तिरंगे के बाद अब नहीं होगा कोई और झंडा
अच्छा हुआ कि अलग झंडा रखने की तैयारी कर रही कर्नाटक सरकार को गृह मंत्रालय ने जमीन दिखा दी। उसकी तरफ से स्पष्ट कर दिया गया है कि देश के संविधान का फ्लैग कोड देश में एक झंडे को ही मंजूरी देता है। इसलिए तिरंगे से इतर देश में किसी अन्य झंडे के बारे में सोचने का भी कोई मतलब नहीं है। फिर भी यह सारा मामला अति गंभीर है। कर्नाटक जैसे प्रदेश में एक राष्ट्रीय दल की सरकार देश के संघीय ढांचे के साथ खिलवाड़ करने की चेष्टा कर रही है। यही नहीं, कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया कह रहे हैं कि क्या देश के संविधान में ऐसा कोई नियम है जो राज्य को अपना अलग झंडा रखने से रोकता हो? क्या उन्हें इस संबंध में जानकारी नहीं है कि भारत का दूसरा झंडा नहीं हो सकता? कल तो वे मांग करने लगेंगे कि हमें अपना राज्यगान भी दो। फिर देखिए कि दिल्ली में बैठे कांग्रेसी नेता सारे घटनाक्रम से बेपरवाह हैं। वे अपनी सरकार के इतने निंदनीय कदम की भर्त्सना करना भी जरूरी नहीं समझ रहे। क्यों कांग्रेस नेतृत्व अपने कर्नाटक के नेताओं को नहीं कसता? क्या माना जाए कि केन्द्रीय नेतृत्व की मूक सहमति मिली हुई है कर्नाटक सरकार को?
देखिए दुस्साहस
कर्नाटक सरकार का दुस्साह तो देखिए कि वो एक समिति गठित कर देती है,जो झंडे के डिजाइन पर सरकार को सलाह देगी। संकेत साफ हैं कि कर्नाटक में देश विरोधी शक्तियां राज्य को जम्मू-कश्मीर बनाने पर आमादा हैं। जम्मू-कश्मीर का भी पृथक झंडा है। उसे धाऱा 370 के तहत अलग झंडा मिला हुआ है। वैसे भी भारत एक राष्ट्र है, इसके दो झंडे नहीं हो सकते।
फ्लैग कोड किसी भी राज्य को अलग झंडे की इजाजत नहीं देता। तिरंगा देश की एकता, अखंडता और संप्रभुता का प्रतीक है। निर्विवाद रूप से कर्नाटक सरकार का कदम अपने आप में गंभीर है। तिरंगा सारे देश को भावनात्मक रूप से बांधता है। जम्मू-कश्मीर को धारा 370 में विशेष अधिकार मिलने से देश को क्षति हुई है। देर-सवेर धारा 370 से देश को मुक्ति मिलेगी ही।
गर्त में जाता आईटी का गढ़
कर्नाटक में निरंतर अव्यवस्था फैलाई जा रही है। इसे नजरअंदाज नहीं या जा सकता है। इसी कर्नाटक में देश की आईटी राजधानी है। पिछले साल सितंबर में कावेरी जल विवाद को लेकर कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच तनातनी ने हिंसा का रूप लिया था। तब राज्य में तमिलनाडु के पंजीकरण वाली बसों और ट्रकों में आग लगाई गई। अब कुछ समय पहले बंगलुरु मेट्रो रेल के साइन-बोर्ड में हिन्दी इस्तेमाल होने का कन्नड़ समर्थक कड़ा विरोध कर रहे थे। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ। ये सरकार से तीन भाषाओं के बदले दो भाषाओं की नीति अपनाने का आग्रह भी कर रहे हैं। हिन्दी प्रेम, मैत्री और सौहार्द की भाषा है। सारे देश को जोड़ती है। अब अचानक से उसका कर्नाटक में क्यों विरोध हो रहा है, ये समझ से परे है। कर्नाटक में दशकों से हिन्दी प्रचार-प्रसार में कन्नड़भाषी लगे हैं। हिन्दी या कावेरी के जल बंटवारे को लेकर कर्नाटक जैसे प्रगतिशील राज्य को आग में झोंका जा रहा है। अब कर्नाटक में नया शिगूफा राज्य सरकार ने ही छोड़ दिया। