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सात वर्ष में जनहित याचिकाआें की आठ गुना बढ़ी संख्या

सात वर्ष में जनहित याचिकाआें की आठ गुना बढ़ी संख्या
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उच्च न्यायालय में लंबित याचिकाआें में सुनवाई नहीं हो रही

ग्वालियर,न.सं.। व्यक्ति और समाज के हित में संविधान का निर्माण इसी उदेश्य के साथ किया गया है कि सभी को मौलिक अधिकारों का लाभ मिल सके। समय के साथ कानूून में बदलाव भी किए जा रहे हैं। वहीं संवैधानिक अधिकारों के उपयोग के प्रति जागरुकता भी बढ़ी है। इन्हीं अधिकारों को लेकर आंकड़ों पर गौर करें तो मप्र की तीनों खण्डपीठ में जनहित याचिकाओं की संख्या पिछले सात सालों में आठ गुना बढ़ी हैं। इनमें से हजारों जनहित याचिकाओं में सुनवाई और निर्णय न होने के कारण भी संख्या बढ़ रही है। जानकारी अनुसार उच्च न्यायालय में लम्बित रिट याचिकाओं की संख्या 70 हजार से अधिक हो गई है।

क्या है संवैधानिक उपचार

संविधान के तहत प्रदत्त अधिकारों का हनन होने या उनके प्रवर्तन के लिए संवैधानिक उपचारों की व्यवस्था संविधान में की गई है। इनके तहत रिट याचिकाओं की व्यवस्था है, जिनकी सुनवाई का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत सर्वोच्च न्यायालय और 226के तहत उच्च न्यायालय को दिया गया है।

लोगों का अधिकार निर्णय का इंतजार

उच्च न्यायालय की ग्वालियर खण्डपीठ में कार्यरत अधिवक्ता प्रद्युमन सिंह ने बताया कि प्रत्येक वर्ष अधिकारों को लेकर दायर होने वाली रिट याचिकाओं की संख्या में वृद्धि जनतंत्र के लिए फायदेमंद हैं। इससे लोगों की अपने संवैधानिक अधिकारों के प्रति सजगता प्रकट होती है। उन्होंने बताया कि 2015 अक्टूबर के अंतिम सप्ताह तक मप्र हाईकोर्ट की तीनों खंडपीठों में कुल मिला कर 76515 रिट याचिकाआें को निर्णय का इंतजार था,लेकिन विधिक प्रक्रियाओं की जटिलता और अन्य कारणों से 2016 तक लंबित रिट याचिकाओं की संख्या बढ़ कर 78 हजार से ज्यादा हो चुकी है। उच्च न्यायालय में लंबित आपराधिक, सिविल व अन्य मामलों की तरह रिट याचिकाओं की संख्या में लगातार बढ़ोत्तरी का एक बड़ा कारण तीनों खण्डपीठों में न्यायाधीशों की कमी होना है।

इन रिट की व्यवस्था - हैबियस कॉरपस या बंदी प्रत्यक्षीकरण

किसी व्यक्ति को उसकी या उसके वैध अभिभावक की बिना अनुमति के बंदी बनाने पर उसे प्रस्तुत करने का आदेश देने के लिए। संवैधान में वर्णित कार्य किए जाने या असंवैधानिक कृत्य को रोकने की आज्ञा देने के लिए। क्षेत्राधिकार का उल्लंघन करने पर रोक लगाने की आज्ञा देना। संविधान की अधिकार शक्ति का हनन होने पर सूचित करने व रोकने के लिए। संवैधानिक अधिकार न होने पर यह पूछने व रोकने के लिए कि किस अधिकार से किया है।

Updated : 21 Jun 2017 12:00 AM GMT
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