब्धि सिर्फ यह थी कि वह एकतरफा माने जाने वाले उपचुनाव को कांटे के मुकाबले में बदल चुकी थी। इसमें सबसे महत्वपूर्ण कारण श्री सिंधिया के खासमखास सांसद प्रतिनिधि केपी यादव द्वारा भाजपा का दामन थामने के साथ सैकड़ों लोगों को भाजपा की सदस्यता दिलाया जाना रहा। हालांकि इसके बाद भी मुंगावली का चुनावी मौसम पल-पल बदलता ही रहा। स्थिति यह थी कि कुछ भी कहना संभव नहीं हो रहा था।

इसी बीच भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रभात झा, केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर, भाजपा प्रदेशाध्यक्ष नंदकुमार चौहान, चुनाव प्रभारी अरविंद भदौरिया, परिवहन मंत्री भूपेन्द्रसिंह, लोक निर्माण मंत्री रामपाल सिंह, उच्च शिक्षा मंत्री एवं जिले के प्रभारी मंत्री जयभान सिंह पवैया, कृषि मंत्री गौरीशंकर बिसेन, उद्योग मंत्री राजेन्द्रशुक्ल सहित अन्य मंत्री नारायण सिंह कुशवाह, कैलाश विजयवर्गीय, कमल पटेल, ललिता यादव, जालम सिंह पटेल, गोपाल भार्गव आदि सामूहिक रणनीति बनाकर एकजुटता से चुनाव में जुट गए। जिस चुनाव को सुनियोजित रणनीति के तहत सिंधियाई कांग्रेसी शिवराज बनाम सिंधिया का चुनाव बनाने में कामयाब हो गए थे, उस चुनाव को इन नेताओं ने अपनी मेहनत और योजनाबद्व तरीके से विकास और भ्रष्टाचार से जोड़ते हुए कांग्रेसी रणनीति पर पानी फेरने में सफलता हासिल की। केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्रसिंह तोमर ने अपने तूफानी जनसंपर्क में गांव-गांव भाजपा विकास की गाथाएं गाते हुए माहौल को बहुत हद तक भाजपा के पक्ष में किया तो परिवहन मंत्री भूपेन्द्र सिंह के सौम्य व्यवहार और उनके मिलनसार व्यक्तित्व से न सिर्फ भाजपा कार्यकर्ताओं का दिल जीतकर उन्हे प्राण-पण से चुनाव में जुटने तैयार किया, बल्कि आमजन में भी भाजपा की पैठ बनाई। मंत्री गौरीशंकर बिसेन, जयभान सिंह पवैया, राजेन्द्र शुक्ल आदि ने भी चौराहे-चौपाल तक भाजपा का माहौल बनाने में खासी मेहनत की। राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रभात झा और प्रभारी अरविंद भदौरिया संगठन स्तर पर सक्रिय बने रहे। इस बीच मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के ताबड़तोड़ दौरे के साथ बाई साहब को विधायक बनाओ, मुख्यमंत्री मुफ्त पाओ, पाँच माह दो, पाँच साल का विकास कराएंगे आदि बयान मतदाताओं के दिलो-दिमाग पर गहरा असर छोड़ने में कामयाब रहे है। जोड़-तोड़ की राजनीति में भी भाजपा कांग्रेस पर भारी पड़ी, केपी यादव तो आए ही, मनोज जैन को सीधे तौर पर अपने पाले में लाने भाजपा भले ही चूक गई हो, किन्तु पार्टी का इसको लेकर उद्देश्य जरूर पूरा हो गया। इसी के मद्देनजर फिलहाल भाजपा मुंगावली में बढ़त में है। दूसरी ओर मुंगावली विधानसभा चूंकि शुरू से ही पूर्ववर्ती ग्वालियर राजघराने से प्रभावित रही है, इसलिए जब तक इस चुनावी समर में सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस की तरफ से इकलौते योद्धा के रूप में मैदान में थे और सिंधिया समर्थक कांग्रेसी क्षेत्र में यह प्रचारित करने में लगे हुए थे कि कांग्रेस को जिताओ और महाराज को मुख्यमंत्री बनाओ, तब तक कांग्रेस भाजपा से बहुत आगे थी।