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया कह रहे हैं कि आगामी राज्य विधानसभा चुनावों से इसका कोई संबंध नहीं है। चुनाव तो अगले साल मई में हैं। हालांकि उनके इस तर्क से कोई राजी नहीं है। अब उनकी बात को कौन मानेगा।
मुझे याद है कि साल 2012 में भी कर्नाटक का लाल और पीले रंग का अलग झंडा रखने की मांग उठी थी। उस समय कर्नाटक में भाजपा की सरकार थी लेकिन झंडे की मांग का भाजपा सरकार ने विरोध किया था। अब सरकार में बैठी कांग्रेस तो इस मांग को उठा रही है। कर्नाटक कांग्रेस के नेता बेहद लचर तर्क दे रहे हैं कि क्षेत्रीय झंडा होने का मतलब ये नहीं कि राष्ट्रीय झंडे का अपमान होगा। कर्नाटक का झंडा तिरंगे के नीचे ही उड़ेगा।” वे भूल रहे हैं कि उनके कदम देश को तोड़ने वाले हैं। ये देश कभी भी स्वीकार नहीं करेगा। भारतीय जनमानस देश की एकता और अखंडता के सवाल पर एक राय है।
बंगलुरू भारत के सूचना प्रौद्योगिकी का गढ़ रहा है। इसी कारण से इसे 'भारत का सिलिकॉन वैली' कहा जाता है। भारत के प्रमुख तकनीकी संगठन इसरो, इंफ़ोसिस और विप्रो का मुख्यालय यहीं है। यहां पर हजारों आईटी पेशेवर काम करते हैं।
केन्द्र उच्च शिक्षा का
यहां बहुत से शिक्षण और अनुसंधान संस्थान स्थित हैं, जैसे भारतीय विज्ञान संस्थान , भारतीय प्रबन्ध संस्थान , राष्ट्रीय डिजाइन संस्थान तथा नेशनल लॉ स्कूल ऑफ इण्डिया। इसके अलावा अनेक सरकारी वायु तकनीकी और रक्षा संगठन भी यहां स्थापित हैं, जैसे भारत इलेक्ट्रानिक्स, हिन्दुस्तान एयरोनौटिक्स लिमिटेड और नेशनल एयरोस्पेस लेबोरेटरीज। बंगलुरू कन्नड़ फिल्म उद्योग का केंद्र है। इतने खासमखास शहर को विभिन्न मुद्दों की आड़ में नष्ट किया जा रहा है।
देखने में आ रहा है कि देश के दक्षिणी राज्यों में अव्यवस्था फैलाई जा रही है। ये राज्य पहले कमोबेश शांत थे। ये आपस में भी लड़ रहे हैं। तेलंगाना अब आंध्र प्रदेश से पंगा ले रहा है। दोनों राज्यों के मुख्यमंत्री कभी-कभी लगता है कि सामान्य शिष्टाचार भी भूल जाते हैं। आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू और तेलंगाना के मुख्यमंत्री के.चंद्रशेखर राव आपस में जिस तरह से व्यवहार करते हैं,जाहिर तौर पर उसकी उनसे कतई अपेक्षा नहीं की जा सकती। इसी तरह से कावेरी के मसले पर जैसा कि हम ऊपर बता चुके हैं कि कर्नाटक और तमिलनाडु शत्रुओं की तरह का आचरण करते हैं। ये सब देश के संघीय ढांचे चे के लिए ठीक नहीं है। इस प्रवृति पर रोक लगनी चाहिए। राज्यों को अधिक और अतिरिक्त स्वायत्तता मिले, इसमें किसी को क्या दिक्कत होगी। फिर भी यह तो स्वीकार नहीं किया जाएगा कि देश के अहम प्रतीकों पर ही हमले शुरू हो जाएं। अगर ये हुआ तो फिर भारत का मतलब क्या रह जाएगा।