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भाजपा जश्न मनाए पर इतराए नहीं

भाजपा जश्न मनाए पर इतराए नहीं
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नगरीय निकायों के चुनाव में भाजपा भले ही पच्चीस सीटें हासिल कर नंबर एक पर हो लेकिन यह परिणाम उसके लिए सुखद नहीं कहे जा सकते हैं। जिस तरह से कांग्रेस पार्टी इस चुनाव में आगे बढ़ी हैं, वह भाजपा के मिशन 2018 की फतह की रणनीति बनाने वाले दिग्गजों के लिए जरूर चिंता में डालने वाले होने चाहिए। भाजपा बेशक जीत का जश्न मनाएं लेकिन इस जश्न के साथ साथ उसे इन बातों की भी समीक्षा करनी होगी कि आखिर क्या कारण रहे कि दम तोड़ती कांग्रेस निकाय चुनाव में पहले से कहीं अधिक सीटें जीतने में कामयाब रही? समीक्षा करनी होगी कि आखिर क्यों रतलाम में उसे हार का सामना करना पड़ा? समीक्षा करनी होगी कि आखिर क्यों छिंदवाड़ा में वह कमलनाथ के तिलिस्म को नहीं तोड़ पाई? समीक्षा करनी होगी कि महाकौशल में क्यों उसे अप्रत्याशित सफलता नहीं मिली। समीक्षा यह भी करनी होगी कि क्यों कांग्रेस कुछ सीटों पर मामूली अंतर से ही हारी?

नगरीय निकाय के चुनाव परिणाम ऐसे समय में आए हैं जब भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह प्रदेश के दौरे पर हैं। निश्चिततौर पर प्रदेश भाजपा उनके सामने पच्चीस सीटों की जीत के भारी भरकम आंकड़े रखकर अपनी पीठ थपथपा रही होगी। पीठ थपथपानी भी चाहिए लेकिन इन परिणामों पर इतराने की जरूरत कतई नहीं है। जीत का जश्न मनाते समय उसे अपनी प्रमुख विरोधी पार्टी के प्रदेश में पसारते पैरों का भी ध्यान रखना होगा। 2012 में हुए निकाय चुनाव के मुकाबले कांग्रेस भाजपा से काफी आगे निकलती दिखाई दे रही हैं। 2012 के मुकाबले भाजपा को जहां दस सीटों का नुकसान हुआ है, वहीं कांग्रेस सात सीटों से आगे निकलती हुई पंद्रह पर जा पहुंची है। पांच निकायों में कांग्रेस मामूली अंतर से हारी है। अध्यक्ष पदों के चुनाव में भाजपा को दो लाख पैंतीस हजार मत मिले हैं जबकि कांग्रेस दो लाख मत कबाड़ने में कामयाब रही। छनेरा, आठनेर, रानापुर सहित कुछ ऐसी नगर परिषद हैं जहां कांग्रेस के प्रत्याशी बहुत ही कम मतों से हारे हैं, इसे ध्यान में रखना होगा। मुख्यमंत्री ने सबसे ज्यादा सभाएं व रोड शो किए लेकिन तेरह निकायों में उसे हार का सामना भी करना पड़ा। इस पर भी चिंतन होना चाहिए। केंद्रीय मंत्री सुषमा स्वराज के संसदीय क्षेत्र व मुख्यमंत्री के गृह जिले विदिशा के चुनाव क्षेत्र शमशाबाद में उसे हार का सामना करना पड़ा।

नगरीय निकाय चुनाव से पहले प्रदेश में कुछ ऐसे घटनाक्रम हुए जिसका फायदा कांग्रेस को मिला। अचानक ही महाराष्ट्र से उठी किसान आंदोलन की चिंगारी मध्य प्रदेश में प्रवेश कर गई और सरकार कुछ समझ पाती उससे पहले ही मंदसौर मेंं प्रशासनिक नासमझी के चलते किसानों पर गोली चला दी गई और छह किसानों की मौत हो गई। नगरीय निकाय चुनाव में इसका साफ असर दिखाई दिया। इस घटना ने अलग अलग गुटों में बंटी कांग्रेस को एक जुट होने का अवसर भी दिया और यही कारण रहा ज्योतिरादित्य सिंधिया को छोड़कर कांग्रेस के सभी दिग्गज अपने अपने प्रभाव वाली सीटों को बचाने में कामयाब रहे। भिंड में गोविंद सिंह व छिंदवाड़ा में कमलनाथ अपने अपने प्रभाव वाली सीटों को बचाने में कामयाब रही। हालांकि भाजपा ने भी कुछ स्थानों पर ऐतिहासिक जीत दर्ज कर इतिहास रचने का काम किया है। कांग्रेस के दिग्गज माने जाने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया के प्रभाव वाली डबरा सीट पर 45 साल बाद वह कब्जा जमाने में कामयाब रही, वहीं मुरैना जिले के कैलारस में भी वह पहली बार काबिज हुई। बहरहाल नगरीय निकाय चुनाव के परिणामों पर भाजपा जीत का जश्न जरुर मनाएं लेकिन इस पर इतराने की कतई जरूरत नहीं है। मिशन 2018 को ध्यान में रखते हुए भाजपा को इन चुनाव परिणामों की समीक्षा करते हुए मंथन करना होगा कि आखिर कहा उससे चूक हो रही है और कहां उसे अधिक मेहनत करने की जरूरत है। प्रशासनिक अधिकारियों पर भी उसे लगाम कसने की जरूरत है जो केंद्र व राज्य की लाभकारी योजनाओं को जनता तक नहीं पहुंचा पा रही है।


Updated : 18 Aug 2017 12:00 AM GMT
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