इस बीच सिंधियाई कांग्रेसियों के सुनियोजित प्रचार से कांग्रेस में मुख्यमंत्री पद के अन्य उम्मीदवार सक्रिय हो गए और उन्होंने मुंगावली पहुंचना शुरू कर दिया। चूंकि श्री सिंधिया भी भाजपा की रणनीति और सामूहिक हमले से बेचैन हो उठे थे, इसलिए उन्होंने भी इसको लेकर मौन स्वीकृति प्रदान की। बस, यहीं कांग्रेसियों के यह महाराज चूक कर गए। चाहे सांसद कांतिलाल भूरिया हों या फिर प्रदेश प्रभारी दीपक बावरिया या फिर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव, अजय सिंह आदि, आदि सभी ने अपने-अपने तरीके से मुंगावली में महाराज की जड़ें खोदना शुरू कर दीं। कांतिलाल भूरिया ने देवर-भाभी का रिश्ता रखने वाले भाजपा प्रत्याशी बाई साहब यादव एवं कांग्रेस प्रत्याशी विजेन्द्र सिंह यादव को असली-नकली यादव से जोड़ दिया, जबकि कांग्रेस ने विजेन्द्रसिंह को प्रत्याशी बनाकर पूर्व विधायक देशराज सिंह यादव के निधन से उपजीं संवेदनाओं को अपनी ओर मोड़ने की कोशिश की थी। कांग्रेसी खुद मान रहे है कि कांतिलाल के इस बयान ने पार्टी को काफी नुकसान पहुँचाया है। साथ ही प्रदेश प्रभारी दीपक बावरिया, प्रदेशाध्यक्ष अरण यादव और नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह के इस सुनियोजित बयान कि कांग्रेस में मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित कर चुनाव लड़ने की परंपरा नहीं है, ने माहौल को भाजपा की तरफ मोड़ने में भरपूर मदद की। जो मतदाता सिंधिया के चेहरे और उनके पूर्ववर्ती ग्वालियर राजघराने से जुड़े होने के चलते सिंधियाई कांग्रेसियों के प्रचार कांग्रेस को जिताओ और महाराज को मुख्यमंत्री बनाओ से प्रभावित नजर आ रहे थे, वह इन नेताओं के बयान से असमंजस में पड़ गए हंै।

महल निष्ठ एक मतदाता रामसखा यादव के मुताबिक जब महाराज को मुख्यमंत्री बनना ही नहीं है, तो वोट कांग्रेस में देकर खराब क्यों किया जाए? इसके अलावा भी मुंगावली में कांग्रेस के एक धड़े ने चुनाव से पूरी तरह दूरी बनाए रखी। यह धड़ा प्रदेश की राजनीति में अपनी गहरी पैठ रखने वाले पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह से जुड़ा है और प्रदेश की राजनीति में अपना राजा ( दिग्विजय सिंह)की माँ नर्मदा परिक्रमा खत्म होने के बाद उनके इशारे का इंतजार कर रहा है। जो सिंधियाई कांग्रेसी चेहरे मुंगावली में देखने को भी मिलते रहे, उनमें से भी कई जमीनी धरातल पर काम करने के बजाए सिर्फ महाराज को मुँह दिखाई तक ही सीमित रहे। इन सबके चलते सांसद श्री सिंधिया को चुनाव में दो तरफ चुनौती का सामना करना पड़ा। पहला भाजपा की तरफ से मिल रही कड़ी चुनौती तो दूसरी कांग्रेस में मची मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवारी को लेकर सिर फुटौव्वल। इससे खुद श्री सिंधिया भी विचलित हुए और उनके द्वारा भाजपा पर किए जा रहे हमलों की न सिर्फ दिशा भटकी, बल्कि धार भी मंद पड़ी। जिसका सीधा-सीधा फायदा चुनाव में भाजपा को मिला। मतदाताओं का मानस बदला और अब इस निर्णायक घड़ी में वह भाजपा के पक्ष में बन चुका है।

Updated : 21 Feb 2018 12:00 AM GMT
Next Story
Top