नागपुर। प्रगतिशील समझा जानेवाला महाराष्ट्र नव वर्ष के पहले दिन से जातीय हिंसा की आग में झुलस रहा है। शौर्य दिवस के नाम पर शुरू हुवा जश्न आगजनी और हत्या के मातम में बदल गया। इसकी आंच देश की संसद तक महसूस की गई। इन घटनाओं की पड़ताल में बहुत ही हैरतअंगेज तथ्य सामने आए हैं। गुजरात के चुनावी नतीजों तथा महाराष्ट्र में फैली हिंसा का प्रत्यक्ष संबंध दिखाई दिया।
गुजरात की राजनीति में बीते 22 वर्षों से लगातार भाजपा सत्ता में रही है। इस वजह से वहां की युवा पीढ़ी ने केवल भाजपा की ही सत्ता देखी है। हाल ही में हुए चुनावों में कांग्रेस राहुल गांधी के दम पर गुजरात की सत्ता में वापसी करना चाहती थी, लेकिन जनता ने एक बार फिर कांग्रेस को नकार दिया। इन चुनाव परिणामों ने यह साबित कर दिया कि लोगों को यदि जातियों में बांट दिया जाए तो कांग्रेस की सत्ता में वापसी संभव है। इसी कारण महाराष्ट्र को हिंसा की प्रयोगशाला बनाया गया, ताकि जनता को जातियों में बांटकर भाजपा के जनप्रतिनिधियों की संख्या को दो अंकों में सिमटा दिया जाए। राजनीतिक जानकार इसे 2019 के लोकसभा चुनाव की आहट भी मान रहे हैं।
कांग्रेस-कम्युनिस्ट गठजोड़
इस साल भीमा-कोरेगांव युद्ध की 200वीं सालगिरह थी। इसके चलते महाराष्ट्र में वामपंथी और कांग्रेसियों ने राज्य में जगह-जगह रैली का आयोजन किया था। नागपुर के कांग्रेसनगर स्थित डीएनसी कॉलेज के हॉल में 28 दिसम्बर को एक कार्यक्रम आयोजित किया गया था। इसमें गुजरात के विधायक जिग्नेस मेवाणी मुख्य वक्ता थे। नक्सली आंदोलन को समर्थन देने वाले फिल्मी कलाकार वीरा साथीदार, रोहित की मां राधिका वेमुला आदि लोग भी कार्यक्रम में उपस्थित थे। डीएनसी कॉलेज के प्राचार्य डॉ. बबनराव तायवाडे़ प्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता हैं और ओबीसी आंदोलन के बडे़ नेता माने जाते हैं। इस वजह से कॉलेज में यह रैली आयोजित हो सकी।
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भीमा-कोरेगांव : जातीय हिंसा की प्रयोगशाला बना महाराष्ट्र, कांग्रेस-कम्युनिस्ट गठजोड़ ने की थी रैलियां
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Updated : 2018-01-06T05:30:00+05:30
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